Shivira
  • Home
  • Smile Program
  • Scholarships
  • Shala Darpan
  • View All Articles
  • About Us
  • Contact Us
No Result
View All Result
Shivira
No Result
View All Result
Home Uncategorized

CharDham Yatra: Chota Char Dham Yatra

in Uncategorized
Reading Time: 2min read
A A
0
Fb Img 1561270335937 Education News Rajasthan Shivira.com

चार धाम यात्रा: हिमालय के चार धाम की यात्रा।

हिन्दू धर्म मे चार धाम दर्शनों का बड़ा महत्व है। धर्म का विश्लेषण, व्याख्या व प्रस्तुति के तमाम प्रयासों से कही बढ़कर इसका महत्व इसे धारण करने से है। अभ्यास, नियम, दृष्टिकोण, जीवनशैली व यात्रा इसे पुष्टि प्रदान करते हैं।

Img201906091831292621574601816841508 Education News Rajasthan Shivira.com

छोटी चारधाम यात्रा

चार धाम यात्रा में हिंदुओं के चार धामों बद्रीनाथपुरी, द्वारकापुरी, रामेश्वरमपुरी व जगन्नाथपुरी की यात्रा की जाती है। ईश्वरीय आज्ञा से मुझे चार धाम में से इस यात्रा में यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ व बद्रीनाथ धाम दर्शन का अवसर मिला। इन चार तीर्थस्थल की यात्रा को” हिमालय के चार धाम”, “उत्तराखंड के चार धाम” अथवा “छोटी चार धाम यात्रा” के नाम से भी सम्बोधित किया जाता हैं।

यह यात्रा साधन, स्वास्थ्य व संसाधनों के आधार पर सात से दस दिनों की होती है। मौसम, ट्रैफिक व तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार समयावधि कम-ज्यादा भी हो जाती है। इस यात्रा के अनुभवों को मैने लिखने का प्रयास किया है एवं यात्रा पश्चाक्त संशोधन भी किया है। आप इसे अवश्य पढ़ें, आशा है कि आपको भी आनंदानुभूति होगी।

श्री गणेशाय नमः

उत्तराखंड यात्रा: प्रथम दिवस।

सनातन धर्म का इतिहास मानव सभ्यता से जुड़ा हुआ है एवं यह “वसुधैव कुटुम्बकम” के मूल्यों व “सर्वे भवन्तु सुखिनः” की विचार श्रंखला पर आधारित एक पवित्र मानवीय जीवनशैली है। इसमें ज्ञान, विज्ञान व नियम का अद्वितीय संगम है।

बीकानेर से रवानगी

रात को ग्यारह बजे ( 7 जून) बीकानेर स्टेशन से बीकानेर-हरिद्वार सुपरफ़ास्ट ट्रेन से हमारा समूह रवाना हुआ। शाम को 4 बजे (8 जून) हरिद्वार पहुँचे। हरिद्वार पहुँचने पर मौसम बहुत गर्म व भीड़ बहुत ज्यादा है। हरिद्वार-ऋषिकेश मार्ग जाम होने के कारण हम 9 व्यक्तियों के ग्रुप के लिए 2 इनोवा 3 हजार ₹ में करनी पड़ी।

ऋषिकेश पहुँचना

ऋषिकेश में भीड़ हरिद्वार से भी बहुत ज्यादा मिली। कठोर मेहनत से व एक हाथठेले के सहयोग से सामान को लेकर लक्ष्मण झूलेके उस पर गीता भवन पहुँचे। वहाँ पहुँच कर दर्शन भोजनादि पश्चाक्त सभी सदस्य देर रात को सो गए।

उत्तराखंड यात्रा: दिवस द्वितीय।

यमुनोत्री धाम हेतु रवानगी।

आज के दिन की शुरुआत सुबह 4 बजे गीता भवन से हुई। दल के समस्त 9 सदस्य समय पर उठे व तैयार होकर साढ़े छह बजे यमुनोत्री धाम जाने के लिए पहले से तय की गई गाड़ी “Max” में सवार हुए।

ऋषिकेश से रवाना होते समय यह ध्यान रखिए कि चारधाम जाने वाले श्रद्धालुओं को अपना रजिस्ट्रेशन करवाना आवश्यक है। यह रजिस्ट्रेशन निःशुल्क होता है एवं रजिस्ट्रेशन हेतु आधार कार्ड आवश्यक हैं। रजिस्ट्रेशन कार्य ऋषिकेश बस स्टैंड पर होता है।

ऋषिके-यमुनोत्री-गंगोत्री-केदारनाथ-बद्रीनाथ-ऋषिकेश

आप ऋषिकेश से जब चारधाम की यात्रा के लिए निकले तो टैक्सी टूर कम्पनी वाले आपको बतलायेंगे की चारधाम टूर की अवधि 8 से 10 दिन व किराया प्रति यात्री साढ़े तीन से साढ़े चार हजार के लगभग आएगा। चारधाम यात्रा का सामान्य रूट ऋषिके-यमुनोत्री-गंगोत्री-केदारनाथ-बद्रीनाथ-ऋषिकेश रहेगा।

Img201906101225302064272670960116263 Education News Rajasthan Shivira.com

यहाँ पहाड़ियों में अभी चारधाम के समस्त मार्गो का पुनर्निर्माण किया जा रहा है। रास्ता पहले की तुलना में बहुत सुविधाजनक हो गया है। ऋषिकेश से गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग 94 निर्माणाधीन है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग धार्मिक व सामरिक कारणों से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

ऋषिकेश से यमुनोत्री की दूरी 240 किलोमीटर है। यह रास्ता तय करने में न्यूनतम 8 घण्टे का समय लगता है। रास्ते मे जाम लगने या मौसम खराब होने की स्तिथि में समय ज्यादा लग जाता हैं।

न्यूनतम व्यय

पीक सीजन मई से जुलाई तक यहां प्रति व्यक्ति रहने का व्यय न्यूनतम 400/- रुपये व भोजन व्यय 200/- रुपये प्रतिदिन हैं। यमुनोत्री पर्वतराज हिमालय की तराई क्षेत्र में है अतः वर्ष पर्यन्त ठंड बनी रहती है।

दिवस तृतीय

पहला धाम- यमुनोत्री दर्शन।

पर्वतराज हिमालय से ही अनेक नदियों का आरम्भ होता है। यमुनाजी के उदगम स्थल पर यमुनाजी का मंदिर स्थापित किया गया है। यहाँ हिंदू धर्म से सम्बंधित मान्यताओं का एक विशाल भंडार हैं।

बेस केम्प- जानकी चट्टी

बेस स्टेशन “जानकी चट्टी” से लोग यमुनोत्री जाते है एवं पहले नदी की स्वच्छ व ठंडी धारा में स्नान के पश्चाक्त मन्दिर परिसर के गर्म पानी के कुंड में स्नान करते है। गन्धक जैसे प्राकृतिक तत्व से भरपूर इस कुंड में स्नान से राह की समस्त थकावट दूर हो जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस गर्म जल में स्नान करने से समस्त प्रकार के चर्म रोगों से मुक्ति सम्भव हैं।

एकल यात्री अपने स्वास्थ्य के अनुसार लेकिन यदि आप एक समूह में है तो बेस कैंप से निकलकर यमुनोत्री धाम दर्शन करके लौटने में क़रीब सात-आठ घण्टे लग जाते हैं। आप यहाँ लोगो की धर्म के प्रति आस्था देखकर अभिभूत हो जाएंगे। मैंने इस यात्रा में एक साल के बच्चें से लेकर नब्बे वर्ष के बुजुर्ग तक को पैदल पहाड़ चढ़ते देखा हैं।

आसान नहीं हैं चढाई

Img201906111407485794432076408753147 Education News Rajasthan Shivira.com

Img201906111441536640638889089254684 Education News Rajasthan Shivira.com

चाहे पैदल चाहे कंडी लेकर चले, पालकी करे या घोड़े पर बैठकर यमुनोत्री की यात्रा करें, आपको आनंद ही आएगा। पूरे रास्ते आपको घोड़े के पालकों के द्वारा सवारी को दिए जाने वाले इंस्ट्रक्शन आल्हादित करेंगे। कई बार आप यह भी सोचेंगे कि “अच्छा किया कि मैं पैदल ही चढ़ा”। खैर, घुड़सवारी का भी अलग आनंद है अगर जरूरी हो तो जरूर ये सेवाएं लीजिए। ये घोड़े इतने एक्सपर्ट है कि यमुना माता की कृपा से यहाँ एक्सीडेंट रेट शून्य हैं।

जानकी चट्टी से यमुनोत्री मन्दिर की चढ़ाई 6 किलोमीटर से अधिक है एवं चढाई सीधी होने के कारण अस्वस्थ व्यक्ति इसे घोड़े अथवा पालकी से ही चढाई करते हैं।

