लोकानुरंजन मेला: जोधपुर में लोक कलाओं का अदभुत मिलन।
लोकानुरंजन मेला: लोककलाओं का अदभुत मिलन।
15 फरवरी 2020, जोधपुर। राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर द्वारा स्थानीय जयनारायण व्यास स्मृति टाउन हॉल में दो दिवसीय लोकानुरंजन मेले में सम्पूर्ण राज्य व अन्य राज्यो से लोककलाओं को लेकर स्थानीय व बाहरी लोक कलाकारों ने आम नागरिकों के समक्ष सम्पूर्ण क्षमता से अपनी कलाओ को प्रदर्शित कर मन मोह लिया।
स्थानीय टाउन हॉल परिसर में कलाकारों ने जोश-खरोश से अनेक लोकनृत्यों के साथ ही पुरातन वाद्ययंत्रों का मनमोहक प्रदर्शन किया। लोकानुरंजन शब्द की सार्थकता सिद्ध होती रही व दर्शको का भरपूर मनोरंजन ज्ञानार्जन के साथ हुआ। आज के समय मे जब देश की युवा पीढ़ी “टेक्नोलॉजी दीवानगी ” के कारण अपनी सभ्यता व संस्कृति से विमुख हो रही हो तब ऐसे कार्यक्रम अपनी सार्थकता सिद्ध करते है।
दर्शको ने गैर नृत्य, शहनाई वादन, सहरिया नृत्य, डांडिया रास, खारी व डांग नृत्य, कठपुतली प्रदर्शन के साथ ही गुजरात के नृत्यों का पूर्ण आनंद लिया। परिसर में लोक कलाकारों के प्रदर्शन पर दर्शको ने भरपूर हौसलाअफजाई करते हुए कलाकारों के साथ सेल्फी लेने का मौका हाथ से नही जाने दिया।
द्वितीय सत्र में हुई स्टेज प्रस्तुतियां।
लोकानुरंजन मेले का द्वितीय सत्र।
टाउन हॉल के बाह्य परिसर के पश्चात सभागार में राज्य व अन्य राज्यो के नामचीन कलाकारों ने अपने राज्य की चुनिंदा लोकगायन व लोकनृत्य की प्रस्तुति प्रारम्भ की। स्टेज से जोधपुर सम्भाग के सम्भागीय आयुक्त व अन्य महत्वपूर्ण मेहमानों का स्वागत किया गया व तत्पश्चात लोकानुरंजन मेले के बारे में अवगत करवाया गया।
सबसे पहले गिनीज रिकॉर्ड होल्डर मांगणियार लोक गायक ग्राम कोटड़ा, बाड़मेर के भूंगड़ खान की प्रस्तुति से हुई। लोक गायन के उस्ताद ने जब “लड़ली लुम्बा रे झुम्बा” का गायन आरम्भ किया तो उपस्थित दर्शक उनके गायन के साथ झूमने के लिए मजबूर हो गए। सधी हुई गायकी, जबरदस्त रियाज, पुरातन वाद्ययंत्रों के प्रयोग के साथ इस प्रस्तुति ने राजस्थान के मर्म में छुपे संगीत के कलरव को स्टेज पर साक्षात प्रस्तुत कर दिया।
भूंगड खान ने भारत वर्ष के साथ ही सम्पूर्ण विश्व मे अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया हैं। भूंगड खान को 2015 में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार के लिए भी नामित किया जा चुका है।

द्वितीय प्रस्तुति हिमाचल प्रदेश के देवदत्त शर्मा द्वारा दी गई। कुल्लु की घाटी को देवताओं की घाटी कह कर पुकारा जाता है। इसी पवित्र स्थान से आई टीम ने हिमाचल प्रदेश के “पहाड़ा लोकनृत्य” की बहुत सुंदर प्रस्तुति प्रदान की।
पहाड़ा नृत्य में प्रकति के गुणों को बतलाते हुए सामाजिक सहसम्बन्ध परिभाषित करने का प्रयास किया जाता है। जनता ने इसको बहुत पसंद किया।

