ऋण बाजार: अपने ऋणों का निबटारा करें अन्यथा वो आपको निबटा देंगे।
जोधपुर। वर्तमान युग मे ऋण को सामान्य रूप से लिया जाता है। अगर आप ऋण-बाजार की तरफ देखेंगे तो पाएंगे कि हर तरह का ऋण उपलब्ध है। बाजार आपकों मकान खरीदने से लेकर मोबाइल फोन खरीदने तक का ऋण उपलब्ध करवा रहे है।
चलिए एक नजर वर्तमान हालात पर।
कोरोना महामारी के इस कालखंड मार्च 2020 से वित्तिय अनिश्चितता का दौर चल रहा है। मार्च 2020 व उसके पश्चात ऋण उपभोक्ताओं द्वारा लिए गए ऋणों के क्रम में कुछ बैंकों ने अपने ऋण-ग्राहकों को ऋण स्थगन सुविधा प्रदान की जबकि कुछ के द्वारा ऋण-वसूली हेतु निरन्तर प्रयास किये जा रहे है।
आप द्वारा करणीय कार्य की सूची।
1. भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी ऋण मोनेटोरियम की समयावधि अब 31 अगस्त 2020 को समाप्त हो रही है अतः अपने ऋण सम्बंधित किश्तों के भुगतान हेतु कमर कस लेवे। जिन लोगो ने मोनेटोरियम हेतु आवेदनबकर दिया था, अब वे अपने बैंक खातों की सम्भाल कर सितंबर 2020 में ड्यू होने वाली किश्तों के भुगतान लायक बेलेंस को मेंटेन कर लेवे।
2. जिन लोगो ने ना तो मोनेटोरियम हेतु आवेदन किया व ना ही किश्तों का भुगतान किया है, उनके लिए श्रेयस्कर रहेगा कि वे अविलम्ब अपने बैंक शाखा में जाकर नवीनतम स्तिथि से अवगत होकर तदनुसार आवश्यक कार्यवाही अमल में लाये।
3. अगर आपने एक से अधिक ऋण ले रखे है तो जिस बैंक से गोल्ड-ऋण लिया है उस बैंक से सम्पर्क करके अपनी ऋण राशि को टॉप-अप करवाकर प्राप्त नकद से अन्य बैंक में चल रहे ऋण का भुगतान कर दे लेकिन तब जबकि दोनों पर देय ब्याज राशि समान हो।
4. अपने परिवार में माहौल तैयार करले की अनावश्यक उपभोक्ता वस्तु खरीद बन्द करके तरलता बढ़ाये। सम्पूर्ण विश्व मे अब आर्थिक माहौल सुधार पर है लेकिन उसे हम तक पहुँचने में समय लगेगा।
चार्वाक नीति पर एक नजर-
पिछली सदी में चार्वाक दर्शन को व्यंग्य के रूप में प्रयुक्त किया जाता था एवम ऋण से फंसे व्यक्ति हेतु कहा जाता था-
“यावज्जीवेत्सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् ।
भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ।।
त्रयोवेदस्य कर्तारौ भण्डधूर्तनिशाचराः ।।”
अर्थात-
मनुष्य जब तक जीवित रहे तब तक सुखपूर्वक जिये । ऋण करके भी घी पिये । अर्थात् सुख-भोग के लिए जो भी उपाय करने पड़ें उन्हें करे । दूसरों से भी उधार लेकर भौतिक सुख-साधन जुटाने में हिचके नहीं । परलोक, पुनर्जन्म और आत्मा-परमात्मा जैसी बातों की परवाह न करे । भला जो शरीर मृत्यु पश्चात् भष्मीभूत हो जाए, यानी जो देह दाहसंस्कार में राख हो चुके, उसके पुनर्जन्म का सवाल ही कहां उठता है ।
उपरोक्त विचार जो कभी हिकारत से देखे जाते थे वो आज हकीकत बन गए है। लोग भौतिक सुविधाओं को तुरंत चाहते है एवम इस हेतु ऋण लेने से कोई गुरेज नही है।
ऋण उचित हो तो ही सार्थक।
एक सीमा तक मकान बनाने हेतु अथवा वास्तविक शिक्षा की प्राप्ति हेतु ऋण को उचित समझा जा सकता है लेकिन अपने मकान में दिखावटी टाइल्स, रंग-बिरंगे लुक्स, फाल्स सिलिंग्स, अनावश्यक फिक्सचर्स, लक्सरी टॉयलेट्स, मल्टी कलर वॉर्डरोब इत्यादि हेतु ऋण के जाल में फसना बेतुका है। इसके साथ ही प्राइवेट कॉलेजों की दिखावटी, अनुत्पादक व दिशाहीन शिक्षा हेतु ऋण लेना बच्चों के भविष्य हेतु खुला खिलवाड़ है।