आज यमुनोत्री धाम

आज सुबह साढ़े तीन बजे जागने के साथ दिन की शुरुआत हुई थी । एक सदस्य ने सबके लिए चाय की व्यवस्था कर दी थी । बाहर व कमरे के अंदर सामान्य ठंडक है। हमने साढ़े छः बजे यमुनोत्री हेतु यात्रा आरम्भ की थी।

वृद्ध व बीमार हेतु यात्रा के लिए डंडी, कंडी, खच्चर व पालकी व्यवस्था उपलब्ध रहती है। यात्रा में महंगा-सस्ता सब जायज है। यमुनोत्री क्षेत्र के होटल रूम्स व सामान्य घरों में कमरे, कूलर व एसी कम ही मिलेंगे क्योकि यहाँ गर्म से गर्म मौसम में भी रात का टेम्परेचर 8-9 डिग्री तक रहता है।

पहाड़ सुंदर, पहाड़िया मनोरम लेकिन पहाड़ी जीवन बहुत मुश्किल होता है क्योंकि पहाड़ो में मौसम की विषमताओं के अलावा संसाधनों की कमी भी रहती हैं।

तीर्थयात्रा सदैव परिवार के साथ या अच्छे समूह में ही करनी चाहिए क्योंकि चंद घण्टो की मुश्किल यात्रा में एक दूसरे को प्रेम सहयोग से साथ देकर हम यह भी सीख जाते है कि जीवन के मुश्किल रास्तो में परिजनों का साथ कैसे निभाना है?

यमुनोत्री धाम की यात्रा पहाड़ियों में करीबन साढ़े पांच किलोमीटर की चढ़ाई है। इस चढ़ाई में आयुवर्ग के अनुसार सबको चढ़ने का अपना अपना टाइम टारगेट बनाना चाहिए।

यूथ बड़े आराम से यह चढ़ाई ढाई से तीन घण्टे में चढ़ सकते है। रास्ता संकीर्ण है व खच्चरों की निरन्तर आवाजाही के कारण थोड़ी बहुत सावधानी रखना आवश्यक है। मौसम साफ हो तो यह बड़ी आनंददायक जर्नी है थोड़ा खराब हो तो यह एडवेंचरस और ज्यादा खराब हो तो डेंजरस।

रास्ते मे आपको खाने-पीने की वस्तुएं बहुत वाजिब रेट पर उपलब्ध है अतः सामान ज्यादा साथ मे नही लेवे। पूरे रास्ते सहयात्री आपकी हिम्मत बढ़ाते रहेंगे, आप भगवान से हिम्मत मांगते रहे, मंजिल पर पहुँच जाएंगे। जीपीएस से ज्यादा भरोसा अपने पैरों पर रखे, स्टिक से चले व साँस फूलने नही देवे।

“एकला चालो रे।”

पहाड़ सिखाते है कि जिंदगी में मुश्किल वक्त आये तो सर झुका कर धीमे-धीमे चलते रहे एवं रुके नही। आसान राह मिल जाये तो जीवन का आनंद ले व तेज चले। मुश्किल समय मे अपने संसाधनों को पूर्ण नियंत्रण में रखे अन्यथा उनका गलत उपयोग मुश्किल बढ़ा देगा।

करीबन पौने चार घण्टे के अंदर हम सभी ने चढ़ाई पूरी कर ली व यमुनोत्री धाम पहुँच गए। आज 10 जून 2019 को सुबह 10 बजे यहाँ का वातावरण सर्द हैं। करीबन आठ डिग्री सर्दी में लोगों की भावनाओं का ज्वार आप सहज महसूस कर सकते है।

वापसी में हम करीबन तीन बजे तक होटल में लौट आये। यहाँ से अब गंगोत्री की तैयारी है। गूगल बता रहा है कि आज मैं 27,675 कदम चल चुका हूं। “एप” दूरी भी करीब 18 किलोमीटर प्रदर्शित कर रहा हैं। गंगोत्री की बात बाद में पहले यमुनोत्री की बात करें।

यमुनोत्री धाम फैक्ट्स

यमुना सूर्यदेव व देवी संजना की पुत्री है एवम यमराज की बहन है। इसीलिए इनको यमुना नाम मिला था। यमुनोत्री मार्ग में स्तिथ भैरव बाबा का मंदिर श्रद्धालुओं की समस्त बाधाओं को दूर करता है। यमुनोत्री का स्त्रोत एक बर्फ की शिला है जो कालिन्द्री पर्वत पर “चम्पासर” नाम से जानी जाती हैं। भक्तगण भगवती यमुना की पूजा से पहले मन्दिर परिसर में दिव्य ज्योति शिला की पूजा करते है। मन्दिर के सूर्य कुंड (गर्म पानी के कुंड) के लिए मान्यता है कि इस कुंड में सूर्यदेव स्वयं एक किरण के रूप में विद्यमान है। इसी सूर्यकुंड में भक्तगण अपने साथ लाये हुए चावलों को गर्म पानी में पकाते है एवं सुखाने के पश्चाक्त प्रसाद के साथ वितरित भी करते हैं।

अपने उदगम स्थल से लंबी यात्रा के पश्चात यमुना नदी इलाहाबाद में गंगा नदी से मिल जाती है। सर्दी की ऋतु के समय यमुनोत्री मन्दिर के कपाट बंद रहने के समय यमुना माता की पूजा यमुनोत्री से 6 किलोमीटर दूर “घरसाली” ग्राम में की जाती है।

हमारा राष्ट्र बहुत महान है व विविधताओं से परिपूर्ण है। जून के माह में एक तरफ 50 डिग्री गर्मी से झुलसता राजस्थान है वहीं हिमालय परिक्षेत्र में दिन में 15 डिग्री व रात को पारा 2 डिग्री तक गिर जाता है।

यमुनोत्री मन्दिर प्रशासन श्रद्धालुओं की सुविधा हेतु पूर्ण प्रयासरत है एवं उम्मीद है कि भविष्य में सुविधाओं में और सुधार होगा। मानवीय दृष्टिकोण से एक मांग यह है कि कंडी, पालकी व सफाई कार्मिकों को कुछ राहत प्रदान की जाए।

संघर्षरत हजारों लेबर्स

Img2019061118202577738470901513672 Education News Rajasthan Shivira.com

Img201906111820091143066078574136576 Education News Rajasthan Shivira.com

इस धाम में हजारों की सँख्या में लेबर कार्यरत है एवं वे कंडी, पालकी व घोड़ो के माध्यम से जातरुओं को जानकीचट्टी से यमुनोत्री धाम लेकर जाते है । यमुनोत्री हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण धाम है एवं प्रतिवर्ष लाखों यात्री यहाँ आते हैं। इन यात्रियों की वजह से इन लेबर को साल में चार माह काम मिलता हैं।

इन लेबर्स को कठोर शारिरिक श्रम करना होता है एवं मिलने वाली नॉमिनल रेट्स के बावजूद प्रत्येक फेरे हेतु टेक्स पर्ची कटानी पड़ती हैं। इन लेबर्स को पूरे वर्ष कार्य भी नही मिलता। बेहतर होगा कि इनकी सुध भी ली जाए। हिन्दू धर्म के एक महत्वपूर्ण धाम के इन सेवार्थीयो को भी एक बेहतर जिंदगी जीने का हक है।

लाखों श्रद्धालुओं के आवागमन के बावजूद भी बेस स्टेशन जानकीचट्टी में कोई स्तरीय चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नही हैं। प्रशासन को इस तरफ ध्यान देना ही चाहिए ताकि सावधानी बरती जा सके। भविष्य में रोप-वे के बारे में भी प्लान किया जा सकता हैं।

आखिर शाम चार बजे हमारा ग्रुप अगले डेस्टिनेशन के लिए ” बोलो रे बलिया अमृतवाणी” के उदघोष के साथ रवाना हुआ। यमुनोत्री से निकलने के पश्चाक्त हमे एक सदस्य की तबियत खराब होने के कारण सवा छह बजे रास्ते मे एक हॉस्पिटल में इलाज लेना पड़ा एवं रात्रि विश्राम किया। चिकित्साअधिकारी ने बहुत बेहतर तरीक़े से तीमारदारी की। अस्पताल में सारे ही पद रिक्त थे।
बोलो “यमुना माता की जय”।

दिवस- चतुर्थ

गंगोत्री धाम की यात्रा व दर्शन।

मूल तीर्थ गंगोत्री

समस्त तीर्थ में गंगोत्री को मूल तीर्थ कहा जाता हैं। गंगोत्री गंगा नदी का उदगम स्थान है। यहाँ मुख्य मंदिर का निर्माण आदिगुरु शंकराचार्य ने किया। मूलतः इस मन्दिर का निर्माण लकड़ी से किया गया था।