“चाडिया चाउपोला ” नृत्य
रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के लोकनृत्य को प्रस्तुत किया गया। लोकनृत्य को प्रस्तुत करते समय इन लोककलाकारों ने उत्तराखंड की पवित्रता को अपनी कला के माध्यम से पूरे भाव से प्रस्तुत किया। सुंदर शब्दो के माध्यम से इस प्रस्तुति को सधे कदमो ने सुर ताल देकर मनमोहक कर दिया था।

हरियाणा का “इमली नृत्य”।
इसी कड़ी में इसके पश्चात हरियाणा से आई टीम ने प्रस्तुति प्रदान की। हरियाणा में परम्पराओ व लोककथाओं का भंडार है। पूनम पडला के नेतृत्व में इमली नृत्य की जबरदस्त प्रस्तुति की गई। हरियाणा प्रदेश की जीवंतता इसके नृत्यों में बाखूबी दिखाई देती है। कलाकारों के चपल स्टेप्स, खूबसूरत शब्दो व विशिष्ट कलर संयोजन समां बांध देता है। कलाकार इमली नृत्य की धुन में स्वयं को नाचने से बड़ी मुश्किल से रोक सके।

राजस्थान का “चरी लोकनृत्य”
मांगलिक अवसरों पर किये जाने वाले उदयपुर की लोककलाकार विजयलक्ष्मी व टीम ने “चरी लोकनृत्य” की जबरदस्त प्रस्तुति प्रदान की। चरी नृत्य में लोक कलाकार जब प्रज्वलित अग्नि के कलशों के साथ नृत्य प्रस्तुत करते है तो दर्शक सांसे थाम कर एकटक स्टेज की तरफ देखते रह जाते है। ऐसी जबरदस्त सुंदर प्रस्तुति ही राजस्थान को सम्पूर्ण राष्ट्र में लोक कलाओं से सम्पन्न प्रदेश का दर्जा दिलवाते है। नृत्य के साथ सुंदर लोकगीत “चिरमी रा डाला रा चार” के संयोजन ने दर्शको को अभिभूत कर दिया।

राजस्थान के मेवात के लोकवाद्य ” भपंग ” का प्रदर्शन।
इसी कड़ी में विश्वप्रसिद्ध मेवाती कलाकार जहूर खान के परिजनों व साथी कलाकारों ने महादेव के डमरू सरीखे ” भपंग “ का जबरदस्त प्रदर्शन किया। भपंग वाद्य का बॉलीवुड फिल्म “आंखे” में पर्दे पर प्रदर्शन दिखा था ।
भपंग एक डमरूनुमा एक तंतु लय प्रदान करने वाला लोक वाद्य है। इसे मुस्लिम जोगियो द्धारा शिवरात्रि पर शिवालयो मे शिव स्तुति समय मे बजाया जाता है। भपंग का जन्म भी इस्माईल नाथ जोगी ने किया था। भपंग पहले कडवी लौकी से बना होता था।

गुजरात का लोकनृत्य।
गुजरात का लोक नृत्य।
गुजरात के कंचन भाई ने “राठवा लोकनृत्य“प्रस्तुत कर के माहौल को जबरदस्त ऊर्जा से सरोबार कर दिया। इस नृत्य के कलाकारों में शारिरिक सन्तुलन के साथ म्यूजिक की बारीक पकड़ आवश्यक है। ऐसे ऊर्जावान गीत बतलाते है कि भारत विश्व की सबसे महान संस्कृति हैं।


