एक कविता : बालपन को समर्पित।
आज बच्चों को शोर मचाने दो,
कल जब ये बड़े हो जाएँगे।
ख़ामोश ज़िंदगी बिताएँगे,
हम-तुम जैसे बन जाएँगे ।।
गेंदों से तोड़ने दो शीशें,
कल जब ये बड़े हो जाएँगे।
दिल तोड़ेंगे या ख़ुद टूट जाएँगे,
हम-तुम जैसे बन जाएँगे ।।
बोलने दो बेहिसाब इन्हें,
कल जब ये बड़े हो जाएँगे।
इनके भी होंठ सिल जाएँगे,
हम-तुम जैसे बन जाएँगे ।।
दोस्तों संग छुट्टियों मनाने दो,
कल जब ये बड़े हो जाएँगे।
दोस्ती-छुट्टी को तरस जाएँगे,
हम-तुम जैसे बन जाएँगे ।।
भरने दो इन्हें सपनों की उड़ान,
कल जब ये बड़े हो जाएँगे।
पर इनके भी कट जाएँगे,
हम-तुम जैसे बन जाएँगे ।।
बनाने दो इन्हें काग़ज़ की कश्ती,
कल जब ये बड़े हो जाएँगे।
ऑफ़िस के काग़ज़ों में खो जाएँगे,
हम-तुम जैसे बन जाएँगे ।।
खाने दो जो दिल चाहे इनका,
कल जब ये बड़े हो जाएँगे।
हर दाने की कैलोरी गिनाएँगे,
हम-तुम जैसे बन जाएँगे।।
रहने दो आज मासूम इन्हें,
कल जब ये बड़े हो जाएँगे।
ये भी “समझदार” हो जाएँगे,
हम-तुम जैसे बन जाएँगे।।
सोशल मीडिया से प्राप्त।
(लेखक-अज्ञात)