इसके पश्चाक्त 18 वीं शताब्दी के आरम्भ में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने इसका पुनर्निर्माण करवाया। जयपुर राजघराने द्वारा तत्पश्चात इस मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य करवाया गया था।

यहां दर्शनार्थियों हेतु दर्शन मई से लेकर अक्टूबर तक होते है। प्रत्येक वर्ष अक्षय तृतीया को मन्दिर के कपाट खुलते है व दीपावली के दिन कपाट बंद कर दिए जाते हैं।

Img201906111716125808143184097388810 Education News Rajasthan Shivira.com

ऐसा कहा जाता है कि रघुकुल के प्रतापी राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलवाने के लिए यहाँ के शिलाखंड पर बैठकर कठोर तपस्या की थी। इसी शिलाखंड के नज़दीक ही 18 वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण किया गया था। गंगा मैया का अवतरण कैलाश पर्वत से माना जाता है एवं पुनः अवतरण गोमुख से माना जाता हैं।

गोमुख

समय बीतते व भौगोलिक अवसरंचना परिवर्तन के कारण गोमुख पीछे सरकते हुए आज यहाँ से 16 किलोमीटर दूर है। यहाँ प्रतिवर्ष आने वाले लाखे श्रद्धालुओं में से बड़ी सँख्या में श्रद्धालु गोमुख दर्शन लाभ प्राप्त करते हैं।

गंगोत्री मन्दिर में भगीरथ व भोलेनाथ के सुंदर मन्दिर हैं। गंगा को नदी नही कहा जा सकता क्योंकि यह हमारी गंगा मैया है। इसकी कुल लम्बाई 2500 किलोमीटर से अधिक है। इसे अलग-अलग स्थानों पर अनेक नाम से पुकारा जाता हैं।

देवप्रयाग

देवप्रयाग में अलखनंदा व भागीरथी नदी का मिलन होता है एवम इसको गंगा नाम से सम्बोधित किया जाता हैं।

आज सबसे पहले महादेव के चरणों मे प्रणाम की उनकी कृपा से हमारा दल आज दूसरे धाम ” गंगोत्री” के लिए प्रस्थान करेगा।

धाम गंगोत्री

गंगोत्री हिन्दू धर्म के धर्मावलंबियों हेतु एक अत्यंत महत्वपूर्ण धाम है। यहाँ गंगा मैया का मंदिर है। इसके चारों तरफ अत्यंत मनोरम प्राकृतिक सौंदर्य है।

उत्तराखंड में यह मंदिर उत्तरकाशी से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ है। भागीरथी नदी के किनारे गंगा नदी का उदगम स्थल गंगोत्री हैं। ऐसा माना जाता पर भगवान शिव ने गंगा नदी को अपनी जटाओं में इसी स्थान पर धारण किया। इसी स्थान पर श्रीराम के पूर्वज राजा भगीरथ ने कठोर तपस्या की। उनके कठोर तप के कारण ही गंगा नदी का पृथ्वी पर अवतरण हुआ। उनके कठोर तप के कारण ही आज हम किसी भी कठोर मेहनत के प्रयास को “भागीरथी प्रयास” कहते हैं।

आज सुबह हमने खरादी के होटल आस्था को छोड़ा व गंगोत्री की तरफ अग्रसर हुए। रास्ते मे उत्तरकाशी के काशी विश्वनाथ मन्दिर के दर्शन किये। उत्तरकाशी में भगवान शिव को समर्पित विश्वप्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर हैं। इसकी स्थापना परशुरामजी ने की थी। मन्दिर परिसर में स्तिथ शक्ति मन्दिर में 6 मीटर ऊंचा व 90 सेंटीमीटर परिधि वाला त्रिशूल है। इस त्रिशूल का ऊपरी भाग लोहे व निचला भाग तांबे से निर्मित है। पौरोणिक कथाओं के अनुसार माता दुर्गा ने इसी त्रिशूल से महिषासुर वध किया था। उत्तरकाशी के निकलते ही “हीना” पर्यटन पुलिस चौकी है।

धरासू बैंड से उत्तरकाशी व उत्तरकाशी से गंगोत्री की यात्रा मनोरम है। उत्तरकाशी के पश्चात गंगोत्री की तरफ आप डवलपमेंट को महसूस कर सकते है। इस रास्ते मे अनेक बिजली उत्पादन सयंत्र, ब्रिज, राजकीय संस्थान, मन्दिर, बड़ी मूर्तियों के दर्शन इत्यादि देख सकते है।

उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में अनेक विकास कार्य दिखाई दे रहे हैं। पूरे पहाड़ में पर्वतों को तोड़ कर मार्ग चौड़े किये जा रहे हैं। टिहरी बांध निर्माण पश्चाक्त जलमग्न हुए मार्ग, गाँव इत्यादि की पुनर्निर्माण व पुनर्निवास कार्य संचालित हैं।

पहाड़ी क्षेत्र में बड़ी टनल निर्माणाधीन है इसके निर्माण पश्चाक्त यमुनोत्री जाने की दूरी कम हो जाएगी। बेहतर व बड़ी सड़क निर्माण पश्चाक्त पहाड़ी में रात को भी यातायात सम्भव हो सकेगा। राष्ट्रीय राजमार्ग 94 व 104 के पूर्ण निर्माण कार्य पश्चाक्त अनेक प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष लाभ मिलेंगे।

गंगोत्री राह में एक छोटा सा लेकिन विकसित ग्राम गंगनानी है यहाँ भी गर्म पानी का कुंड हैं। हर्षिल परिक्षेत्र से पूर्व से ही नयनाभिराम दृश्यों की श्रंखला आरम्भ हो जाती हैं। गंगा नदी का महात्म्य पर एक पुस्तक पढ़ने से कही अधिक ज्ञानरूपी अहसास “गंगा मैया” के पल भर दर्शन से हो जाता हैं। यहाँ दोपहर के समय संध्या काल का अहसास अत्यंत सामान्य हैं।

पूरे राह में निर्माण कार्य जारी है लेकिन यातायात पूर्णतया निर्बाध हैं। सोनवाड़ के क्षेत्र में नदी पर निर्माण कार्य जारी हैं। हर्षिल क्षेत्र से पूर्व प्रकृति के अकूत भंडार उपलब्ध हैं। रास्ते मे कुछ डेंजर जोन है जहाँ उत्तराखंड के बाहर के वाहनों को बेहद सावधानी रखनी अपेक्षित है।

बोतलबंद पानी का बड़ा कारोबार

सम्पूर्ण क्षेत्र विविधतापूर्ण औषधियों से परिपूर्ण है अतः यहाँ की चट्टानों से रिसते पानी का उपयोग बेहद स्वास्थ्यवर्धक है।( इसके उपरांत भी लोग स्वास्थ्य कारणों से बोतलबंद पानी का ही सेवन करते है, आप भी अपने स्वास्थ्य के अनुसार ही निर्णय लीजिये, यदि पाचन समस्या हो तो सुरक्षित जल का ही सेवन करे) प्रकृति की गोद मे सैकड़ो प्रकार के वृक्ष, वनस्पति व जीव-जंतुओं का अस्तित्व है। इनकी रक्षा व सरंक्षण मानव मात्र का परम पावन उत्तरदायित्व है।

रास्ते मे आप हर्षिल से पहले सुक्खी टॉप में चाय ब्रेकफास्ट ले सकते हैं तथा यादगार मोमेंट्स हेतु सेल्फी का शौक पूरा कर सकते है। यहाँ से गंगोत्री करीबन 34 किलोमीटर दूर हैं। इन टिपिकल कैंचीदार सड़को पर अपरिपक्व व बाहरी ड्राइवर सभी को मुश्किल में डालते हुए नजर आना आम है अतः निवेदन है कि अगर अपनी गाड़ी लाये तो लोकल ड्राइवर साथ मे ले।

प्रकति की पुकार

नेलङ्गाना में गंगा नदी के पाट की विराटता का अनुभव कर सकते हैं। आप यहां से सहज अनुमान लगा सकते हैं कि किस लिएसम्पूर्ण भारतीय सभ्यता गङ्गा के दोनों और पल्लवित हुई? क्यों हम गंगा को मैया कहकर बुलाते है? हम पेड़, पौधों, वनस्पति, जीवों, जानवरों की पूजा करते है लेकिन उनकी केयर नही करते जबकि विदेशों में सिर्फ केयर करते है। प्रकृति को गौर से सुनो तो उसकी कराह कह रही है अब पूजा चाहे छोड़ दो लेकिन मेरी केयर करो।

राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोच्च

रास्ते मे बहुत मनोरम दृश्य आते है हमको उनको जरूर शूट करना चाहिए लेकिन किसी ही फौजी केम्प या मूवमेंट को शूट नही करना चाहिए। यहाँ सावचेत रहना जरूरी है क्योंकि आज की आधुनिक टेक्नोलॉजी के युग मे हम हमारे इक्यूपमेंट पर पूरा भरोसा नही कर सकते व अनजाने में देश की महत्वपूर्ण सूचना अन्य देशों को उपलब्ध करवा सकते है।

