सदियों से "सोनार किले" ने मरुस्थल "थार" के कठिनतम जीवन के बावजूद "जीवन-मूल्यों" का परचम बुलन्द रखा है। इस सीमावर्ती जिले ने सदैव भारतीय सीमाओं की रक्षा हेतु अपना सर्वोत्तम भारत माता हेतु बलिदान किया है।
इसी जैसलमेर शेर की एक और नई पहचान अब हाजी मेहरुद्दीन के गौरक्षार्थ किये जाने वाले प्रयासों से भी होने लगी है। जैसलमेर शहर की हर गली में सुबह की पहली किरण के साथ हाजी मेहरुदीन का इंतज़ार होता हैं।
जब तक हाजी के रिक्शे में लगी घण्टी की आवाज़ नही आती सब को इंतजार रहता हैं। यह क्रम पिछले पन्द्रह सालो से चल रहा हैं। बात कर रहा हूँ जैसलमेर के एक नेक बुजुर्ग हाजी मेहरुद्दीन की जो गत पंद्रह सालो से जैसलमेर शहर की तंग गलियो में भोर की पहली किरण के साथ निकल पड़ते हैं अपना रिक्शा लेकर।
उनके रिक्शे में एक घण्टी लगी हैं। प्रत्येक गली में जाकर जैसे घण्टी बजती है, हर घर से लोग रोटियां लेकर बाहर निकलते है व हाजी को सुपुर्द करते है। हाजी यह रोटियां प्रतिदिन गायो को जीवन देने के लिए एकत्रित करते हैं। खुदा के इस नेक बन्दे को गायो की सेवा से बड़ा शकुन मिलता हैं। मौसम और परिस्थितियां चाहे कैसी हो यह अपने कर्म को अंजाम देते हैं।
हाजी मुस्लिम होते हुए भी उनका गो प्रेम अनोखा हैं। रोटियां इकट्ठी कर अपने हाथो से गायो को खिलाते समय उनको बड़ा सकून मिलता है। हाजी जैसे अनगिनत लोग आज भी समाज मे अपना काम पूर्ण निष्ठा से करते है। जो गोसेवा को अपना धर्म मानते हैं। धर्म की व्याख्या हाजी इबादत से करते हैं।उनका मनना हैं हर धर्म शांति एकता और विश्वास भाई चारे का सन्देश देता हैं।
उन्हें गायो की सेवा से परम आनंद और शकुन मिलता हैं। साम्प्रदायिकता की बात करने वालो को मेहरुदीन से सीखना चाहिए कि सद्भभावना से बड़ा कोई धर्म नही। इस देश को सदियों से "गंगा-जमुनी" तहजीब वाला देश कहा जाता रहा है।
सलाम हाजी चाचा को।
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Very Great work so tnq sir ji
Aapko salam