
रूस भारत की मुख्य शस्त्रबिजन का ताना है, हालांकि उसने अपनी खरीदारी को अधिकतम हद तक कम कर दिया है। नई दिल्ली के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह सब अब पूर्णतः कल्पना करना होगा कि रूस पर नई दिल्ली की आश्रितता को रीसेट करने का टास्क है, जबकि उसकी चीन और पाकिस्तान के साथ सीमाएं तनावपूर्ण हैं। अस्थायी संघर्ष, शस्त्र बिक्री और आधारमुख विसंगतियों का अध्ययन करने वाले स्वतंत्र थिंक टैंक स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने बताया है कि शुरुआती पंचवर्षीय अवधि (2018 से शुरू) में रूसी शस्त्र आयात 19% गिर गया था।
“2013–17 और 2018–22 दोनों में रूस भारत के लिए शस्त्रों का सबसे बड़ा आपूर्तक होता था, लेकिन उसका भारत द्वारा कुल शस्त्र आयात के हिस्से में शेयर 64% से 45% तक घट गया।” इसके मुताबिक वैश्विक समुदाय ने रूस के विरुद्ध मत देने में भारत ने सहयोग दिया है। हालांकि यह परमाणु युद्ध से संबंधित समस्त नागरिक बिंदुओं पर कमजोर रहा है।
1993 से भारत दुनिया का सबसे बड़ा शस्त्र आयातकर्ता रहा है और “पाकिस्तान और चीन के साथ तनाव होने के कारण इसकी शस्त्रों के आवश्यकताओं के पीछे एक मुख्य कारक है”, रिपोर्ट में विशेष रूप से बताया गया है। रूसी की धार्मिक बिक्री पर सैन्क्षिकता, भारत में रक्षा उपकरणों के निर्माण में वृद्धि, और इस समय के समय पर अपने हथियारों के निर्यात के लिए फ्रांस जैसे देशों से वृद्धि को ले कर बाद आने वाला मुकाबला उनकी खरीदारी में गिरावट लाने के कारण हुआ है।
पेरिस ने 2018-22 में भारत को हथियार आपूर्तिकर्ताओं के रूप में इमरीतसे उठाया और अमेरिका को पछाड़ कर दूसरा सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता बन गया है।