पहाड़ो में प्रकृति पल-पल रंग बदलती है आप एक ही दिन में अलग अलग समय एक ही स्थान की फोटो ले तो अलग-अलग रंग मिलेंगे। गंगोत्री में कुछ स्थानों पर फोटोशूट वर्जित है। इसका ध्यान रखे।

मनोरम घाटी

गंगोत्री से पहले धराली में कुछ होटल्स उपलब्ध है। यह गंगोत्री से 21 किलोमीटर पहले हैं। गंगोत्री के आसपास के एरिया में मुम्बई की मानिंद बरसात कभी भी हो सकती हैं। कोपांग चौकी आने पर आपको अपना सामान व्यवस्थित कर लेना चाहिए क्योंकि अब आप गंगोत्री के बहुत नजदीक हैं। भैरोघाटी से नजारे और भी दिलकश होने लगते हैं।

गंगोत्री प्रवेश से पूर्व निजी वाहन हेतु नगर पंचायत की 50 रुपये की पार्किंग रसीद कटवानी पड़ेगी। गंगोत्री धाम पहुँचने पर पहले घाट पर जाकर पूजन/अर्चना व स्नान पश्चाक्त गंगा मैया के दर्शन किये जा सकते हैं । मन्दिर के बाहर बाजार में नाना प्रकार की वस्तुएँ उपलब्ध हैं।

दर्शन समय अगर हल्की बरसात होने लगे, हल्की आंधी आने लगे तो हड़बड़ी नही करे क्योकि कुछ समय मे ही मौसम ठीक हो जाएगा। यदि भयंकर काले बादल छा जाए तो दर्शन कर तुरन्त सुरक्षित स्थान (होटल कमरा, पक्के निर्माण) की तरफ बढ़ना चाहिए। पहाड़ी इलाकों में बरसात के समय यदि आप पहाड़ के पास है तो पहाड़ से सट कर आगे बढ़े।

गंगोत्री के पश्चात चारधाम यात्रा का अगला डेस्टिनेशन केदारबाबा के दर्शन हेतु केदारनाथ धाम चलना होता हैं। आज शाम के छः बजे रहे है।

गंगोत्री धाम की यात्रा सहज होती है। आपको पार्किंग से महज एक किलोमीटर के अंदर ही गंगोत्री स्नान हेतु घाट एवं गंगा मैया का मन्दिर हैं। प्रशासन व्यवस्था भी उचित है, मन्दिर के आस-पास समस्त प्रकार की सुविधा उपलब्ध हैं।

बोलो ” गंगा माता की जय”।

दिवस पंचम:

दिवस पंचम की शुरुआत सुबह जल्दी उठ कर तैयार होने से हुई लेकिन हमने सुबह 8 बजे यात्रा आरम्भ की एवं रात को साढ़े 8 बजे कुंडू पहुँचे। कुंडू में रात को सोने की व्यवस्था की। हमने आज बहुत धीमी गति से यात्रा की थी अन्यथा सोनप्रयाग पहुँच सकते थे।

बातें केदारनाथ की

Img201906121928062428541740518731684 Education News Rajasthan Shivira.com

Img201906130943552191979936220119211 Education News Rajasthan Shivira.com

रात को खाना खाते समय होटल मालिक व केदारनाथ से लौटे एक यात्री दम्पति ने कुछ रोचक बातें बताई। उन्होंने बताया कि स्थानीय कई लोग एक ही दिन में बेस से मन्दिर दर्शन करके वापस आ जाते है। सामान्य आदमी को बेस से मन्दिर तक जाने में सात से आठ घण्टे लगते है। पूरा रास्ता विविधताओं से भरा है। कही रास्ता सामान्य है, कही सिर्फ 5 फ़ीट चौड़ा है, कही चढाई है, कही ढलान है। रास्ते मे अचानक बरसात शुरू हो जाती है, कभी तेज हवा चलने लगती है, कभी ओले गिरने लगे जाते है। कुल मिला कर रास्ता रोमांचक हैं।

रास्ते में लिमचोली में काफी चढाई हैं। रास्ते मे अगर कमर में दर्द हो जाये तो बाम के अलावा आप सरसो में इलायची चूर्ण मिलाकर मालिश कर ले। सन 2013 में इस क्षेत्र में भयंकर हादसा हो चुका हैं उस हादसे में करीबन 4 हजार लोग काल-कलवित हो गए थे । प्रशासन ने उस समय सारा एरिया सील कर दिया था । इस हादसे से पहले गौरीकुंड में हादसा हुआ था । एक आश्रम ने किराए के चक्कर मे आश्रम के गेट पर ताला लगा दिया था ताकि लोग बिना किराया चुकाए भगदड़ में निकल नही जाए । हादसे में पूरा आश्रम ही समाप्त हो गया था। लोग वहाँ धार्मिक गतिविधियों के अलावा इस क्षेत्र को पिकनिक क्षेत्र मानने लगे थे।

(नोट- हम धार्मिक उन्माद के समर्थक कदापि नही ही परन्तु धार्मिक स्थलों की शुचिता के हामी निःसंकोच है। )

हादसे के समय नदी में जलस्तर बढ़ गया था। बरसात के बाद बादल फटने के कारण जलस्तर में अविश्वसनीय वृद्धि कर कारण नदी के दोनो किनारे कट गए थे। इस दुर्घटना में अनेको इंसान काल-कलवित हो गयर थे एवं अनेक व्यापारियों को करोड़ो का नुकसान हुआ था। इतने बड़े हादसे के बावजूद मन्दिर में एक इंच का नुकसान नही पहुँचा था। यह धर्म है।

यहाँ बदल सकती है किस्मत

मिलेनियम स्टार अमिताभ बच्चन की कम्पनी एबीसीएल कॉर्प जब फेल हो गई थी तब अमिताभ साहब यहाँ आये थे, इसके बाद उन्हें “कौन बनेगा करोड़पति?” प्रोजेक्ट मिला व उनकी तकदीर बदल गई थी। ऐसे असँख्य उदाहरण है सदियों से भक्तों की बाबा के मन्दिर में सुनवाई होती है। भोलेनाथ की भक्तों पर असीम कृपा है, उससे जो मांगे जब मांगे उस भक्त को अवश्य मिलता हैं।

केदारनाथ मंदिर के आसपास रहने के लिए कमरे-टेंट दोनो उपलब्ध हैं। यात्रा कठिन अवश्य है लेकिन यहाँ बच्चे से बूढ़े बड़ी आसानी से इस यात्रा को भोलेनाथ की कृपा से पूर्ण करते हैं

(जय केदारनाथ की, जय केदारबाबा की)

दिवस षष्टम

आज सुबह 7 बजे कुंडू से रवाना हुए। कुंडू से चार किलोमीटर दूर ही गुप्तकाशी है। हिमालय में अनगिनत घार्मिक डेस्टिनेशन है। हर पहाड़ी की अपनी दास्ताँ व अपने विश्वास है। भारत इसीलिए खूबसूरत है क्योंकि यह विविधता का संगम एवं विश्वास की एकात्मकता हैं।

भारत की नींव में सरलता, धार्मिकता, विश्वास, त्याग, शौर्य, सतीत्व व भाईचारे को रखा गया है। विदेशी सोचते है कि भारत मे धर्म है व भारतीय सोचते है कि धर्म मे भारत हैं। भारतीयता उस विचार बिंदु से शुरू होती है जहाँ मानवता परिष्कृत होती है उसकी यात्रा सरल जीवनशैली व सर्वोच्च देशभक्ति से होकर सम्पूर्णता की मंजिल को प्राप्त करना चाहती है जिसका नाम “मोक्ष” है , इस राह का एकमात्र पाथेय “सनातन धर्म” हैं।

गुप्तकाशी में दिन भर हेलिकॉप्टर्स की आवाजाही बनी रहती है। यहाँ पवन हंस लिमिटेड द्वारा हेलीकॉप्टर सुविधा प्रदान की जा रही हैं। इसके अलावा तम्बी ग्राम से भी हेलीकॉप्टर सुविधा उपलब्ध हैं। अभी आसमाँ में ट्रैफिक जाम नही है लेकिन सड़क पर जाम बना रहता है। सरकार ने पहाड़ी की पतली एक लेन सड़को पर हजारों करोड़ लगाकर उन्हें डबल लेन बनाने का प्रयास किया है। अब हमारी बारी है कि हम डिसिप्लिन से इनका यूज़ करे।

