देश में बच्चों पर बढ़ते लैंगिक अपराधों (यौन हिंसा) की रोकथाम हेतु भारत सरकार द्वारा मजबूत एवं प्रभावी कानून लागू किया है। इस कानून का नाम ‘अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम2012 (Protection of
Chldren from sexual ofencesAct, 2012") है। यह कानून एवं इसके संगत नियम 14 नवम्बर2012 से पूरे देश में लागू हुए हैं।
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम2012 में 18 वर्ष से उम्र के लड़के-लड़कियों के विरूद्ध होने वाले विभिन्न प्रकार के लैंगिक ' अपराधों को परिभाषित करते हुए बाल मैत्री प्रक्रिया का निर्धारण है। यह कानून संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार अधिवेशन1989 एवं विभिन्न माननीय उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों द्वारा लैंगिंक हिंसा के संबंध में दिये गये दिशा-निर्देशों पर आधारित है। यह। कानून लिंग समान (Gende Neutral) है, इसमें पीड़ित या दोषी में से कोई भी हो सकता है इस कानून में लड़का एवं लड़की के सहमति से संबंध बनाने की आयु भी 18 वर्ष निर्धारित की गई है।
लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम , को
2012 के महत्वपूर्ण प्रावधान निम्नानुसार है-
एक व्यक्ति जब-
(क) किसी सीमा तक बच्चे की योनि, मुंह मूत्रमार्ग या गुदा में अपना लिंग प्रवेशित करता है या बच्चे को उसके साथ या अन्य व्यक्ति किसी व्यक्ति के साथ ऐसा कराता है। या
(ख) किसी सीमा तक, बच्चे की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में कोई वस्तु या शरीर का अंग, जो लिंग नही हो, प्रवेश करता है या बच्चे को उसके साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा कराता है या
(ग) बच्चे के शरीर के किसी को इस तरह से काम में लेता है जिससे कि बालक की योनि, मूत्रमार्ग, गुदा या शरीर के किसी अंग को करता प्रवेशित करता है या बच्चे को उसके साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा कराता है। या
(घ) वह बच्चे के लिंगयोनि, गुदामूत्रमार्ग पर अपने मुंह को लगाता है या बच्चे को ऐसे व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा कराता है।
जो कोई प्रवेशन लैंगिक हमला करता है, उसे कम से कम सात वर्ष एवं अधिकतम आजीवन कारावास हो सकेगा और साथ ही उस पर जुर्माना भी लगाया जायेगा। (धारा 4)
बच्चे के संरक्षण एवं देखभाल के जिम्मेदार परिवार के व्यक्ति, पुलिस अधिकारी, सीमा सुरक्षा बल, डॉक्टर, अध्यापक, राजकीय कर्मचारी, बाल गृह के कार्मिक के अतिरिक्त सामूहिक लैंगिक हिंसा, विकलांग बच्चे12 वर्ष से कम उम्र के के बच्चे, लैंगिक हिंसा से लड़की को गर्भवती कर देना, पीड़ित बच्चे को जनता में नंगा कर देना सहित कई श्रेणियों को गम्भीर अपराध माना गया है।
जो कोई भी, उत्तेजित प्रवेशन लैंगिक करता है, उसे कम से कम दस वर्ष एवं अधिकतम आजीवन कारावास हो सकेगा और साथ ही उस पर जुर्माने भी लगाया जायेगा। (धारा 6)
लैंगिक हमला (SexualAssault) (धारा 6)
जब कोई भी, यौन आशय से, बच्चे की योनि, लिंगमूत्रमार्ग या स्तन को छूता है या ऐसे व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति की योनि, लिंग, मूत्रमार्ग या स्तन को बच्चे से छूआता है या ऐसा अन्य कोई कार्य करता हो, ऐसे कार्य को लैंगिक हमला कहा जायेगा।
