लोक कथा : हंस, बगुला, शर्माजी ओर तालाब।
शर्माजी अपने दोनों बच्चों को लेकर बड़े परेशान थे। दोनों बच्चे दिन भर आपस मे भिड़े हुए रहते थे। घर को कुरुक्षेत्र बना कर रखा हुआ था। शर्माजी शाम को ऑफिस से थक हार कर घर पहुँचते तो घर की हालात देख कर उसकी रूह कांप जाती थी। बच्चों की दिन भर की लड़ाइयों से वह परेशान हो गया था।
अपनी परेशानी को लेकर वह अपने गुरुजी के पास गए व उन्हें अपना दुखड़ा सुनाया। गुरुजी ने पूरी गम्भीरता से बात सुनी व निष्कर्ष निकाला।
गुरुजी बोले : ” बेटा। तेरे पुत्रो में संस्कार की कमी है अतः धर में संस्कार जगा। इसके लिए घर मे नियमित रूप से रामायण का पाठ टेप पर लगा दिया कर। जब संस्कार आएंगे तो तेरे बच्चों में बड़ा प्रेम हो जाएगा। ”
शर्माजी ने गुरुजी से विदा ली। रास्ते मे बाजार से रामायण की डीवीडी खरीदी। बड़े प्रसन्न भाव से घर पहुँचे। अपनी बीबी को बता दिया कि अब उनके बच्चों में सुधार निश्चित है। उन्होंने पक्की व्यवस्था कर दी कि घर मे म्यूजिक वगैरह सब बन्द रहे व दिनभर रामायण पाठ चले।
शर्माजी को जरूरी काम से एक महीने के लिए शहर के बाहर जाना था। शर्माजी ने शहर छोड़ने से पहले अपनी पत्नी को ताकीद दी कि घर मे रामायण का पाठ अधिक से अधिक चले ताकि बच्चों में संस्कार जागे और घर में शांति का वास हो।
एक माह बाद शर्माजी लोटे तो उनके मन मे विश्वास था कि अब घर में शांति की गंगा प्रवाहित हो रही होगी। बच्चों में संस्कार सुरभित हो चुके होंगे।
घर पहुँच कर देखा कि उनकी धर्मपत्नी चिल्ला रही है। पड़ोसियों की भीड़ लगी हुई है। घर में से धुमघडाके की आवाजें गुंजायमान हो रही है। जब माजरा समझा तो पता चला कि उनका एक बेटा बाथरूम में छुप के बैठा है। दूसरा दरवाजा हॉकी से पीट-पीट कर सिंहगर्जना कर रहा है-
” बाहर निकल सुग्रीव! तारा की गोद में छुप कर कब तक अपनी प्राण रक्षा करेगा। आज तेरा वध सुनिश्चित है!”
शर्मा जी समझ गए कि उनकी औलाद समझने वाली नही है। माल तो आदमी मर्जी का ही खरीदेगा। किसी ने सही कहा है कि-