सनातन समाज के श्री परशुराम त्रेतायुग के महान ऋषि व भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते है। आपकी विद्वता, पराक्रम व क्रोध जगत विख्यात है। श्री परशुराम जी जयंती का उत्साहपूर्वक आयोजन इस वर्ष 26 अप्रैल को किया जा रहा है। इसी वर्ष 2018 में राजस्थान राज्य में परशुराम जयंती को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया है। परशुरामजी के जन्मदिन पर व्रत रखने व उत्सव मनाने की परंपरा है।
मुनि श्री परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि व माताश्री का नाम रेणुका था। वैशाख शुक्ल तृतिया को विश्ववन्ध महाबाहु श्री परशुरामजी का जन्म हुआ था। आपका आरम्भिक नाम आपके पितामह महर्षि भृगु ने राम रखा था। पिताश्री के नाम के अनुसार आपको जामदग्न्य, शिवजी द्वारा परशु (फरसे) को धारण करने के कारण इन्हें परशुराम व गोत्र के कारण भार्गव के नाम से पुकारा जाता है।
बालक परशुराम की आरंभिक शिक्षा-दीक्षा अपनी माता रेणुका से प्राप्त हुई थी। परशुराम का प्रकति व जीव-जंतुओं से गहरा अनुराग था। इसी अनुराग के कारण परशुराम अनेक जीवों की भाषा समझने लगे थे एवम उनसे वार्तालाप में सक्षम थे। वे बाल्यकाल में अत्यंत आज्ञाकारी थे एवम आपने शास्त्र के साथ शस्त्र शिक्षा प्राप्त की थी। आपने आरम्भिक शिक्षा महान मुनि विश्वामित्र व मुनि ऋचिक के आश्रम में प्राप्त की थी।
आप शिवजी के परमभक्त व महान वीर थे। आपके अस्त्र शस्त्र धनुष-बाण व परशु था।
इस धरा पर जब भी कोई संकट आता है तब भगवान विष्णु अवतार के रूप में पधार कर संकटमोचन करते है। भगवान विष्णु के 23 अवतार अब तक पृथ्वी पर अवतरित हो चुके हैं। इन 24 अवतार में से 10 अवतार विष्णु जी के मुख्य अवतार माने जाते हैं। यह है मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार, नृसिंह अवतार, वामन अवतार, परशुराम अवतार, राम अवतार. कृष्ण अवतार, बुद्ध अवतार, कल्कि अवतार। मुनि परशुराम को भगवान विष्णु का छठा व 10 में से एक मुख्य अवतार कहा जाता है।
1. श्री परशुरामजी को सनातन भारत के अनेक ग्रामो का स्थापक माना जाता है एवम गोवा, केरल व कोंकण क्षेत्र की स्थापना का श्रेय आप ही को माना जाता है। गोवा, कोंकण व केरल में भगवान परशुरामजी के प्रति जनसाधारण में विशेष श्रद्धा है।
2. युद्धकला वददकन कलरी के संस्थापक आचार्य रहे है। आपने इस युद्धकला को अपने अनेक शिष्यों को भी सिखाया था।
3. वे महान दानवीर थी आपने गुरु द्रोणाचार्य को अपने समस्त अस्त्र-शस्त्र व उनके संचालन की विद्या दानस्वरूप प्रदान की थी।
4. आपने शोषण व कुसंस्कारों के विरुद्ध अनेक बार संघर्ष किया। आपने कुमार्ग पर चल रहे क्षत्रियों का संहार किया।
5. आपने शरणागत की सदैव सहायता की। जब भीष्म से नाराज होकर अम्बा ने परशुरामजी से सहायता मांगी तो परशुराम जी ने महाबली भीष्म से कठोर युद्ध किया था।
6. श्रीराम द्वारा शिव-धनुष तोड़ने पर वे श्रीराम पर कुपित हुए लेकिन संशय मिटने पर आपने श्रीराम के प्रति अगाध श्रद्धा का परिचय देकर एक महान व्यक्तित्व का उदाहरण पेश किया था।
7. परशुरामजी का दर्शन व जीवन उद्देश्य-
श्री परशुरामजी वैदिक सँस्कृति का विकास-विस्तार करना चाहते थे। वे प्रकति के प्रति विशेष अनुराग रखते थे एवम जीव-जंतुओं, वनस्पतियों का सरंक्षण व विकास चाहते थे।
परशुरामजी शास्त्र व शस्त्रों की शिक्षा ब्राह्मणों को ही प्रदान करते थे लेकिन आपके विख्यात शिष्यों में गंगापुत्र भीष्म, गुरुवर द्रोणाचार्य व दानवीर कर्ण का नाम शुमार है।
