सीधे मुद्दे पर आ जाते हैं। एक आम आदमी जो आम पढा- लिखा है, उसके पास कोई कोटा नही, कोटा है तो उससे लाभन्वित होने की चतुराई नही, आम नौकरी करता है, बता दीजिए, उसकी आम सी प्राइवेट नोकरी में उसे कितना वेतन मिलता है?
नही मालूम। मैं बता देता हूँ, उसे बड़ी मुश्किल से स्कूल में चपरासी-बाबुगिरी, दुकान के मुंशी, फैक्ट्री के चौकीदार, टाइमकीपर, दरबान ,होटल की वेटरगिरी या एटीएम की निगरानी से मिलते है 7 हजार से 16 हजार रुपये महीना।
ये शानदार वाला पैकेज भी उसको ऐसे ही नसीब नही है इसकी खातिर उसको पहले तो अपना गाँव या कस्बा छोड़ना पड़ता है दूसरा हालिया नौकरी के कभी भी जाने के खतरे की घण्टी हर दम सुनाई पड़ती हैं।
इस पर व्यथा यह है , कि छोकरा शहर में नौकर है , के चक्कर में उसकी शादी और तत्पश्चात एक-दो वंशज और अवतरित हो जाते है फिर शुरू हो जाती है एक महाभारत।
यह आयवर्ग सबसे बड़ा आयवर्ग है हमारे मादरे-वतन में। शहर में रहना, खाना-पीना, यातायात, और बिजली-पानी के बिल एवम रिचार्ज में ही तनख्वाह का जनाजा निकल जाता हैं।
आप बच्चों की पढ़ाई, परिवार के स्वास्थ्य , सामाजिक व्यय, मनोरन्जन, पर्यटन आदि को तो दरकिनार रखे उसके पास बहुधा गाँव में रहने वाले माता-पिता से मिलने के लिए घर जाने तक का भाड़ा भी नही होता।
यह वर्ग ना तो जीएसटी के बदलाव से वाकिफ होता है ना किसी राजनैतिक विचारधारा के मर्म से इसका कोई राब्ता हैं। यह मंदिर इसलिए नही जाता क्योकि बड़ा धार्मिक है बल्कि इसलिए जाता है कि वक्त बुरा ना आ जाये क्योकि बुरे वक्त का साथी यानी “बड़े वाले नोट” उसकी छोटी सी पॉकेट में रहते नही है।
इस वर्ग की बेहतरी के लिए देश में काफी आंदोलन भी चले, मुद्दे भी बने, नारे भी लगे, हड़ताले भी हुई पर नतीजा सिफर। इनके दम पर कुछ लोगो की नेतागिरी जरूर चमकी और उन्होंने सत्ता सुख भी भोगा लेकिन इस वर्ग के हालात जस के तस हैं।
इनके हालत तभी सुधरेंगे जब देश की सरकार एक “माँ” की तरह सोचे ना की “सक्सेसफुल मैनेजमेंट लेजेंड” की तरह। सवा अरब लोगो को लेकर भी एक “हैप्पी कन्ट्री” चलाया जा सकता है और यह सूत्र “हिन्दू संयुक्त परिवार” विचारधारा में था।
आप सीधे-साधे तरीके से सीधी-साधी व्यवस्था करे ना कि इस तरह के गम्भीर प्रोसीजर बना डाले कि छोटे-बड़े वकील तक की भी अक्ल का “बोलो राम” हो जाये। सीधी सा तथ्य यह है कि अधिक नियम, उपनियम, अधिनियम, रुलिंग्स, लाइसेंस, परमिशन, नोटिफिकेशन, पजेशन ही भ्रष्टाचार के जनक हैं।
सरकार को देश की सुरक्षा व व्यवस्था हेतु आय चाहिए तथा यह आय कराधान से ही आएगी। आप अगर सरल कराधान मॉडल से कुछ कम आय भी प्राप्त करे लेकिन उसका व्यय अनुशासन व प्राथमिकता तय करके करे तो भी कोई हानि नही होगी क्योंकि आज हम अगर बाजीगिरी दिखाकर ज्यादा कर वसूल रहे तो भी क्या? इस आय का बड़ा हिस्सा तो सत्ता पर काबिज लोग फर्जी/बेनामी कम्पनियों के माध्यम से अपने अकाउंटस में जमा कर रहे हैं।
अब तो मालिक सरकार ही है वही सोचे वही कुछ करे। शिक्षा को माकूल करे, कर व्यवस्था को नैतिक करे, राष्ट्रप्रेम का दिया जलाये।