जो कोई भी, लैंगिक हमला करता है, उसे कम से कम तीन वर्ष एवं अधिकतम पांच वर्ष का कारावास हो सकेगा और साथ उस पर जुर्माने भी लगाया जायेगा। (धारा 8)
बच्चे के संरक्षण एवं देखभाल के जिम्मेदार परिवार के व्यक्ति, पुलिस अधिकारी, सीमा सुरक्षा बल,डॉक्टर, अध्यापक , राजकीय कर्मचारी, बाल गृह कार्मिक के अतिरिक्त विकलांग बच्चे ,12 वर्ष से कम उम्र के बच्चे के साथ लैंगिक हमला सहित कई श्रेणियों को गम्भीर अपराध माना गया है।
जो कोई भी, उत्तेजित लैंगिक हमला करता है, उसे कम से कम पांच वर्ष एवम अधिकतम सात वर्ष का कारावास हो सकेगा औऱ साथ ही उस पर जुर्माना भी लगाया जायेगा। (धारा 10)
जब कोई यौन आशय से-
(I) कोई शब्द /आवाज/संकेत करना या कोई ऐसी वस्तु या शरीर का अंग प्रदर्शन करना।
(II) बच्चे को उसका शरीर या उसके शरीर के किसी अंग को दिखाने हेतु कहना।
(III) अश्लील लेखन प्रयोजनों के लिए किसी रूप में या मीडिया में बच्चे को कोई वस्तु दिखाना।
(IV) या तो सीधे ही या इलेक्ट्रॉनिक, डिजीटल या किसी अन्य रूपो के जरिये बच्चे को बार -बार या लगातार पीछा करता है या देखता है या सम्पर्क करना।
(V) मीडिया के किसी रूप में, यौन कार्य में बच्चे के शरीर के किसी अंग या बच्चे की अलिप्तता को इलेक्ट्रोनिक, फिल्म या डिजीटल या किसी अन्य तरीके के जरिये वास्तविक या काल्पनिक चित्रण का उपयोग करने की धमकी देना।
(VI) अश्लील साहित्य प्रयोजनों एवं यौन सन्तुष्टि के लिए बच्चे को फुसलाना या लुभाना।
जो कोई भी, लैंगिक उत्पीड़न करता है, उसे अधिकतम तीन वर्ष का कारावास हो सकेगा और साथ ही उस पर जुर्माने भी लगाया जायेगा। (धारा 12)
जो कोई भी, यौन संतुष्टि के प्रयोजनों के लिएमीडिया के किसी रूप में (जिसमें या इन्टरनेट या टेलीविजन चैनल किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक रूप या मुद्रित रूप द्वारा कार्यक्रम या विज्ञापन प्रसारण शामिल , चाहे ऐसा कार्यक्रम
या विज्ञापन निजी प्रयोग के लिए या वितरण के लिए हो या नहीं ) बच्चे का उपयोग करता है, जिसमें बच्चे के यौन अंगों का दिखाना वास्तविक या नकली यौन कार्यों में बच्चे का उपयोग करना, बच्चे का अभद्र या अश्लील प्रस्तुति
अश्लील लेखन प्रयोजनों के लिए बच्चे करना शामिल है।
जो कोई भी, बच्चों के अश्लील साहित्य प्रयोजनों के लिए उपयोग करता है, उसे अधिकतम पांच वर्ष का कारावास हो सकेगा और साथ ही उस पर जुर्माने भी लगाया जायेगा और द्वितीय या अनुगामी दोषसिद्धि की दशा में उसे
(धारा 15)
जो कोई भी व्यक्ति, जो व्यवसायिक प्रयोजनों के लिएबच्चे को आलिप्त करते हुए किसी भी रूप में कोई अश्लील साहित्य सामग्री को संधारित करता है, उसे अधिकतम तीन वर्ष तक का कारावास हो सकेगा और साथ ही उस पर
जुर्माने भी लगाया जायेगा।
*एक व्यक्ति अपराध का दुष्प्रेरण करता है जो उस अपराध को करने के लिए किसी व्यक्ति को उकसाता है। या
*उस अपराध को करने के लिए किसी में अन्य षडयन्त्र एक या व्यक्ति या व्यक्तियों के नियोजित है, यदि कार्य या अविधिक लोप उस षडयन्त्र की अनुपालना में होता है और उस अपराध को करने के लिए नियोजित होता है। या
*किसी कार्य या अविधिक लोप द्वारा उस अपराध को करने में आशयपूर्वक सहायता करता है।