आज के इस युग मे श्री परशुरामजी की शिक्षाओं का विशेष महत्व है। परशुरामजी राजा को वैदिक संस्कृति के विस्तारक व पोषणकर्ता के रूप में देखते थे नाकि मात्र आज्ञा देने वाले के रूप में। आज यह अत्यावश्यक है कि हमारी शासन व्यवस्था हमारी महान संस्कृति की रक्षक हो। परशुरामजी प्रकति के महत्व को समझते थे व आज के इस युग मे जहां पारस्तिथिक सन्तुलन बिगड़ गया है एवम हम घोर प्रदूषित वातावरण में जीवन यापन कर रहे है अगर परशुरामजी की शिक्षाओं के अनुसार समाज का संचालन होने लगे तो आज पृथ्वी स्वर्ग समान हरित, पवित्र व जीवनोपयोगी हो सकेगी।
परशुरामजी को एक पूर्ण व्यक्तित्व के रूप में हम देखते है उन्होंने शास्त्र व शस्त्र दोनों पर समान अधिकार रखा, आज हमें ऐसी ही शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता है एवम परशुरामजी इस प्रकार सभी अर्थो में हमारे आदर्श है।
भारतभूमि एक सनातन पवित्र भूमि है, यहाँ भाग्यशाली को जन्म मिलता है। श्रीपरशुरामजी पर माता-वध का भार था जिससे उबरने के लिए उन्होंने अनेक प्रयास किये व अंततः उबरे। उन्ही की भांति हम भी प्रयासपूर्वक हमारे जीवन को अनेक कमियों के बावजूद भी सफल कर सकते है।
गरदन पर किसका पाप वीर ! ढोते हो ?
शोणित से तुम किसका कलंक धोते हो ?
उनका, जिनमें कारुण्य असीम तरल था,
तारुण्य-ताप था नहीं, न रंच गरल था;
सस्ती सुकीर्ति पा कर जो फूल गये थे,
निर्वीर्य कल्पनाओं में भूल गये थे;
गीता में जो त्रिपिटक-निकाय पढ़ते हैं,
तलवार गला कर जो तकली गढ़ते हैं;
शीतल करते हैं अनल प्रबुद्ध प्रजा का,
शेरों को सिखलाते हैं धर्म अजा का;
सारी वसुन्धरा में गुरु-पद पाने को,
प्यासी धरती के लिए अमृत लाने को
जो सन्त लोग सीधे पाताल चले थे,
(अच्छे हैं अबः; पहले भी बहुत भले थे।)
हम उसी धर्म की लाश यहाँ ढोते हैं,
शोणित से सन्तों का कलंक धोते हैं।
व्रत के दिन साधक प्रात:काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें । पूजा स्थल को शुद्ध कर ले। आसन पर बैठ जाये । चौकी या लकड़ी के पटरे पर श्रीपरशुराम जी के विग्रह को स्थापित करें। अब हाथ में अक्षत, जल तथा पुष्प लेकर निम्न मंत्र के द्वारा व्रत का संकल्प करें:-
“ मम ब्रह्मत्व प्राप्तिकामनया परशुराम पूजनमहं करिष्ये ”
इसके बाद हाथ के पुष्प तथा अक्षत परशुराम जी के पास छोड़ दें।
सुर्यास्त तक मौन धारण करें । शाम को पुन: स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थान पर आसन पर बैठ जायें। षोडशोपचार विधि से पूजन करें। नैवेद्य अर्पित करें। धूप,दीप दिखायें।निम्न मंत्र के द्वारा परशुराम जी को अर्घ्य अर्पित करें-
जमदग्निसुतो वीर क्षत्रियान्तकर प्रभो।
गृहाणार्घ्य मया दत्तं कृपया परमेश्वर ॥
‘ हे प्रभु ! आप जमदग्नि के पुत्र हो और क्षत्रियों का नाश करनेवाले हो, अत: कृपया मेरे दिये अर्घ्य को स्वीकार करो।’
परशुराम जी की कथा सुने। आरती करें।उसके बाद पूरी रात्रि राम मंत्र का जाप करते हुये जागरण करें। दूसरे दिन पारण करें।
हम भाग्यशाली है कि हमने भारतवर्ष में जन्म लिया। इस पावन भूमि के कण-कण में आशीर्वाद देने की क्षमता है क्योंकि यहाँ प्रत्येक काल-खंड में अनेको महापुरुषों, सन्तो , वीरो, वीरांगनाओं व भक्तों ने जन्म लिया है व उनकी शिक्षाएं आज पुरातन पुस्तकों में उपलब्ध है।
ऐसे ही एक महापुरुष परशुरामजी के जीवन को जानने के पश्चात हमारे जीवन-दर्शन में सकारात्मक परिवर्तन स्वतः ही होने लगता है।