पश्चिमी बंगाल का मार्शल आर्ट बेस लोकनृत्य।
पश्चिमी बंगाल का लोकनृत्य।

मार्शल आर्ट से भरपूर इस नृत्य को युवाओ ने जबरदस्त समर्थन दिया। इस नृत्य के माध्यम से हम जान सकते है कि शारिरिक स्वास्थ्य की प्राप्ति में नृत्य को क्यों सबसे बेहतरीन व्यायाम माना जाता है। पश्चिमी बंगाल के इन कलाकारों को दर्शक लम्बे समय तक भुला नही सकेंगे।
गुजरात का प्रसिद्ध “नादल लोकनृत्य”।
सूर्यपत्नी के स्मरण में प्रस्तुत इस बेहतरीन लोकनृत्य में गायन का उच्च स्तर व नृत्य में जबरदस्त रिदम देखने को मिली।सूर्यनगरी जोधपुर में सूर्यदेवता से सम्बंधित इस नृत्य को सहज रूप से समर्थन लाज़िमी था। दर्शकों के द्वारा इस लोकनृत्य को बहुत प्यार दिया गया।

पंजाब का “गिद्धा लोकनृत्य”
पंजाब का गिद्धा लोकनृत्य
हरियाणा के लोककलाकारों ने पूनम भल्ला के नेतृत्व में लोकगीत आधारित लोकनृत्य “गिद्धा” प्रस्तुत किया। शादी विवाह के अवसर पर किये जाने वाले इस लोकनृत्य में हरियाणा के कलाकारों का जोश व जीवन्त प्रदर्शन ने दर्शको को अपने साथ थिरकने के लिए मजबूर कर दिया।

महाराष्ट्र का “कोली नृत्य”।
महाराष्ट्र का “कोली नृत्य
मुम्बई के मछुआरे जब अपने कार्य से मुक्त होते है तो “कोली नृत्य” के माध्यम से अपना मनोरंजन करते है। महाराष्ट्र के कलाकार अपनी कुलदेवी की साधना करते हुए अपने सुखद जीवन की कामना करते है। कोली नृत्य में अपना एक अलग ही रिदमिक कॉम्बिनेशन है जिसमे सहजता व शास्त्रीयता का अनमोल मिलन है।

पंजाब का लोकनृत्य ” भांगड़ा लोकनृत्य”
अमरेंद्र सिंह व साथियों द्वारा प्रस्तुत किये गए भाँगड़ा नृत्य ने माहौल को एक नई ऊर्जा व ऊँचाई प्रदान कर दी। जैसे ही उदघोषक ने भाँगड़ा नृत्य की घोषणा की दर्शक दीर्घा से ” बोले सो निहाल, सत श्री अकाल ” के नारों से वातावरण को धार्मिक भाव से गुंजित कर दिया। भाँगड़ा नृत्य में एक गजब की दीवानगी व ढोल का बेहतरीन उपयोग होता है। आज भाँगड़ा नृत्य ने पूरे विश्व मे अपनी एक विशेष पहचान बना ली है।

लोकानुरंजन मेले की उल्लेखनीय बाते-
लोकानुरंजन मेले में प्रथम दिवस भी अनेकानेक जबरदस्त प्रस्तुतियां हुई थी जिनमे जोधपुर के जाकिर खां का लंगा का गायन, अनिला देवी पादरला का तेरहताली नृत्य, सीमा का कालबेलिया नृत्य, बन्नेसिंह प्रजापत की रिंग भवाई, दिलावर का कच्छी घोड़ी नृत्य, उकाराम परिहार की लाल आंगी गेर, राधेश्याम बालोतरा की बच्चों की गेर, जानकी लाल चाचोड़ा का चकरी नृत्य, गोपाल धानुक शाहबाद का सहरिया नृत्य, प्रेमाराम भाट का कठपुतली नृत्य, जितेन्द्र पाराशर डीग का मयूर नृत्य,शशिबाला लक्ष्मणगढ़ का बंब नृत्य, घनश्याम पुष्कर का नगाड़ा वादन, रामजीत जोधपुर का करतब नृत्य सहित नरेन्द्र व रेशमा जोधपुर का जादू प्रदर्शन तथा उस्मान खान के करतब, अकरम बांदीकुई
का बहरूपिया नृत्य विशेष रूप से उल्लेखनीय थे।