जो कोई भी इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का दुष्प्रेरण करता है, यदेि दुष्प्रेरित कार्य दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप कारित किया जाता है, उसे उस अपराध के लिए निर्धारित दण्ड से दण्डित किया जायेगा। (धारा 17)
जो कोई भी इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय कोई अपराध करने या ऐसे अपराध को कराने का प्रयास करता है , और ऐसे प्रयास में, अपराध करने के लिए कार्य करता है, उस अपराध के लिए उपबंधित किसी अवधि के कारावास से, जो आजीवन कारावास के आधे तक हो सकेगा या उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की अधिकतम अवधि के आधे तक हो सकेगा या जुर्माने
से या दोनों से दण्डित किया जायेगा
इस कानून में इस तरह के अपराधों सूचना देना या उसे लेखबद्ध करना अनिवार्य किया गया है। कोई भी व्यक्ति, जो अपराध की रिपोर्ट करने में असफल हो जाता है या कोई व्यक्ति, ऐसे अपराध को लेखबद्ध करने में असफल जाताह है, या भी व्यक्ति, किसी कम्पनी या संस्था का प्रभारी होते हुए अपने कोई नियंत्रण के अधीन अधीनस्थ के द्वारा किये गये अपराध होने की रिपोर्ट करने में असफल हो जाता , को अधिकतम 1 वर्ष तक के कारावास और जुर्माने से दण्डित किया जायेगा।
*कोई भी व्यक्ति (सहित)जिसे यह आशंका हैकि इस अधिनियम अपराध होने की संभावना है या उसे यह जानकारी है कि अपराध किया गया है, तो उसे अनिवार्यता से संबंधित स्थानीय पुलिस अथवा विशेष किशोर पुलिस इकाई को दी जायेगी।
*बच्चे द्वारा दी गई सूचना को साधारण भाषा में लेखबद्ध किया जायेगा। आश्यकतानुसार बच्चे की भाषा समझने के लिए अनुवादक, विशेष शिक्षक या भाषान्तरकार की सेवाएं ली जायेगी।
*पुलिस द्वारा इस तरह की घटना के जानकारी में आने पर उसकी सूचना चौबीस घण्टे की अवधि के भीतर मामले की रिपार्ट सम्बन्धित बाल कल्याण समिति और विशेष न्यायालय को दी जायेगी।
*बच्चे के देखरेख एवं संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चे की श्रेणी का होने पर उसे चौबीस घण्टों के भीतर ,उसे उचित देखरेख एवं संरक्षण हेतु संबंधित बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जायेगा।
*बच्चे का बयान बच्चे के निवास पर या ऐसे स्थान परजहां वह निवास करता है या उसकी पसन्द पर के ऐसे स्थान संबंधित पुलिस व्रत्ताधिकारी/ सहायक पुलिस आयुक्त द्वारा लेखबद्ध किये जायेंगे बच्चे का बयान लेखबद्ध करते समय पुलिस अधिकारी पोशाक में नहीं होगा।
*यदि बच्चे का बयान दण्ड प्रक्रिया संहिता1973 की धारा 164 के अधीन लेखबद्ध किया जा रहा हो, तो ऐसा बयान लेखबद्ध करने वाला मजिस्ट्रेट बच्चे द्वारा बोले गये अनुसार बयान लेखबद्ध करेगा। इस दौरान अभियुक्त के अधिवक्ता की उपस्थिति लागू नहीं होगी।
*बच्चे के मातापिता या किसी अन्य व्यक्ति, जिसमें बच्चे को विश्वास हो, की उपस्थिति में बच्चे द्वारा बोले गये अनुसार बयान लेखबद्ध करेगा।'
*आवश्यकतानुसार बच्चे के बयान लेखबद्ध करते समय अनुवादक, विशेष शिक्षक या भाषान्तरकार की सहायता ले सकेगा।
*बच्चे के बयान आडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक साधनों द्वारा भी लेखबद्ध किये जायेंगे
