संभलो इंडिया: एक झूठा जुमला जो हालात और बिगाड़ रहा है।
एक आम और नया जुमला हिंदुस्तान में फेल चूका हैं कि -“सुविधा होनी चाहिए, पैसे की चिंता नहीं हैं”! ये जुमला आम बोलचाल का हिस्सा बन गया हैं, कुछ लोग इसको होश में बोल रहे है पर अधिकतर जोश में बोल रहे हैं। अगर सभी लोग इस हैसियत में आ चुके हैं तो फिर चिंता की क्या बात हैं?
एक सामाजिक प्राणी के नाते में लोगो से मिलता जुलता रहकर उनके जितने हाल जानता हूँ उस आधार पर कह सकता हूँ कि ये जुमला पूरा का पूरा झूठा हैं। कोई पांच प्रतिशत ख़ास लोगों को छोड़ दे तो यक़ीनन बाकी अवाम की हालात खस्ता हैं। जमीनों की फरोख्त, नरेगा की मजदूरी जेसे नामुराद कारणों के चलते काफी लोगो के हाथ में मोबाइल और कुछ के पास गाड़िया जरूर हैं परन्तु रीचार्ज और पेट्रोल का धन इस वर्ग के पास निर्बाध रूप से हरगिज़ उपलब्ध नहीं हैं।
अधिकांश लोगो की कमाई रहन-सहन की दिखावट, ब्रांड पहनने की तमन्ना और निजी विद्यालयो की फ़र्ज़ी इंग्लिश नाम की पढ़ाई के नाम पर स्वाहा हो रही हैं।धन की वास्तविक जरुरत शादी विवाह और अस्पताल में पड़ती हैं। शादी विवाह तो किसी तरह खरामा-खरामा हो रहे पर अस्पताल और उसमे होने वालो खर्चो की आशंका से ही रूह कांप जाती हैं।
समाज में उपभोक्तावाद इस कदर बढ़ गया है कि बैंक विज्ञापन देकर लोगो को लोन लेने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। मेरा अनुमान हैं कि अधिकांश परिवार अपनी आय का 30 प्रतिशत या ज्यादा लोन की किश्तों को चुकाने में व्यय कर रहे हैं। अधिकतर मकानों के दस्तावेज़ बैंक में गिरवी पड़े हैं। नोकरी पेशा लोगों की अनिवार्य बचत को छोड़ दे तो स्वेच्छिक बचत दर बहुत कम हैं।
1980 के दोर में सार्वजनिक स्थानों पर “परिवार नियोजन” एवम् “अल्प बचत” के विज्ञापन छाए रहते थे जबकि आज की पीढी इन विषयो से बहुत दूर हैं। ये केसी दशा है कि लोग जनसख्या नियंत्रण हेतु नहीं अपितु खर्चे से बचे रहने के लिए अधिक बच्चे पैदा करने से कतरा रहे हैं।
आम आदमी कुछ बाज़ारी उपकरणों से अपना दिल तो चंद पलों के लिए बहला रहा हैं लेकिन उसका अन्तःकरण भावी खर्चो से दहला हुआ हैं। क्या सरकार का यह दायित्व नहीं बनता कि वो शिक्षा एवम् संचार माध्यमो के प्रयोग से जनता को अल्प बचत के लिए प्रेरित कर बाज़ार को उपभोक्तावाद से दूर करे? हर घर के इस संघर्ष में शिक्षक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। कृपया विद्यालय में अध्ययन रत विद्यार्थियों में कम संसाधनों एवम् मुश्किल हालातो में जीने योग्य कोशल का विकास कर एक मजबूत राष्ट्र के निर्माण में सहभागी बने।
आपका।
सुरेन्द्र सिंह चौहान।