केदारनाथ:-

भक्त पालक व शत्रु विनाशक बाबा केदारनाथ का मंदिर 12 ज्योतिर्लिंग में से एक हिमालय की पहाड़ियों में हरिद्वार से 262 किलोमीटर दूरी पर विराजमान हैं। यह उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्तिथ हैं। इस मंदिर के तीन तरफ ऊँचे पहाड़ है। इन पहाड़ों की ऊंचाई 21 हजार फीट से भी अधिक हैं। यह नर नारायण पहाड़ कहलाते है।

Img201906140224051668295622545481690 Education News Rajasthan Shivira.com

Img201906140558454011562565843948618 Education News Rajasthan Shivira.com

ऐसा माना जाता है कि एक हजार से अधिक पुराने इस मंदिर का निर्माण पांडवों के वंशज जनमजेय ने करवाया था। कुछ लोग इसका निर्माण मालवा के राजा भोज द्वारा करवाया जाना मानते हैं। इसका जीर्णोद्धार आदिशंकराचार्य द्वारा 8 वीं शताब्दी में करवाया गया था। यह मंदिर 85 फ़ीट ऊंचा व 187 फ़ीट चौड़ा हैं। इसकी दीवारें बहुत चौड़ी व अत्यंत मजबूत हैं। यह मंदिर स्थापत्य कला का बेमिसाल उदाहरण है। मन्दिर निर्माण में प्रयुक्त भारी पत्थरों को इंटर लॉकिंग किया गया हैं। मन्दिर के बाहर नन्दी विराजमान हैं।

मन्दिर प्रांगण में द्रोपदी सहित पांडवों की मूर्तियां हैं। पांडवों ने अपने कुटुम्बजनों को महाभारत युद्ध मे मारने के पश्चाताप हेतु बाबा केदारनाथ की पूजा अर्चना की थी। यह मंदिर समुन्दरतल से 14000 फ़ीट की ऊँचाई पर निर्मित है। जून 2013 की त्रासदी में पर्वतीय क्षेत्र से बहकर आई एक शिला के कारण मन्दिर की एक ईंट भी क्षतिग्रस्त नहीं हुई थी। इस शिला का नाम “भीमशीला” रखा गया हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार 13 वीं से 17 वीं शताब्दी तक एक “छोटा हिमयुग” आया था। इन चार सौ वर्षों तक केदारबाबा का यह मंदिर बर्फ के अंदर रहा था। मन्दिर के चार सौ वर्ष दबे रहने के चिन्ह आज भी मौजूद है। यह छः फ़ीट चबूतरे पर निर्मित अत्यंत मजबूत मन्दिर तत्कालीन इंजीनियरिंग का एक शानदार मिसाल है।

आज हमको केदारबाबा के दर्शन हेतु पैदल यात्रा करनी है। केदारनाथ जाने वाला हर यात्री दूसरे से इस बारे में बाते करता है, गूगल करता है, जानकारी एकत्र करता है, यात्रा के बारे में अपना रोडमेप बनाता है। जब वो वास्तविक यात्रा करता है तो रियल कंडीशन्स उसकी कल्पना से कही अलग होती हैं। यह एक यात्रा है जो सबके लिए अलग अलग होती है क्योंकि प्रकृति रंग बदलती रहती है व हर व्यक्ति उसे अलग-अलग प्रकार से ग्रहण करता हैं।

हम उत्तराखंड के पहाड़ो की श्रंखलाओं के बीच जब भी बर्फ से लकदक कोई पर्वत चोटी दिखाई देती है तो अनायास ही शिवकृपा की अनुभूति होने लगती हैं।

सोनप्रयाग पहुँचने पर आपको आपको अपनी गाड़ी यही पार्क करनी होगी। इसके पश्चाक्त गौरीकुंड व केदारनाथ की यात्रा आरम्भ होगी। यहाँ से स्थानीय टैक्सियों में 20₹ प्रतिव्यक्ति भाड़ा देकर गौरीकुंड जाना होगा। पीक टाइम में टैक्सियों में बैठने के लिए आपको लाइन में लगना होगा। तत्पश्चात गौरीकुंड से पैदल चढाई करनी होगी। VIP हेतु प्रशासन कुछ अलग व्यवस्था करता हैं। गौरीकुंड में यात्रियों का रजिस्ट्रेशन होगा।

हम 12 बजे यात्रा शुरू करके करीब तीन बजे तक चार किलोमीटर चल चुके हैं। रास्ते मे बरसात शुरू हो चुकी है। यहाँ बरसात एक क्षण में आती है व कुछ मिनट में बंद भी हो जाती हैं।

केदारबाबा के दर्शन

हम रात को डेढ़ बजे केदारनाथ पहुँचे। जब हम केदारनाथ पहुँचे बेस कैंप से लेकर मंदिर तक हम छह व्यक्तियो के अलावा कोई भी व्यक्ति रास्ते मे नही मिला। कम्प्लीट खाली सड़क, काले पहाड़, बहती नदी की आवाज, जबरदस्त ठंड में साइन बोर्ड्स की मदद से मन्दिर पहुँचे। मन्दिर के वातावरण को दिखकर तन , मन, आत्मा प्रफुल्लित हो गए। मन्दिर केम्पस में काफी लोग मौजूद थे।

मन्दिर में हमने प्रातःकालीन विशेष पूजा की। मंदिर के गर्भगृह में वातावरण इतना विशिष्ट होता है जिसे शब्दों में वर्णीत करना एक मनुष्य के बस में नही है। अलौकिक दर्शन लाभ के पश्चाक्त समूह का विचार पुनः पहाड़ो से उतरने का था लेकिन अत्यंत तीव्र ठंड, तेज हवा व थकावट के कारण कुछ समय रेस्ट हेतु होटल तलाश की गई।

मई-जून के महीनों में भीड़ अधिक होने पर सुबह तीन बजे से लोग लाइन में लग जाते है। अतः आप भी प्रातः दर्शन हेतु थोड़ा जल्दी मन्दिर पहुँचे।

दिवस सप्तम

बाबा केदारनाथ के पूजन व कुछ आराम के पश्चाक्त सुबह पुनः साढ़े छः बजे मन्दिर परिसर के फोटोज लिए। सभी सदस्यों के तैयार होने के इंतजार में बाकी सदस्य नाश्ता कर रहे है।

करीबन साढ़े 9 बजे पहाड़ों से उतरना आरम्भ करेंगे व उम्मीद करते है कि चार बजे तक बेस होटल पहुँच कर आज ही धाम- बद्रीनाथ जी हेतु रवाना हो सकेंगे।

पहाड़ो से उतरने में समय लग गया था। हमारा समूह करीब पांच बजे तक नीचे आ सका था अतः आठ बजे हमने सीतापुर में होटल में कमरे लिए व रेस्ट कर रहे हैं।

दिवस अष्ठम

बद्रीनाथ धाम-

Img201906152234148993003700004143559 Education News Rajasthan Shivira.comअलखनंदा नदी के किनारे एवं नरनारायण के पहाड़ों के बीच भगवान विष्णु का बैकुंठ धाम बद्रीनाथ है। यह भारत के चार धामो में से एक हैं। इसे सतयुग का धाम माना जाता हैं। यहां मार्कण्डेय शिला पर बिराजकर मार्कण्डेय ने भगवन नारायण का तप किया था।

इस धाम में जब भगवान नारायण ने कठोर तप किया था तब माता लक्ष्मीजी ने बेर के वृक्ष का रूप लेकर नारायण हेतु छाया की थी। सँस्कृत भाषा मे बेर के पेड़ को “बद्री” कहते है इसी कारण इस स्थान का नाम बद्रीधाम पड़ा।

यह धाम उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में दिल्ली से सवा पाँच सौ किलोमीटर दूरी पर स्तिथ है। ऐसा माना जाता है इस धाम में भगवान विष्णु प्रत्यक्ष है एवं यहाँ आने वाला कभी खाली हाथ नही जाता। इस धाम को आठवीं शताब्दी में आदिगुरु शंकराचार्य ने स्थापित किया था। इस विशाल प्राचीन मंदिर की स्थापना कस्तूरी शैली में की गई हैं।

इस मंदिर में बहुत महत्वपूर्ण शिलाएं- मार्कण्डेय शिला, वराह शिला, नारद शिला व नरसिंह शिला है जिनके दर्शन से ही स्वर्गिक सुख का अनुभव होता है। यहां मार्कण्डेय शिला पर बिराजकर मार्कण्डेय ने भगवन नारायण का तप किया था।

भगवान बद्रीनाथ को भक्तगण तुलसी की माला, कच्चे चने की दाल, मिश्री व गिरी के गोले का प्रसाद अर्पित करते हैं। ऐसा बताया गया है बद्रीनाथ में पितरों का श्राद्ध कर देने के पश्चाक्त अन्य स्थान पर श्राद्ध नही किया जाता क्योकि यहाँ श्राद्ध के बाद पितर देवस्वरूप हो जाते हैं।

