मुंशी प्रेमचंद : उपन्यास सम्राट प्रेमचंद द्वारा लिखित पुस्तके व उनके निःशुल्क वेब लिंक।
भारतवर्ष के आधुनिक काल के लेखकों में प्रथम नाम मुंशी प्रेमचंद का आता है। मुंशी प्रेमचंद की कलम से शब्द नही अपितु भारतीयता प्रवाहित होती थी। आज के आधुनिक समय मे जब भारतीयता के दर्शन दुर्लभ हो गए है तब युवाओं को राष्ट्र की आत्मा को समझने के लिए मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं को आवश्यक रूप से पढ़ना चाहिए।
प्रेमचंद : संक्षिप्त जीवन परिचय।
उत्तरप्रदेश के लमही ग्राम (वाराणसी) में 31 जुलाई 1880 को श्री अजायब राय व आनंदी देवी के घर जन्मे प्रेमचंद का असली नाम धनपत रायथा। आपकी किताब सोजे-ए-वतन अंग्रेजो द्वारा प्रतिबंधित कर दिए जाने के कारण आपने इसके बाद “प्रेमचंद” के नाम से लिखना आरम्भ किया था।

मात्र 18 वर्ष की आयु में मेट्रिक करने के पश्चात आपने शिक्षक के रूप में कार्यारम्भ किया। आपने अध्यापन के साथ अध्ययन जारी रखा व शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर बने। आप के लेखन के साथ ही जीवन मे भी सुधारवादी प्रयास दर्शित होते है आपने प्रथम विवाह सफल नही होने पर दूसरा विवाह एक विधवा नारी से किया था। लम्बी बीमारी के बाद उनका निधन 8 अक्टूबर 1936 को हुआ।
प्रेमचंद : लेखन कार्य।
मुंशी प्रेमचंद ने 15 उपन्यास, 300 कहानियाँ, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तको के लेखन के अतिरिक्त अनेक समीक्षाएं, परिचय इत्यादि का सृजन कार्य किया। आपकी एक किताब सोज-ए-वतन अंग्रेजो ने सीज कर दी थी एवम एक पुस्तक मंगलसूत्र अधूरी रह गई थी।
मुंशी प्रेमचंद : मुंशी शब्द कैसे जुड़ा।
प्रेमचंद का मूल नाम धनपतराय था। आपके लेखन कार्य पर अंग्रेजो ने प्रतिबंध लगा दिया था। नबाबराय के नाम से वे ऊर्दू में भी लिखते थे। उर्दू अखबार “ज़माना” के संपादक मुंशी दया नारायण निगम ने नबाव राय के स्थान पर ‘प्रेमचंद’ उपनाम उन्हें सुझाया था।
“ हंस ” नामक एक पत्र में वे कन्हैयालाल मुंशी के साथ सह-सम्पादक थे। सम्पादकीय में कई बार दोनों का नाम एक साथ इस प्रकार छपता था।
मुंशी, प्रेमचंद
इस प्रकार यह मुंशी प्रेमचंद प्रचारित हो गया।
मुंशी प्रेमचंद को उपन्यास सम्राट क्यो कहा गया।
बंगाल के प्रसिद्ध कथाकार शरत बाबू के घर जब एक सम्पादक गए तो उन्होंने देखा कि शरत जी एक उपन्यास पढ़ रहे थे। वह उपन्यास प्रेमचंद का लिखित था व शरत जी ने उनके नाम के आगे उपन्यास सम्राट लिख दिया था। इसके बाद से ही यह शब्द प्रचारित हो गया।
लेखन कार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी।
आपका लेखन गरीब व मध्यमवर्गीय समाज से अधिक सम्बंधित था। विभिन्न प्रकार के लेखन के बावजूद उनकी सर्वकालिक पहचान उनके उपन्यासों से ही रही है। बेहतरीन शिल्प व सम्वाद के उपरांत भी उनके नाटक बहुत अधिक प्रतिष्ठित नही हो सके।
मुंशीजी के माता-पिता उनके बचपन मे ही स्वर्ग सिधार चुके थे अतः उन्होंने बहुत कठिन समय व आर्थिक परेशानियों का सामना किया। आपने प्रथम विवाह के पश्चात दूसरा विवाह एक विधवा नारी से किया। अध्यापक के रूप में समाज से जुड़े। आजादी के लिए सँघर्ष करते राष्ट्र में उनके लेखन प्रतिबंधित हुए।
उपरोक्त कारणों से उन्हें जीवन मे अनुभवों की बहुलता मिली। योग्य विद्यार्थी, कर्मठ शिक्षक व इंस्पेक्टर जैसे ओहदे पर कार्य ने उनके लेखन को विराटता प्रदान की। उनके लेखन पर भारतीयता, ग्राम्य जीवन, सामाजिक कुरीतियों, मानवीय बन्धनों, मुक्ति की छटपटाहट, प्राकृतिक जीवन, संसाधनों की कमी, भारतीय मानसिकता, स्त्रियों के जीवन मे सुधार की आवश्यकता, धर्मनिष्ठा, सामाजिक जीवन मे शुचिता के साथ मनुष्य ह्रदय में पल्लवित होते प्रेम व राष्ट्र के प्रति प्रेम के मिलन ने उनकी कलम से शुद्ध भारतीय लेखन प्रवाहित हुआ।
प्रेमचंद के प्रमुख उपन्यास व उनके लिंक।
1. सेवा सदन 1918
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https://epustakalay.com/book/6798-sevasadan-by-premchand/
ऑनलाइन पढ़िए-
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2. प्रेमाश्रम 1922
https://epustakalay.com/book/5653-premashram-by-premchand/
3. रंगभूमि 1925
https://epustakalay.com/book/26596-rangabhumi-by-premchand/
4. निर्मला 1925
https://archive.org/search.php?query=Nirmala%20pdf%20premchand
5. कायाकल्प 1927
https://epustakalay.com/book/7086-kayakalp-by-premchand/
6. गबन 1928
https://epustakalay.com/book/5728-gaban-by-premchand/
7. कर्मभूमि 1932
https://epustakalay.com/book/5375-karmbhumi-by-premchand/
8. गोदान 1936
https://epustakalay.com/book/26633-godan-by-premchand/
उपरोक्त के अतिरिक्त मुंशी प्रेमचंद की 100 से अधिक कहानियाँ उपलब्ध है।