*पुलिस अधिकारी,बच्चे से जानकारी प्राप्त करते समय यह सुनिश्चित करेगा कि समय के किसी बिन्दु पर, बच्चे किसी भी तरीके से अभियुक्त के सम्पर्क में नहीं आयें। किसी कारण से बच्चे को पुलिस स्टेशन में नहीं बुलाया जाएगा।
• बच्चे की पहचान पब्लिक, मीडिया से तब तक संरक्षित है, जब तक कि बच्चे के हित में विशेष न्यायालय द्वारा निर्देश नहीं दिया जाये।
• कोई भी व्यक्ति किसी पूर्ण और प्रमाणिक सूचना के बिना मीडिया या स्टुडियो या फोटोग्राफिक सुविधाओं के किसी रूप से किसी बच्चे पर कोई रिपोर्ट नहीं करेगा या टिप्पणियां नहीं करेगा, जो उसकी प्रतिष्ठा को गिराते हुए या उसकी गोपनीयता को प्रभावित करती हो। कोई भी रिपोर्ट
बच्चे के नामपता, फोटोग्राफ, परिवार के विवरणों, पडौसी या किन्हीं अन्य विवरणों, जो बच्चे की पहचान को प्रकट करते हों, सहित उसकी पहचान को प्रकट नहीं करेगी। परन्तु लेखबद्ध किये जाने वाले कारणों के लिए विशेष न्यायालय बच्चे के हित में ऐसा करने को अनुमति दे सकता है।
*मीडिया या स्टूडियो या फोटोग्राफिक सुविधाओं का प्रकाशक या मालिक अपने कर्मचारी के कार्यों के लिए संयुक्त रूप से और व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होगा। कोई भी व्यक्ति, जो इन प्रावधानों का उल्लंघन करता है, छ: माह से एक वर्ष तक के कारावास या जुर्माने या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
* पीड़ित बच्चे की चिकित्सीय जांच प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज हुए बिना भी दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 164 क के अनुसार संचालित की जाएगी।
* बच्चे के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति, जिसमें बच्चा अपना विश्वास रखता है, की उपस्थिति में चिकित्सीय जांच की जायेगी। लड़की की चिकित्सीय जांच महिला डॉक्टर द्वारा की जायेगी।
* अधिनियम के अधीन अपराधों का विचारण करने के लिए राज्य में प्रत्येक जिले के जिला एवं सत्र न्यायालय को विशेष न्यायालय के रूप में निर्धारित किया गया है। विशेष न्यायालय के समक्ष अभियोजन के लिए राज्य सरकार विशेष लोक अभियोजक की नियुक्ति करेगी।
*जहां एक व्यक्ति को इस अधिनियम की धाराओं 3, 5, 7 और धारा 9 के अधीन कोई अपराध करने या दुष्प्रेरित करने या करने का प्रयास करने के लिए अभियोजित किया जाता है, वहां विशेष न्यायालय यह मानेगा कि ऐसे
व्यक्ति ने अपराध किया है या दुष्प्रेरित किया है या करने का प्रयास किया है जब तक कि प्रतिकूलता साबित नहीं हो।
* विशेष न्यायालयतथ्यों की शिकायत प्राप्त होने पर ,जो ऐसा अपराध गठित करती हो, या ऐसे तथ्यों की पुलिस रिपोर्ट परअभियुक्त को विचारण के लिए इसे कमिट किये बिना ही, किसी अपराध का प्रसंज्ञान ले सकेगा।
* बच्चे का साक्ष्य अपराध का प्रसंज्ञान विशेष न्यायालय द्वारा लेने के तीस दिनों की अवधि के भीतर लेखबद्ध किया जायेगा। जहां कहीं भी आवश्यक हो, बच्चे का साक्ष्य लेखबद्ध करते समय अनुवादक या भाषान्तरकार की सहायता ले सकेगा।
* विशेष लोक अभियोजक, या यथास्थिति अभियुक्त के लिए उपस्थित हुआ अधिवक्ता बच्चे की मुख्य परीक्षा, प्रति परीक्षा या पुनः परीक्षा लेखबद्ध किये जाने के समय बच्चे को पूछे जाने वाले प्रश्न विशेष न्यायालय को प्रस्तुत करेंगे, जो अपनी बारी आने पर बच्चे को उन प्रश्नों को पूछेगा
* विशेष न्यायालय बन्द कमरे में, बच्चे के माता-पिता, संरक्षक , मित्र या किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में, जिसमें बच्चे को विश्वास हो, को न्यायालय में उपस्थित रहने की अनुमति देते हुए बाल मैत्री माहौल में सुनवाई करे।
* विशेष न्यायालय , विचारण के दौरान बच्चे के लिए बीच-बीच में अन्तराल की अनुमति दे सकेगा। विशेष न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि न्यायालय में साक्ष्य देने के लिए बच्चे से बार-बार नहीं बुलाया जाये।
* विशेष न्यायालय आक्रामक प्रश्न पूछा जाना या बच्चे के चरित्र पर हमला करने से रोकेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि विचारण के दौरान सभी समय पर बच्चे की मर्यादा बनी रहे।
* विशेष न्यायालय वीडियों कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये या एक तरफ दिखाई देने वाले कांच या पर्दे या किसी अन्य उपकरण का उपयोग करते हुए बच्चे के बयान को लेखबद्ध कर सकेगा।
* विशेष न्यायालय यह सनिश्चित करेगा कि साक्ष्य लेखबद्ध करने के समय पर बच्चे किसी भी तरीके में अभियुक्त को नहीं दिख रहा हो जबकि उसी समय यह सुनिश्चित करेगा कि अभियुक्त बच्चे का बयान सुनने और अपने
अधिवक्ता से बात करने की स्थिति में है।
* विशेष न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि अनुसंधान या विचारण के अनुक्रम के दौरान किसी भी समय बच्चे की पहचान प्रकट नहीं हो; परन्तु लेखबद्ध किये जाने वाले कारणों के लिए बच्चे के हित विशेष न्यायालय ऐसा प्रकटीकरण की अनुमति दे सकेगा
* जहां इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध बच्चे द्वारा करीत किया गया हो, वहां ऐसे बच्चे को किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम2000 के प्रावधानों के अधीन देखा जायेगा ।
* विशेष न्यायालय अपराध का प्रसंज्ञान लेने की तिथि से एक वर्ष की अवधि के भीतर मामला निस्तारित करेगा
अधिनियम के अंतर्गत बच्चे का परिवार या संरक्षक अपनी पसन्द के विधि अधिवक्ता की सहायता लेने का हकदार होगा। परन्तु यदि बच्चे का परिवार या संरक्षक विधि अधिवक्ता का खर्च वहन करने में असमर्थ हो, तो विधिक सेवा प्राधिकरण उन्हें निशुल्क अधिवक्ता की सेवाएं प्रदान करेगा।
विशेष न्यायालयसमुचित मामलों में स्वप्रेरणा से या आवेदन प्रस्तुत होने पर प्रथम सूचना रिपोर्ट के दर्ज होने के पश्चात पीड़ित बच्चे के पक्ष में अन्तरिम अनुतोष का आदेश पारित कर सकेगा, जिसे अन्तिम प्रतिकर में समायोजित
किया जाएगा। ऐसा प्रतिकर पीड़ित प्रतिकर स्कीम के तहत / राज्य सरकार द्वारा दिया जाएगा।
बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम 2005 की धारा 3 के अधीन गठित राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग या धारा 17 के अधीन गठित राज्य बाल अधिकार संरक्षण
आयोग द्वारा अधिनियम के प्रावधानों के क्रियान्वयन के
की निगरानी की जायेगी।
राजस्थान राज्य बाल अधिकार सरंक्षण आयोग
2, जल पथ , गांधी नगर, जयपुर (राज) 302015
दुरभाष नम्बर 0141-2709319
ईमेल- rscpcr.jaipur@gmail.com
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सभी जानकारी लाभकारी है। भविष्य में भी शिविरा से ऐसी अपेक्षा है।