बद्रीनाथ मन्दिर में स्तिथ गर्म पानी के कुण्ड का जलस्त्रोत अज्ञात है। मान्यता है कि इस गर्म पानी के कुंड में स्नान से व्यक्ति सभी पाप से मुक्त हो जाता हैं। गरुड़ शिला के पास से इसका उदगम स्थल दिखाई देता है।

आज बुधवार है। भगवान श्री गणेशजी के चरणों मे वंदन पश्चाक्त आज लिखने में बहुत अच्छा लग रहा है कि यात्रा स्थायी अधिगम का एक अच्छा माध्यम है।

महादेव जी की कृपा से मुझे उत्तराखंड भृमण का अवसर मिला। इस यात्रा में यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ धाम के पश्चात आज मुझे धाम बद्रीनाथ जाने का अवसर मिल रहा है। कपाट खुलने के बाद अभी तक बद्रीनाथ धाम में पहले 36 दिनों में 6,42,170 दर्शनार्थी पहुंच चुके। केदारनाथ में 6,32,576, यमुनोत्री में 3,24,528 व गंगोत्री में 3,13,300 की संख्या है।

केदारनाथ से जब हम बद्रीनाथ की तरफ बस रूट से निकलते है तो रास्ते मे नारायण कोटि में पुराने मंदिरों का समूह हैं। इसके बाद गुप्तकाशी आता है जो कि स्वयम में एक धार्मिक डेस्टिनेशन है। यहाँ से हरिद्वार 206 किलोमीटर, हरिद्वार के रास्ते मे गुरूप्रयाग 46 किलोमीटर है। मयाली अलग रास्ते पर 78 किलोमीटर पर हैं।

सुरक्षा सर्वोपरि

पहाड़ी रास्तो पर जगह-जगह बोर्ड लगा रखे हैं ” चढ़ती गाड़ी को प्रथमिकता दे”! इसको पहाड़ी ड्राइवर्स फॉलो करते है लेकिन बाहरी ड्राइवर नही सिख सके। पहाड़ों में Accident Prone Areas बहुत है अतः बाहरी ड्राइवर्स को पहाड़ों में ड्राइविंग एटीकेट्स फॉलो करने चाहिए। पहाड़ो में कई स्थानों पर मार्ग धंस जाते है व वर्षा के समय लैंड्स स्लाइड का ख़तरा भी रहता हैं । पहाड़ो में बड़े तीव्र मोड आते है जहाँ हॉर्न बजाना आवश्यक हैं। बाहरी ड्राइवर यहाँ स्पीडी ओवरटेक की कोशिश करते है या जाम के समय पहले निकलने का प्रयास करते है जो कि अनुचित है क्योंकि इसमें समय बहुत कम बचता है लेकिन रिस्क बहुत बढ़ जाती हैं। पहाड़ में सुरक्षित रहने का मूल मंत्र धीमी गति से अपनी साइड ड्राइविंग में हैं।

इसी मार्ग पर ऊखीमठ है जहाँ राजकीय पर्यटन आवास गृह उपलब्ध हैं। ऊखीमठ में दर्शनीय प्राचीन मंदिर स्तिथ हैं। तुंगनाथ भी इसी क्षेत्र में हैं। यह बहुत खूबसूरत क्षेत्र है यहाँ सभी स्तर की होटल्स उपलब्ध हैं। यहाँ के सीढ़ीनुमा खेती के समान आप यहाँ की होटल्स का साइज भी आप दूर से नही लगा सकते।

केदारबाबा के मन्दिर से यह ज्ञान भो होता है कि अगर क्षमता निहित हो तो पत्थर भी पूजा जाता है। 2013 के हादसे में जिस शिला ने बाबा के मंदिर की रक्षा की उसे आज “भीमशीला” कहा जाता है।

इस क्षेत्र में अमर शहीद श्री वीरेंद्र सिंह नेगी को बहुत सम्मान से याद किया जाता है। कन्था में उनकी स्मृति में द्वार का निर्माण किया गया हैं। इस परिक्षेत्र का “चोपता” स्थान युवाओं में लोकप्रिय हैं। यहाँ Wildlife campus and resort हैं। इसको मिनी स्विजरलैंड भी कहा जाता हैं। यह चोपता पर्यटन केंद्र गोपेश्वर ग्राम में स्तिथ हैं।

उच्च शीर्ष पर पाए जाने वाले पादपों पर भी अनुसंधान कार्य किया जा रहा हैं। वनक्षेत्रों में वृक्ष का बहुत आदर है क्योंकि ये वृक्ष भी शिव के समान विष पीने की क्षमता रखते हैं। वातावरण की दूषित गैसों को यह वृक्ष अपने मे समा लेते है।

केदारनाथ से बद्रीनाथ राह में चमोली बहुत सुंदर जिला है। इसका मुख्यालय “गोपेश्वर” है। इस परिक्षेत्र में “मण्डल” भी एक महत्वपूर्ण स्थान हैं। इस सम्पूर्ण क्षेत्र में अनेक प्राचीन मंदिर है जिसमें से बासुकीनाथ जी का भी मन्दिर हैं।

केदारनाथ से बद्रीनाथ का रास्ता बहुत खूबसूरत है। यहाँ सड़को का दोहरीकरण कार्य नही हुआ हैं। बहुत पतली पर्वतीय सड़कों के कारण वाहन धीमी रफ्तार से आगे बढ़ते हैं। सम्पूर्ण पहाड़ी मार्ग पर प्रशासन द्वारा अनेक प्रकार के निर्देशक व सामाजिक सोद्देश्य सूचना पट्ट लगा रखे हैं।

पर्वतीय क्षेत्र का अनुपम संसार

पर्वतों का अपना संसार है। यहाँ गूढ़ रहस्यों, प्राकृतिक जड़ी बूटियों, पादपों, वनस्पतियों, मंदिरों का विशाल खजाना हैं। वर्तमान में इस दिशा में कार्य किया जा रहा है भविष्य में और अधिक कार्य अपेक्षित हैं।

एक वयोवृद्ध पहाड़ी व्यक्ति ने बताया कि अब सड़के बड़ी हो रही है लेकिन नदियाँ छोटी हो रही है। नदियों का जलस्तर व जल की गुणवत्ता दोनो कम हो रही हैं । आवश्यक विकास व निर्माण आवश्यक है उन्हें प्राथमिकता से करना चाहिए लेकिन अनावश्यक निर्माण को रोका जाना चाहिए। अगला विश्वयुद्ध जल के लिए होना सम्भावित हैं। पहली बार देखने वालों के लिए इस क्षेत्र की नदियों के पाट विशाल व गहराई बहुत है लेकिन ऐसा है नही, ये कम हो रहे हैं। नवयुवाओं हेतु पहाड़ ग्रीन है लेकिन सयानों के अनुसार ये उजड़ रहे हैं।

केदारनाथ से चमोली तक कोई एटीएम नही मिला। चमोली में नेटवर्क के कारण एटीएम ऑपरेट नही किया जा सका। पहाड़ी में बेसिक सुविधाओं के विकास हेतु काम करने की आवश्यकता हैं।

बद्रीनाथ के रास्ते मे गोपेश्वर से गोविंदघाट 64 किलोमीटर व जोशीमठ 45 किलोमीटर है। बद्रीनाथ से 2 किलोमीटर दूर माणा बहुत महत्वपूर्ण हैं। पीपलकोटी केदारनाथ-बद्रीनाथ मार्ग के महत्वपूर्ण डेस्टिनेशन में से एक हैं। गांव वाटूला में NHIDCL के तहत कार्य प्रगति पर है।

इसके बाद ग्राम पंचायत पीपलकोटी क्षेत्र आरम्भ होता है। यहाँ पर्यटक आवास गृह सुविधा, धर्मशालाएं एवम अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र उपलब्ध हैं । इस क्षेत्र में हस्तशिल्प मेले भी लगते है जिनमे लोगो मे बहुत रुचि हैं।

उत्तरप्रदेश से अलग हुए इस राज्य का नाम उत्तराखंड रखा गया था। उत्तराखंड नाम रखने के अपने उचित कारण रहे होंगे लेकिन “देवभूमि” शब्द प्रयोग इस राज्य हेतु इतनी अधिक बार व इतने अधिक स्थान पर किया जाता है कि लगता है कि इस राज्य का नाम “देवभूमि” ही रखा जाना चाहिये था।

पीपलकोटी ग्राम के पश्चाक्त धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण पातालगंगा आती हैं। इसके साथ ही गुलबकोटी से बद्रीनाथ वन क्षेत्र आरम्भ हो जाता हैं। इसके आगे हेलंग में एसबीआई की शाखा हैं।
एनटीपीसी का यहां प्रोजेक्ट है। इसके बाद वृद्धबजरी नामक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थान हैं।