आज बाजार उपभोक्ता वस्तुओं एवम उसके लिए ऋण सुविधाओं से अटा पड़ा है। आप बस अपनी सेलेरी स्लिप, पहचान पत्र व चेकबुक लेकर आइये और अनावश्यक भौतिक सुविधाओं वाली 100 रुपये की वस्तु 125 में लेकर जाइये।
ऋण के बाजार में “यू-टर्न” नही।
अगर आप एक बार इस चंगुल में फंस गए तो फिर आपकी खैर नही। सामान्यतः एक औसत आदमी का वेतन 60 से 70 हजार तक होता है। सबसे पहले तो वह मकान ऋण लेता है जिसकी किश्त 15-16 हजार से कम नही होती। इसके बाद मकान को पड़ोसियों व रिश्तेदारों को दिखाने लायक बनाने के लिए एक आध पर्सनल लोन व एक आध कमोडिटी लोन।
मकान बस गया तो बच्चों की इंग्लिश मीडियम की फीस। महीने का खर्च निकालना जब मुश्किल होने लगे तो छोटी बड़ी हाथ उधारी। जब दूसरे इनकम सोर्स बढ़ते नही तो अनावश्यक का मानसिक टेंशन व अवसाद की गिरफ्त में आना एक आम सामाजिक घटना है।
इन सबके आखिर में आता है “गोल्ड-लोन”। यह आखरी दावँ है जो कि एक ऋण ग्रस्त व्यक्ति चलाता है। गोल्ड पर लोन लेकर वह एक बारगी छोटी बड़ी समस्या से निकल जाता है लेकिन इनकम में बेसिक सुधार अगर नही हो तो संकट बढ़ने लगता है।
छटपटाहट में लिए जाते है गलत निर्णय।
समय एक समान नही रहता है। समय परिवर्तनशील है, इस परिवर्तन में अच्छे व बुरे दोनों दौर आते है। एक लोंग-रन में दुर्भाग्यपूर्ण स्तिथियों में जब एक ऋणी अगर दो-चार माह तक किश्ते नही चुका सकता है तो उसके जीवन का सबसे बुरा दौर आरम्भ हो जाता है।
दो-चार माह की किश्ते अगर आप नही चुका सकेंगे तो आप एक कभी नहीं खत्म होने वाली जिल्लत के दौर में प्रविष्ट हो जाते है। निजी कम्पनियों व बैंकों ने “वसूली ब्रांच” बना रखी है। भगवान आपको इनका सामना होने से बचाये। इनके एक दिन में 10-20 कॉल, सामान्य से कटु और कटु से कटुतम होती भाषा, लीगल नोटिस आपकों हिला कर रख देंगे।
इन सबसे इतर, एक बात आप को समझ लेनी चाहिए कि बाजार सिर्फ शक्तिशाली को सपोर्ट करता है एवम एक ऋणी हेतु किसी प्रकार का कोई नैतिक, कानूनी व सामजिक सिस्टम अवलेबल नही है।
आखिर ऋण से निकलने की मजबूरी एक छटपटाहट बन जाती है एवम मजबूरी के चलते एक ऋणी गलत मौके पर अपनी सम्पतियों को अंडर-डॉग के रूप में सौदे पर मजबूर होता है।
आखिर क्या करें?
एक बेटर लाइफ हेतु जरूरी है कि आप उसे बेटर प्लान करें। सबसे पहले जीवन व सेलेरी लाइफ के आरंभ में 3-4 वर्षों हेतु सेविंग्स पर फोकस करें। जब सेविंग्स आपके ड्रीम प्रोजेक्ट यानी मकान की एस्टीमेट कोस्ट के 20 फीसदी तक हो जाये तो हाउस प्रोपर्टी सर्च करें। इस प्रॉपर्टी के लीगल डॉक्युमेंट्स कम्प्लीट हो तो सिर्फ बेसिक्स की खरीदारी करें। विलासिता व दिखावों को पहले लोन में कतई शामिल नही करें।
अपनी इनकम के 40% से अधिक किश्त राशि को हरगिज नही जाने दे। हालाँकि बैंकों हेतु गाइडलाइंस है कि वे ऋणी की आय से 40-50 फीसदी से अधिक की किश्त राशि स्वीकृत नही करें लेकिन निजी बैंक इस पर ज्यादा फोकस नही करते तथा वे कोई ना कोई रास्ता स्पाउस इनकम कम्बाइंड करना अथवा कुछ किश्तों को ओवर लुक कर देते है।
ऋण के जाल में सिर्फ आप ही स्वयम को बचा सकते है अतः गैर-उत्पादक, विलासी, आरामदायक, दिखावटी, सामाजिक शो-बाजी जैसे कारणों हेतु ऋण नही लेवे। खुद सुखी रहे व परिवार को भी सानन्द जीने दे।