मेजर धन सिंह थापा: मरणोपरांत परमवीर चक्र प्राप्त होने वाले मेजर जीवित लौट आये थे।
नेपाली मूल के मेजर धन सिंह थापा का जन्म 10 अप्रैल 1928 को शिमला में हुआ था। मेजर साहब द्वारा सीमा पर दर्शित अदम्य शौर्य के कारण उनको 1966 में सर्वोच्च सम्मान परमवीर पुरुस्कार से सम्मानित किया था। सन 2005 में आपकी मृत्यु हुई थी। आपने 8 गोरखा राइफल्स से भारत-चीन युद्ध मे भारतीय सेना की तरफ से युद्ध किया था।
चीन-भारतीय युद्ध अक्टूबर 1962 में शुरू हुआ था। 21 अक्तूबर को चीन ने पैनगॉन्ग झील के उत्तर में सिरिजैप और यूल पर कब्ज़ा करने के उद्देश्य से घुसपैठ शुरू की थी। सिरिजैप 1, पांगॉन्ग झील के उत्तरी किनारे पर 8 गोरखा राइफल्स की प्रथम बटालियन द्वारा स्थापित एक पोस्ट थी जो कि मेजर धन सिंह थापा की कमान में थी। इस पोस्ट को चीनी सेनाओं ने घेर लिया गया था। मेजर थापा और उसके सैनिकों ने इस पोस्ट पर होने वाले तीन आक्रमणों को असफल कर दिया था।
जब मेजर की सेना के पास युद्ध लड़ने के लिए अस्त्र-शस्त्र समाप्त हो गए थे तब भी मेजर व उनकी बहादुर सेना ने हार स्वीकार नही की थी। मेजर व उनकी वीर सेना ने खाइयों में कूद कर निहत्थे ही अनेक दुश्मनों को मौत के घाट उतार दिया था। अपनी छोटी सेना के कुशल संचालन व अंतिम समय तक युद्ध जारी रखने की उनकी वीरता अनुकरणीय थी।
युद्ध के दौरान मेजर धनसिंह थापा व अन्य सैनिकों को चीनी सेना ने घेर कर युद्धबंदी बना लिया था। चीनी सेना ने मेजर व साथियों को युद्धबंदी काल मे कठोर यातनाएं दी थी। मेजर को भारतीय सेना के खिलाफ बयान नही देने व अनेक चीनी सैनिकों को मारने के आरोप लगाए गए थे।
युद्ध के समय में ही मेजर धनसिंह थापा व सैनिकों को भारतीय पक्ष द्वारा मृतक मान लिया गया था। भारतीय सेना के अनुरोध पर भारत सरकार द्वारा उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र की घोषणा की थी। उनकी मृत्यु के दुखद समाचार उनके परिवार को दे दिए गए थे।
मेजर की मृत्यु के समाचार से उनके परिजनों में दुख की लहर दौड़ गई थी। उनकी पत्नी ने वैधव्य जीवन जीना आरम्भ कर दिया था। युद्ध समाप्ति पर जब मई 1963 में चीन सरकार द्वारा भारत सरकार को युद्ध बंदियों की सूची सुपुर्द की गई तो उसमें मेजर धनसिंह थापा का नाम भी सम्मिलित था।
मेजर थापा के जीवित होने का समाचार सम्पूर्ण देश मे फैल गया था। मेजर के जीवित होने की सूचना से उनके परिजनों व देश मे खुशी की लहर दौड़ गई। मेजर धनसिंह थापा 10 मई 1963 को सेना मुख्यालय पर लौट आये थे। उनका सेना मुख्यालय पर भव्य स्वागत किया गया था।
जब मेजर 12 मई 1963 को अपने घर लौटे तो उनके परिवार ने धार्मिक संस्कारों के चलते उनका मुंडन करवाया एवं उनकी पत्नी से उनका पुनर्विवाह भी करवाया गया था । मेजर ने एक नए जीवन की शुरुआत की थी।
मेजर साहब को भारत सरकार ने मरणोपरांत परमवीर चक्र प्रदान किया था परंतु उनके जीवित लौट आने पर सरकार ने उनके पुरुस्कार के संदर्भ में आवश्यक सुधार पुनः जारी किए थे। मेजर साहब के शौर्य की गाथा सेना व आम जनजीवन में बहुत लोकप्रिय रही है। इसके पश्चात वे सेना से लेफ्टिनेंट कर्नल के पद से रिटायर हुए थे व एक निजी कम्पनी में आजीवन डायरेक्टर पद पर रहे।
शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया ने मेजर के सम्मान का के लिए मेजर थापा के नाम पर एक मालवाहक जहाज का नाम रखा था। शिलांग, असम और नेपाल जैसे राज्यों की कई सड़कों का नाम इस बहादुर गोरखा के नाम पर रखा गया है।