इस परिक्षेत्र में हेमकुंड साहिब नामक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। इसकी बड़ी महिमा है। सिख समुदाय के भाई-बहन यहाँ विशेष रूप से मत्था टेकने आते है। राजस्थान में अधिकांश राजकीय विद्यालय मुख्यमार्ग पर स्तिथ है जबकि इस क्षेत्र में फैनी में एक राजकीय स्कूल दृष्टिगत हुई।

जोशीमठ नगरपालिका क्षेत्र है। यह आदि शंकराचार्य जी का मठ है। इस विकसित क्षेत्र में समस्त सुविद्याये उपलब्ध हैं। यहाँ नरसिंह भगवान का मन्दिर है। यहाँ भगवान वर्ष में छः माह विराजते हैं।

जोशीमठ से 17 किलोमीटर दूर द्वितीयक मार्ग पर औली स्तिथ हैं। जोशीमठ से निकलने के पश्चाक्त बद्रीनाथ हेतु वाहनों के लिए अपर स्पीड लिमिट 20 किलोमीटर प्रति घण्टा हैं।

बद्रीनाथ धाम से पूर्व हेमकुंड एवं फूलों की घाटी है। हेमकुंड को सिख समुदाय व अन्य लोग हेमकुंड साहिब कहते है। स्थानीय क्षेत्र में अनेक स्थान पर सेवा कार्य भी संचालित होते है। फूलों की घाटी एक अत्यंत प्राकृतिक स्थान है जहाँ अनेको किस्म के फूल बहुतायत में देखे जा सकते है। ऐसा कहा जाता है कि रात्रि समय यहाँ नही ठहरा जाता है।

बद्रीनाथ धाम पहुँचने पर मन्दिर के दर्शन किये। हम मन्दिर देर से पहुँचे थे अतः भगवान की शयन आरती तक रुके। मन्दिर कपाट बंद होने तक महालक्ष्मी पूजन का दर्शन किया।

रात को विश्राम हेतु यहाँ अनेक धर्मशाला व होटल उपलब्ध हैं। मन्दिर व्यवस्था समिति की समस्त व्यवस्थाएं बहुत अच्छी है। कार्यकर्ताओ द्वारा भारी सँख्या में आने वाले श्रद्धालुओं को उचित प्रकार से मैनेज किया जाता हैं।

दिवस – नवम

माना- भारत का अंतिम ग्राम

चारधाम यात्रा पूर्णता पश्चाक्त आज की सुबह पूरे समूह ने आराम से दिन की शुरुआत की। बद्रीनाथ जी से 3 किलोमीटर दूर ग्राम माना/मायना भारत-चीन बॉर्डर का अंतिम ग्राम है। भारत एक शक्तिशाली एवम विशाल राष्ट्र है अतः भारत के इस अंतिम रहवासी ग्राम को देखना पर्यटन दृष्टि से अवश्य रोमांचक है लेकिन राष्ट्रीय दृष्टि से चिंताजनक है क्योंकि यह स्थान भारत के केंद्र बिंदु दिल्ली से बहुत दूर नही है साथ ही हमारी हजारों वर्ग किलोमीटर जमीन पर हमारा अभी नियंत्रण नही हैं।

Img20190616121528450087763273706627 Education News Rajasthan Shivira.com

Img201906161239313634548275625448309 Education News Rajasthan Shivira.com

माना ग्राम की छोटी-छोटी गलियाँ, सहज स्थानीय लोग, भीम पुल, वेदव्यासजी का मंदिर, सरस्वती माता मंदिर, वसुधारा, गणेशजी मन्दिर दर्शनीय है। यहाँ की मेहनती महिलाओं द्वारा ऊन से विभिन्न हस्तनिर्मित उत्पाद बनाए जाते हैं।

इस ग्राम के बारे में एक मान्यता यह भी है कि यह ग्राम शापमुक्त रहता है एवं यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं की आर्थिक समस्याओं का निवारण भी होता हैं।

बद्रीनाथ पूरी से लौटते समय विष्णु प्रयाग के भी दर्शन हुए यहाँ अलखनंदा व धौलीगंगा नदियों का मिलन हैं। जोशीमठ एक महत्वपूर्ण धर्मस्थल है यहाँ से ओली के लिए रोपवे सुविधा उपलब्ध हैं। जोशीमठ के बाद गरुड़गंगा एक महत्वपूर्ण स्थल हैं।

गरुड़गंगा में चाय पी एवं नाश्ता लिया। एक बात शेयर योग्य है। गरुड़ गंगा से आगे हेमकुंड साहिब है जहाँ गुरु गोविंद सिंह जी ने तपस्या की थी। यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण धर्मस्थल हैं। यहाँ की यात्रा थोड़ी जटिल है। रास्ते मे सिख समुदाय द्वारा सेवा कार्य जारी हैं।

एनएच 58 में इसी राह में नन्द प्रयाग है । यहॉ पर मंदाकिनी व अलखनंदा नदियों का मिलन होता हैं। इसके बाद कर्णप्रयाग आता है जहाँ अलखनंदा व पिंडर नदी का मिलन होता हैं।

उत्तराखंड राज्य में हम दस दिनों में जिस भी क्षेत्र में रुके वहाँ सड़के स्वच्छ दिखी एवं आम नागरिक सफाई के प्रति जागरूक नजर आए। आज रात हम नगरासु पहुँच गए है एवं एक होटल में रात्रिकालीन विश्राम पश्चाक्त सुबह ऋषिकेश पहुँच जाएंगे। हमारी यात्रा प्रभुकृपा से पूर्ण हो चुकी है अतः इस यात्रा संस्मरण को यही विराम देते हैं।

सादर व सप्रेम।

सुरेन्द्र सिंह चौहान,

9351515139
suru197@gmail.com

विशेष:-

1. जब ऋषिकेश -गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर भूस्खलन इत्यादि से जाम लगता है तो प्रशासन जेसीबी व पोकलैंड मशीनों से अवरुद्ध रास्ते को ठीक करता हैं। प्रशासन को कई बार रुट चेंज करने पड़ते हैं।

2. 16/17 जून 2013 को हुई आपदा में गौरीकुंड-केदारनाथ पैदल मार्ग रामबाड़ा से आगे धाम तक ध्वस्त हो गया था। 11 सितंबर को पुनः कपाट खोलने के लिए वैकल्पिक रास्ते से धाम तक पहुंचा गया था। अब नया बना रास्ता पहले की तुलना में बहुत चोड़ा लेकिन दूरी बढ़ गई हैं।

3. केदारबाबा के दर्शन को आसान बनाने के लिए प्रशासनिक व्यवस्था में निरन्तर प्रयास जारी है वर्तमान में घोड़ो व टट्टुओं हेतु एक वैकल्पिक मार्ग पर कार्य चल रहा हैं।

4. उत्तराखंड के चारो धाम हेतु हेलिकॉप्टर सुविधा अब उपलब्ध है। हेमकुंड साहिब दर्शन हेतु भी यह सुविधा है। हेलीकॉप्टर यात्रा हेतु पहले से ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवाना आवश्यक रहता है।

5.पहाड़ों में अन्य स्टेट के लोग जाम लगने पर ट्राफिक डिसिप्लिन मेंटन नही करते। जाम लगने पर वे पहले निकलने के लालच में लाइन तोड़ कर जाम की गम्भीरता को और बढ़ा देते है। यह बहुत गम्भीर समस्या है। किसी देश की पहचान देशवासियों से होती है एवं देशवासियों का प्रथम कार्य नियम अनुपालना है। पहाड़ो में ट्रैफिक पुलिस कम दिखाई देती है लेकिन कुछ महत्वपूर्ण स्थानों पर कैमरे लगाकर हैवी पेनल्टी आरम्भ होना आवश्यक हैं।

6. गंगोत्री से नीचे उतरते समय एक बहुत खूबसूरत छोटा सा ग्राम है “हर्षिल”। प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण इस ग्राम में देवदार व भोजपत्र के व्रक्ष इस क्षेत्र का सौंदर्य द्विगुणित कर देते है। यहाँ का एक झरना “मंदाकिनी झरने” के नाम से मशहूर है क्योंकि यहाँ इसी नाम की हीरोइन पर एक मशहूर फिल्म का गाना फिल्माया गया था।

7. इस पहाड़ी क्षेत्र में पलाश के फूलों के रस से तैयार शरबत का सेवन किया जाता है जो कि अत्यंत गुणकारी हैं।

8. ऋषिकेश में ही गङ्गा मैया पहाड़ी क्षेत्र को छोड़कर समतल क्षेत्र में प्रवेश करती है। हरिद्वार में हर की पौड़ी पर प्रतिदिन विश्वप्रसिद्ध “गङ्गा आरती” होती है।

9. पहाड़ो में धारी माता की बड़ी मान्यता हैं। धारी माता को काली माता का रूप माना जाता हैं। श्रीमद्भागवत के अनुसार उत्तराखंड के 26 शक्तिपीठों में धरि माता भी एक हैं।

