गिरमिटिया यानी वे मजदूर जो किसी एग्रीमेंट के तहत एक विशेष समय तक अपने मालिकों हेतु काम के लिए अनुबंधित हो। इनकी स्तिथी गुलाम से बेहतर जरूर होती थी क्योंकि गिरमिटिया को एक समय सीमा पश्चात अनुबंध से मुक्ति मिल जाती थी लेकिन गुलाम को ऐसी अनुमति नही प्राप्त होती थी।
गिरमिटिया शब्द के मूल में "एग्रीमेंट" शब्द था। एग्रीमेंट के तहत एक समय सीमा तक काम करने वाले लोग गिरमिटिया कहलाते थे। । एग्रीमेंट का शब्द अपभ्रंश गिरमिट व ऐसे मजदूरों को आम बोलचाल की भाषा मे फिर "गिरमिटिया" कहा जाने लगा था।
इस शब्द का प्रयोग अंग्रेजी शासन समय मे बहुलता से होता था। तत्कालीन समय मे अंग्रेज हुकूमत भारतीय श्रमिको को अनुबंध के तहत शारिरिक श्रम कार्यो हेतु अनुबंध पर भारतीय ठेकेदार फिजी, गुयाना, नेटाल, टोबेको व त्रिनिदाद देशों में भेजते थे। यह व्यवस्था 1834 ईस्वी से आरम्भ हुई जिसे 1917 में निषिद्ध किया गया था।
विदेशों में भेजे जाने वाले इन गिरमिटिया श्रमिक वर्ग की बेहद दुर्दशा होती थी। इन अनपढ़ श्रमिकों के सभी मानवाधिकार स्थगित थे। इनकी दुर्दशा मानवता पर एक कलंक के समान थी। महिला गिरमिटिया को अनेक प्रकार यातनाएं सहन करनी पड़ती थी। तत्कालीन समय मे महिला गिरमिटिया को बहुत प्रकार के अवर्णनीय दुःखो का सामना करना पड़ता था।
महात्मा गांधी ने अपने अफ्रीकी प्रवास के समय इस वर्ग की समस्याओं को स्वंय देखा। फिजी के तोता राम सनाढ्य व कुंती जैसे गिरमिटिया वर्ग के प्रतिनिधियों ने इसके विरुद्ध अनेक स्तर पर विरोध के स्वर बुलन्द किये।
1876 में जन्मे यूपी के फिरोजाबाद जिले में जन्मे तोताराम का नाम श्रमिक सुधार क्षेत्र में बड़े आदर से लिया जाता है। मात्र 17 वर्ष की आयु में तोताराम सनाढ्य को के धोखा देकर गिरमिटिया की हैसियत से ठेकेदार ने फिजी भेज दिया था। तोताराम ने 5 वर्ष तक गिरमिटिया के रूप में कार्य किया व अनेक कष्ट सहन किये।
अपने अनुबंध से मुक्त होने के पश्चात वे भारत नही लोटे अपितु उन्होंने फिजी में रहकर ही भारतीय मजदूरों के सुधार हेतु प्रयास किये। अपने अनुभवों व संघर्ष के आधार पर उन्होंने एक पुस्तक "फिजिद्विप में मेरे 21 वर्ष नामक पुस्तक लिखी। यह पुस्तक विभिन्न माध्यमों पर उपलब्ध है केवम इसके माध्यम से आप तत्कालीन समाज व शोषण की बहुत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
महात्मा गाँधी के अलावा पण्डित मदन मोहन मालवीय, सरोजनी नायडू इत्यादि के सहयोग से आखिरकार इस कुप्रथा पर 12 मार्च 1917 को ब्रिटिश सरकार निषेधाज्ञा द्वारा प्रतिबंध लगाया गया एवम एग्रीमेंट के आधार पर विदेश भेजे जाने श्रमिकों पर रोक लगाई गई।