जीवन में अनेक बार चुनोतिपूर्ण कार्य मिलते है एवम जब हम उस कार्य की पूर्णता हेतु उत्तरदायी होते है तब सावधानी पूर्वक कर्तव्य निर्वहन आवश्यक होता है। जब आपको जिम्मेदारी मिलती है तब उस जिम्मेदारी का निर्वहन एक आवश्यक दायित्व बन जाता है। ऐसी स्तिथी में सभी का बाह्य व्यक्तित्व चाहे एक समान दर्शित हो परन्तु सभी की मनःस्थिति एकदम अलग होती है।
जिम्मेदारी मिलने पर विभिन्न स्तिथियों को निम्नानुसार वर्गीकरण किया जा सकता है-
1. पूर्णतया फोकस।
2. फोकस।
3. आंशिक फोकस।
4. लापरवाह पूर्ण फोकस।
उपरोक्तानुसार वर्णित मनस्तिथियाँ इनके इतर भी होती है अथवा हो सकती है। उपरोक्त में से लापरवाह को किसी भी समाज, नियम, अधिनियम, व्यवस्था या सिस्टम में स्वीकार नही किया जा सकता है।
इसमें व्यक्ति सबकुछ, यहाँ तक कि निजी जरूरतों को भी छोड़कर उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित कर देता है। यह अतिरेक की अवस्था है क्योंकि जीवन कार्य के अतिरिक्त भी एक विषय है।
जब आप पूर्णतया फोकस होते है तो ना केवल जीवन की प्रारम्भिकताओं को भुला रहे होते है साथ ही कार्य के प्रति अतिरेक समर्पण के कारण आप छिद्रान्वेषण के स्तर पर पहुंच जाते है एवम कार्य के मुख्य व सहायक उद्देश्यों से आगे बढ़कर गौण उद्देश्यों तक संसाधनों व स्वयम की शक्तियों को विनियोजित कर देते है।
एक व्यक्तिगत सर्वे एवम विश्लेषण के तहत यह कहा जा सकता है कि ऐसे लोग जीवन मे काफी उलझे हुए दिखाई देते है।
किसी कार्य को उसके अंजाम तक पहुँचाने के लिए उस कार्य के उद्देश्य, उसकी प्राप्ति हेतु योजना, स्टाफिंग व नियमित रूप से फ़ॉलो आप मे सलग्न हो जाते है।
यह एक उचित व व्यवसायिक स्तिथी है एवम इसमें उद्देश्यो की प्राप्ति के साथ ही जीवन मे संतुलन भी बना रहता है। एक व्यक्तिगत सर्वे एवम विश्लेषण के तहत यह कहा जा सकता है कि ऐसे लोग जीवन मे काफी सन्तुष्ट भी दिखाई देते है।
यह आज के जमाने की दरकार है क्योंकि हर व्यक्ति मल्टी-टास्किंग में यकीन करने लगा है एवम मल्टी टास्किंग एक जरूरत बन कर उभर रही है। इस आंशिक फोकस दृष्टिकोण में कार्य मे कम सफलता प्राप्त होने की संभावना रहती है।
इस स्तिथी में असफलता की दर बढ़ने लगती है लेकिन कर्ता के पास एकाधिक विकल्प होने के कारण वह एक क्षेत्र की क्षति को दूसरे स्थान के लाभ से पूर्ण करने का प्रयास करता है।
इसमें कार्यं को पूर्णतया अधीनस्थ कार्मिकों अथवा साथियों के भरोसे छोड़ दिया जाता है। ऐसी स्तिथी में कार्य मे सफलता अथवा असफलता पूर्णतया भाग्य पर निर्भर रहती है एवम कर्ता का स्तिथी पर कोई नियंत्रण नही रहता है।
इस प्रकार की स्तिथि को किसी भी क्षेत्र में स्वीकार नही किया जा सकता क्योंकि इसमें ना केवल संसाधनों का अपव्यय होता है बल्कि उद्देश्यों की प्राप्ति भी मुश्किल हो जाती है।
आप का तरीका अपने कार्यस्थल पर उपरोक्त में से कौनसा है? यह पहचान लेना आपके लिए जरूरी है।
पूर्णतया फोकस तरीके को सदैव जीवन मे काम मे नही लिया जा सकता। सामान्यतः हम फोकस, आंशिक फोकस अथवा लापरवाह फोकस कैटेगरी में रहते है। व्यवसायिक सफलता हेतु फोकस दृष्टिकोण सबसे बेहतर है क्योंकि इसमें कार्य की सफलता के साथ कर्ता का व्यक्तिगत जीवन भी उद्देश्यपूर्ण रहता है।
अतः आप स्वयम का तरीका अगर लापरवाह अथवा आंशिक फोकस कैटेगरी में मानते है तो आपको अपनी कैटेगरी को ठीक करके फोकस बढाने की आवश्यकता है।