10. चारधाम की यात्रा की शुरूआत अक्षय तृतीया को गंगोत्री व यमुनोत्री के कपाट खुलने से होती हैं।

11. हरिद्वार व हृषिकेश से चारों धामो हेतु सुबह के समय रोडवेज की बसें चलती है। इन बसों में आप एक दिन पूर्व ही अपना टिकट बुक करवा सकते है। इनमें तुलनात्मक रूप से काफी कम किराया लगता है। आप यात्रा हेतु ट्रैवलिंग एजेंसियों अथवा गाड़ियों के एसोशिएशन कार्यालय से भी वाहन किराए पर ले सकते है। चारधाम यात्रा आरम्भ करने से पूर्व अपना रजिस्ट्रेशन करवाना कतई नही भुलें।

12. इस यात्रा हेतु आप चाहे तो आधुनिक तकनीक यानी ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन इत्यादि वेबसाइटों के माध्यम से करवा सकते है। कुछ प्रमुख वेबसाइट निम्नलिखित हैं।

पहली है गढ़वाल मंडल विकास निगम लिमिटेड की वेबसाइट www.gmvnl.in हैं। इसके माध्यम से आप विभिन्न प्रकार की ट्रेवल, आवास इत्यादि सुविद्याये एडवांस बुक कर सकते है। gmvn का मोबाइल एप भी प्लेस्टोर से डाउनलोड कर सकते है।

Tags: Accident Prone Areas Wildlife campus and resort www.gmvnl.inअक्षय तृतीयाअमर शहीद श्री वीरेंद्र सिंह नेगीअलखनंदा नदीउत्तरकाशीउत्तराखंड के चार धामऊखीमठऋषिकेशऋषिकेश -गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्गऋषिकेश-यमुनोत्री-गंगोत्री-केदारनाथ-बद्रीनाथ-ऋषिकेशऑनलाइन रजिस्ट्रेशनकंडीकालिन्द्री पर्वतकुंडूकेदारनाथकेदारबाबा के दर्शनखच्चरगंगोत्रीगढ़वाल मंडल विकास निगम लिमिटेडगणेशजी मन्दिरगरुड़गंगागोपेश्वरगोपेश्वर से गोविंदघाटगोरखा कमांडर अमर सिंह थापाघरसालीचमोलीचम्पासरचार धाम यात्राचारधाम यात्रा कैसे करेचारधाम यात्रा में सावधानीचारधाम यात्रा संस्मरणचोपताछोटी चार धाम यात्राजगन्नाथपुरीजानकी चट्टीजोशीमठडंडीदिव्य ज्योति शिलादेवप्रयागदेवभूमिदेवी संजनाद्वारकापुरीधारी माताधार्मिक डेस्टिनेशनधौलीगंगानगरासुनरसिंह शिलानारद शिलानेलङ्गानापलाश के फूलों का रसपवन हंस लिमिटेडपवन हंस लिमिटेड द्वारा हेलीकॉप्टर सुविधापांडवों की मूर्तियांपादपोंपालकीप्राकृतिक जड़ी बूटियोंप्रातःकालीन विशेष पूजाफूलों की धाटीबद्रीनाथबद्रीनाथपुरीबाबा केदारनाथबोलो रे बलिया अमृतवाणीभक्त पालकभगवान विष्णु का बैकुंठ धामभगवान शिवभगवान श्री गणेशजीभागीरथभागीरथी नदीभीम पुलभीमशीलामण्डलमंदाकिनी झरनामंदाकिनी नदीमायनामार्कण्डेय शिलामालवा के राजा भोजमिलेनियम स्टार अमिताभ बच्चनयमुनायमुनोत्रीयमुनोत्री दर्शनरामेश्वरमपुरीराष्ट्रीय राजमार्ग 94लिमचोलीवनस्पतियोंवराह शिलावसुधाराविश्वप्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिरवेदव्यासजी का मंदिरशत्रु विनाशकसरस्वती माता मंदिरसीतापुरसूर्य कुंडसूर्यदेवसोनप्रयागहर्षिलहिंदुस्तान का अंतिम गाँवहिंदुस्तान की अंतिम दुकानहिमालय के चार धाम की यात्राहेमकुंड साहिबहेलीकॉप्टर सुविधा
SendShareTweet

Related Posts

20201101 091628 Education News Rajasthan Shivira.com

Shala Darpan updates November 2020

शाला दर्पण अपडेट माह नवम्बर 2020 अपडेट दिनाँक 01 नवम्बर 2020 अपडेट नम्बर 02 शाला दर्पण पोर्टल पर तकनीकी सपोर्ट...

20201001 110056 Education News Rajasthan Shivira.com

School Notice Board:
Important Informations for
Rajasthan State Schools.

स्कूल नोटिस बोर्ड : विद्यालय संचालन हेतु आवश्यक सूचनाओं का संकलन, माह अक्टूबर 2020 स्कूल नोटिस बोर्ड क्या है? राजस्थान...

Img 20200423 171516 1 Education News Rajasthan Shivira.com

Vidya Daan 2.0: Portal to strengthen India’s online education system

विद्यादान 2.0 : भारत की ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था को मजबूती प्रदान करने हेतु। भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय ने विद्यादान...

Img 20200420 183430 Education News Rajasthan Shivira.com

Smile Program: For Class 12 Mathematics students.

स्माइल कार्यक्रम : कक्षा 12 के गणित के विद्यार्थियों हेतु। स्माइल कार्यक्रम के तहत राजस्थान स्कूल शिक्षा विभाग के कक्षा...

Img 20200412 203746 Education News Rajasthan Shivira.com

Smile Program Rajasthan: Complete information about Online education Program.

स्माइल कार्यक्रम : सम्पूर्ण जानकारी। स्माइल कार्यक्रम का परिचय "स्माइल कार्यक्रम" राजस्थान स्कूल शिक्षा विभाग का एक अभिनव नवाचारी कार्यक्रम...

Img 20200408 170800 Education News Rajasthan Shivira.com

Shala Darpan : New Updates related to Shala Darpan

शिक्षा जगत  : शाला दर्पण से सम्बंधित नवीनतम अपडेट्स शाला दर्पण वेबसाइट पर निम्नानुसार अपडेट आये है। इन अपडेट्स के...

Img 20200404 165344 Education News Rajasthan Shivira.com

Munshi Premchand: Books written byPremchand and their free web links.

मुंशी प्रेमचंद : उपन्यास सम्राट प्रेमचंद द्वारा लिखित पुस्तके व उनके निःशुल्क वेब लिंक। भारतवर्ष के आधुनिक काल के लेखकों...

Img 20200223 105949 Education News Rajasthan Shivira.com

Pay Manager updates for the month of February 2020.

पे मैनेजर सम्बंधित माह फरवरी 2020 के अपडेट। शिक्षा जगत : साप्ताहिक पत्रिका दिनांक 23 फरवरी 2020 1. स्वीकृत अवकाश...

Img 20200222 090927 Education News Rajasthan Shivira.com

Permission Process For Phd degree in Education Department of Rajasthan

स्कूल शिक्षा विभाग कार्मिको हेतु पीएचडी उपाधि हेतु अनुज्ञा प्राप्ति प्रक्रिया- स्कूल शिक्षा विभाग के कार्मिकों हेतु पीएचडी उपाधि हेतु...

Img 20200220 170550 Education News Rajasthan Shivira.com

Rajasthan Budget 2020-2021: Provisions related to education sector for the state of Rajasthan.

बजट 2020-2021 : राजस्थान राज्य हेतु शिक्षा क्षेत्र सम्बंधित प्रावधान। राजस्थान राज्य बजट 2020-2021 : शिक्षा सम्बंधित प्रावधान। समावेशी बजट...

Load More

Category

  • Admissions
  • Articles
  • books
  • Celebration and festivals
  • Circular
  • Editorial
  • Education Department
  • Entertainment
  • General Knowledge
  • Government Jobs
  • Government Updates
  • Guest Post
  • Health
  • News
  • Online Forms
  • Online Office
  • Rules and Regulations
  • Scholarship and Schemes
  • School Notice Board
  • Schools
  • Shala Darpan
  • Smile Program
  • SOCIAL MEDIA
  • Stories
  • Students Forum
  • Super Teacher
  • Teaching
  • Tourism
  • Transfers
  • Uncategorized
  • Writer
  • भारत के अनमोल रत्न
Facebook

About Shivira.com

Shivira

Shivira stands for Shiksha Vikas Rajasthan is a specialized platform dedicated to Teachers & Lecturers of Rajasthan to share Latest News & Updates.
Contact us: info@shivira.com

Follow us on social media:

Powered by ABCsteps Technologies Pvt Ltd

No Result
View All Result
  • Home
  • Smile Program
  • Scholarships
  • Shala Darpan
  • View All Articles
  • About Us
  • Contact Us

Powered by ABCsteps Technologies Pvt Ltd

error: