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Rajasthan Government Calendar 2020

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राजस्थान सरकार कैलेंडर 2020

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वं हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बारे पूर्ण अधिकृत जानकारी।

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हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी

हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधीराष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के 150वीं जयन्ती वर्ष के उपलक्ष्य में उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप वर्ष 2020 का कैलेंडर समर्पित है। श्री मोहनदास करमचंद गाँधी का पूरा जीवन सत्य, अहिंसा, सादगी, आत्मोथान और ग्राम विकास को समर्पित था। उन्होंने भारत को गुलामी की बेड़ियों से स्वतंत्र कराने के लिए अहिंसा का मार्ग अपनाया और विश्व शांति का संदेश देकर पूरी दुनिया में भारत की अप्रतिम श्रेष्ठता सिद्ध की। उनकी आत्मकथा “सत्य के प्रयोग” आज भी हमें अचम्भित
करती है।

हमारे राष्ट्रपिता, जन-जन में बापू के विचार आज भी प्रासंगिक हैं और युवाओं को प्रेरणा देते हैं। स्वावलम्बन की राह दिखाता उनका चरखा मन, वचन एवं कर्म से सरलता के ताने-बाने में बुनी उनकी उज्ज्वल छवि आज भी हमारी थाती है। ग्राम विकास की उनकी अवधारणा जो आत्मविकास, स्वराज और परम्परा को विज्ञान की कसौटी पर खरा साबित करती है, आज भी किसानों में उमंग का संचार करती है। आइये फिर से जियें उस विराट व्यक्तित्व को जिनके लिए कवियों ने गीत रचे और वे जन-जन के स्वरों में रच-बस गये।

दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल !!

सुनो-सुनो ऐ दुनिया वालों ,बापू की ये अमर कहानी…
वो बापू जो पूज्य हैं, इतना जितना गंगा माँ का पानी….

काठियावाड़ रियासत के दीवान करमचन्द के पोरबन्दर स्थित घर में 2 अक्टूबर 1869 को मोहनदास का जन्म हुआ। कौन जानता था कि यह बालक मोहनदास करमचन्द गाँधी बड़ा होकर भारत का भाग्य निर्माता बनेगा।

बालक मोहनदास के जीवन पर उनकी माँ का गहरा प्रभाव पड़ा। उनकी माँ पुतलीबाई धार्मिक महिला थीं, जिनकी दिनचर्या में नियमित उपवास शामिल था। वे अपने परिवार में किसी के बीमार पड़ने पर सेवा में रात-दिन एक कर देती थीं। मोहनदास का लालन-पालन वैष्णव परिवार में हुआ और उन पर जैन धर्म का गहरा प्रभाव पड़ा, जिसमें अहिंसा एवं परिग्रह के सिद्धांत मुख्य हैं।

स्वाभाविक रूप से उन्होंने जीवनभर आत्मशुद्धि के लिए उपवास, शाकाहार, अहिंसा, जीव मात्र से प्रेम और परस्पर सहिष्णुता को अपनाया। वे प्रत्येक धर्म के प्रति एक समान भाव रखते थे। बालपन में माँ से सुनी सत्यवादी हरिशचंद्र और श्रवण कुमार की आदर्श कथाओं ने उनके जीवन पर गहरा असर डाला।

मोहनदास का विवाह कस्तूरबाई मांखजी कपाड़िया से हुआ जो बाद में कस्तूरबा के नाम से जानी गई। मोहनदास मैट्रिक की परीक्षा और भावनगर कालेज से डिग्री के बाद बैरिस्टर बनने लंदन चले गये।

गाँधीजी ने दक्षिण अफ्रीका जाकर प्रवासी वकील के रूप में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के संघर्ष हेतु सत्याग्रह (सविनय अवज्ञा आन्दोलन) करना शुरू किया। तब युवा मोहनदास ने आम आदमी के दु:ख, चिंता, परेशानियों का नजदीक से अनुभव किया और यहीं से उनकी मोहनदास से महात्मा बनने की यात्रा का बीज पड़ा। भारत वापसी से ठीक पहले ट्रेन में डरबन में उनके साथ हुए एक हादसे ने उनके जीवन का नजरिया बदल दिया।

गाँधीजी ने असहयोग, अहिंसा तथा शांतिपूर्ण प्रतिकार से भारत की गुलामी की जंजीरों को काटा। चम्पारन सत्याग्रह और खेड़ा सत्याग्रह गाँधीजी की पहली बड़ी उपलब्धि रही। वहाँ भारतीयों को न्यूनतम भरपाई भत्ता दिया गया, जिससे वे गरीबी से घिर गए। गाँवों में गंदगी, शराब, छुआछूत और पर्दा प्रथा जैसी बुराइयाँ आ गयीं। अकाल के कारण कर लगा दिए, जिनका बोझ दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही गया। गाँधीजी ने प्रयास किये व इस निराशाजनक स्थिति से पार पाने में अंतत: वे सफल हुए।

गाँधीजी ने एक आश्रम बनाया जहाँ उनके समर्थकों और नए स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं को संगठित किया गया। उन्होंने गांवों का एक विस्तृत अध्ययन और सर्वेक्षण किया तथा ग्रामीणों में विश्वास पैदा करते हुए उन्होंने अपना कार्य गांवों की सफाई करने से आरंभ किया, जिसके अंतर्गत स्कूल और अस्पताल बनाए गए तथा गंदगी, शराब, छुआछूत और पर्दा प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों को जड़ से मिटाने के लिए स्थानीय ग्रामीण नेतृत्व को प्रेरणा और उत्साह दिया।

पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया और प्रांत छोड़ने के आदेश दिए तब हजारों लोगों ने विरोध प्रदर्शन किए और जेल, पुलिस स्टेशन एवं अदालतों के बाहर रैलियां निकालकर गाँधीजी को बिना शर्त रिहा करने की मांग की। इस संघर्ष के दौरान ही, गाँधीजी को जनता ने बापू, पिता और
महात्मा (महान आत्मा) के नाम से संबोधित किया।

गाँधीजी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया गया। उनके नेतृत्व में कांग्रेस को स्वराज का नारा दिया। पार्टी को किसी एक संगठन की न बनाकर इसे राष्ट्रीय पार्टी बनाने के लिए इसके अंदर एक समिति गठित की गई।

गाँधीजी ने स्वदेशी नीति के लिए अपने अहिंसात्मक मंच का विस्तार किया जिसमें विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना था। उनका कहना था कि सभी भारतीय विदेशी वस्त्रों की अपेक्षा हमारे अपने लोगों द्वारा हाथ से बनाई गई खादी पहनें। गाँधीजी ने स्वतंत्रता आंदोलन में सहयोग देने के लिए पुरुषों और महिलाओं को प्रतिदिन खादी के लिए सूत कातने में समय बिताने के लिए कहा। यह अनुशासन और समर्पण लाने की प्रभावी नीति थी जिससे सरल जीवन का मार्ग अपनाया जा सके और अनिच्छा और अति महत्वाकांक्षा को दूर किया जा सके।

दांडी में गाँधीजी ने नमक पर कर लगाए जाने के विरोध में नया सत्याग्रह चलाया ताकि स्वयं नमक उत्पन्न किया जा सके और इसके लिए 400 किलोमीटर पैदल मार्च किया जो दांडी मार्च के नाम से जाना गया।

गाँधीजी ने कलकत्ता में आयोजित कांग्रेस के एक अधिवेशन में एक प्रस्ताव रखा जिसमें भारतीयों को सत्ता प्रदान करने के लिए कहा गया था और संपूर्ण देश को आजादी के लिए असहयोग आंदोलन का सामना करने के लिए तैयार किया।

उस समय तत्कालीन समाज में एक प्रमुख बुराई छुआछूत थी, जिसके विरुद्ध महात्मा गाँधी और उनके अनुयायी संघर्षरत रहते थे।

महात्मा गाँधी, भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद और अनेक देशभक्तों के अथक प्रयासों और भारत छोड़ो आन्दोलन से सम्पूर्ण भारतीयों को संगठित होकर अंतत: देश को आजादी मिली।

महान लोग क्रूरता और नाराजगी के शिकार होते हैं, क्योंकि वे सत्य पथ से विलग नहीं होते। प्रतिदिन होने वाली एक प्रार्थना सभा में नाथूराम गोडसे द्वारा गाँधीजी को मार दिया गया पर आज भी वे करोड़ों भारतीयों के दिलों में जीवित हैं व विश्व के कई देशों में अहिंसा, सत्य, शांति, सद्भावना, स्वदेशी और सरलता व सादगी के लिए लोकप्रिय हैं।

गाँधीजी के सिद्धान्त

सत्य

महात्मा गाँधी ने “सत्य के प्रयोग” नामक आत्मकथा लिखी। जिसमें गाँधीजी ने बताया है कि उन्होंने सत्य की खोज कैसे स्वयं की गलतियों और स्वयं पर प्रयोग करते हुए की और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपनी जान तक की परवाह नहीं की । गाँधीजी ने सत्य को ही भगवान माना। उनके अनुसार सबसे महत्त्वपूर्ण लड़ाई डर पर विजय पाना है।

अहिंसा और सर्वोदय

“संयुक्त राष्ट्र महासभा” द्वारा प्रतिवर्ष 2 अक्टूबर को “अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस” के रूप में मनाया जाता है।

राजनीतिक क्षेत्र में अहिंसा का इस्तेमाल करने वाले प्रथम व्यक्ति गाँधीजी थे। वे अहिंसा यानि प्राणी मात्र के प्रति करुणा व प्रेम का प्रचार करने वाले बने।

उन्होंने कहा –“मरने के लिए मेरे पास बहुत से कारण हैं किंतु मेरे पास किसी को मारने का कोई भी कारण नहीं है।”

गाँधीजी ने अपनी आत्मकथा “द स्टोरी ऑफ़ माय एक्सपेरिमेंटस विथ टूथ” यानि सत्य के प्रयोग में ईमानदारी और बेबाकी से अपने जीवन जीने का ढंग बताया है।

उनकी आत्मकथा का अंश : जिसने मेरे जीवन में तत्काल महत्त्व के रचनात्मक परिवर्तन कराये, वह ‘अंटु दिस लास्ट‘ पुस्तक ही कही जा सकती है। बाद में मैंने उसका गुजराती अनुवाद किया और वह ‘सर्वोदय’ नाम से छपा। मेरा यह विश्वास है कि जो चीज मेरे अन्दर गहराई में छिपी पड़ी थी, रस्किन के ग्रंथरत्न में मैंने उनका प्रतिबिम्ब देखा और इस कारण उसने मुझ पर अपना साम्राज्य जमाया और मुझसे उसमें अमल करवाया। जो मनुष्य हम में सोयी हुई उत्तम भावनाओं को जाग्रत करने की शक्ति रखता है, वह कवि है। सब कवियों का सब लोगों पर समान प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि सबके अन्दर सारी सद्भावनाएं समान मात्रा में नहीं होतीं। मैं ‘सर्वोदय’ के सिद्धान्तों को इस प्रकार समझा हूँ :
1. सब की भलाई में हमारी भलाई निहित है,
2. आजीविका का अधिकार सबको एक समान है।
3. सादा मेहनत-मजदूरी का, किसान का जीवन ही सच्चा जीवन हैं।

पहली चीज मैं जानता था। दूसरी को धुंधले रूप में देखता था। तीसरी का मैंने कभी विचार ही नहीं किया था। ‘सर्वोदय‘ ने मुझे दीये की तरह दिखा दिया कि पहली चीज में दूसरी चीजें समायी हुई हैं। सवेरा हुआ और मैं इन सिद्धान्तों पर अमल करने के प्रयत्न में लगा।”

साबरमती आश्रम

सादगी, शाकाहार और उपवास पर जोर महात्मा गाँधी ने साबरमती आश्रम में अपना जीवन बिताया और चरखे पर सूत कातकर हाथ से बनी परम्परागत भारतीय पोशाक धोती व सूत से बनी शाल पहनी ।गाँधीजी ने शाकाहार अपनाया और आत्मशुद्धि के लिये लम्बे-लम्बे उपवास रखे।

उन्होंने द मोरल बेसिस ऑफ वेजीटेरियनिज्म विषय पर लेख लिखे जिनमें से कुछ लंदन वेजीटेरियन सोसायटी के प्रकाशन द वेजीटेरियन में छपे। गाँधीजी स्वयं इस अवधि में बहुत सी महान विभूतियों से प्रेरित हुए और लंदन वेजीटेरियन सोसायटी के चैयरमेन डॉ. जोसिया ओल्डफील्ड के मित्र बन गए। हेनरी स्टीफन साल्ट की कृतियों को पढ़ने के बाद युवा मोहनदास गाँधी इस शाकाहारी प्रचारक से मिले। गाँधीजी का कहना था कि शाकाहारी भोजन न केवल शरीर की जरूरतों को पूरा करता है बल्कि यह आर्थिक प्रयोजन की भी पूर्ति करता है, मांस अनाज, सब्जियों और फलों से अधिक महंगा होता है। इसके अलावा कई भारतीय जो आय कम होने की वजह से संघर्ष कर रहे थे, उस समय जो शाकाहारी के रूप में दिखाई दे रहे थे वह आध्यात्मिक परम्परा ही नहीं व्यावहारिकता के कारण भी था। गाँधीजी शुरू से फलाहार करते थे लेकिन अपने चिकित्सक की सलाह से बकरी का दूध पीना शुरू किया था। उनकी आत्मकथा में यह नोट किया गया है कि शाकाहारी होना ब्रह्मचर्य में गहरी प्रतिबद्धता होने की शुरूआती सीढ़ी है।

विश्वास

गाँधीजी ब्रह्मज्ञान के जानकार थे और सभी प्रमुख धर्मों को विस्तार से पढ़ते थे। सर्वप्रिय बापू का मानना था कि प्रत्येक धर्म के मूल में सत्य और प्रेम होता है। उन्होंने आध्यात्मिकता के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातें कही हैं-

जब संदेह मुझे घेर लेता है, जब निराशा मेरे सम्मुख आ खड़ी होती है, जब क्षितिज पर प्रकाश की एक किरण भी दिखाई नहीं देती, तब मैं ‘भगवद्गीता‘ की शरण में जाता हूँ और उसका कोई-न-कोई श्लोक मुझे सांत्वना दे जाता है और मैं घोर विषाद के बीच भी तुरंत मुस्कुराने लगता हूँ। मेरे जीवन में अनेक बाह्य त्रासदियां घटी हैं और यदि उन्होंने मेरे ऊपर कोई प्रत्यक्ष या अमिट प्रभाव नहीं छोड़ा है तो मैं इसका श्रेय ‘भगवद्गीता‘ के उपदेशों को देता हूँ।

उनका कहना है कि ‘कुरान’, ‘बाइबिल’ अथवा ‘गीता’ किसी भी माध्यम से देखिए, हम सबका ईश्वर एक ही है और वह सत्य तथा प्रेम स्वरूप है। वे एक अथक समाज सुधारक थे।

उन्होंने प्रार्थना सभाओं में कहा-

कोई मनुष्य असत्यवादी, क्रूर या असंयमी हो और वह यह दावा करे कि परमेश्वर उसके साथ है, यह कभी हो ही नहीं सकता।

मुहम्मद की बातें ज्ञान का खजाना है, सिर्फ मुसलमानों के लिए ही नहीं बल्कि पूरी मानव जाति के लिए। बाद में उनसे जब पूछा गया कि क्या तुम हिंदू हो, उन्होंने कहा: हाँ मैं हूँ। मैं एक ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध और यहूदी भी हूँ।‘ महात्मा गाँधी ने लोगों को अस्पृश्यता को महापाप मानकर त्यागने की प्रेरणा दी। मनुष्य का अहंकार ही उससे ऐसा कहता है कि वह अन्य लोगों से श्रेष्ठ है। उन्होंने कहा ब्रह्मांड में हो रही प्राकृतिक घटनाओं और मानवीय व्यवहार के पारस्परिक संबंध में मेरा जीवंत विश्वास है और उस विश्वास के कारण मैं ईश्वर के अधिकाधिक निकट आता गया हूँ, मुझमें विनम्रता आई है और मैं अपने को ईश्वर के सम्मुख उपस्थित करने के लिए अधिकाधिक तैयार होता गया हूँ।

प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें

महात्मा गाँधी ने चार पुस्तकें लिखीं – हिंद स्वराज, दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास, सत्य के प्रयोग (आत्मकथा), तथा गीता पदार्थ कोश सहित संपूर्ण गीता की टीका।

हिंदू स्वराज

हिंद स्वराज ग्रंथरत्न गाँधीजी ने इंग्लैंड से लौटते समय किल्डोनन कैसिल नामक जहाज पर गुजराती में लिखा था और उनके दक्षिण अफ्रीका पहुँचने पर इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित हुआ था।

दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास

जब वे यरवदा जेल में थे तब ‘दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास’ लिखना शुरू किया। रिहा होने के समय तक उन्होंने प्रथम 30 अध्याय लिख डाले थे।

सत्य के प्रयोग (आत्मकथा)

आत्मकथा के मूल गुजराती अध्याय धारावाहिक रूप से ‘नवजीवन’ के अंकों में प्रकाशित हुए थे।

गीता माता

श्रीमद् भगवद्गीता से गाँधीजी का हार्दिक लगाव प्रायः आजीवन रहा। गीता के प्रत्येक श्लोक का अनुवाद सामान्य पाठकों के लिए सहज बोधगम्य न होने से गाँधीजी ने गीता के प्रत्येक अध्याय के भावों को सामान्य पाठकों के लिए सहज बोधगम्य रूप में लिखा। गीता पर उनका चिंतन-मनन तथा लेखन भी लंबे समय तक चलता रहा। सम्पूर्ण गीता गुजराती और बाद में उसका हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला एवं मराठी में अनुवाद भी हुआ। उन्होंने गीता पर प्रार्थना सभाओं में अनेक प्रवचन दिये थे। गीता से गाँधीजी का जुड़ाव इस कदर था कि अपने अत्यंत व्यस्त जीवन के बावजूद उन्होंने गीता के प्रत्येक पद का अक्षर क्रम से कोश तैयार किया और ‘गीता माता‘ के नाम से प्रकाशन हुआ।

गाँधीजी के लिखित एवं वाचिक समग्र साहित्य के प्रकाशन हेतु भारत सरकार द्वारा एक ग्रंथमाला सम्पूर्ण गाँधी वाङ्मय प्रकाशन रहा है। इस ग्रंथमाला का उद्देश्य गाँधीजी ने दिन-प्रति- दिन और वर्ष-प्रति-वर्ष जो कुछ कहा और लिखा उस सबको एकत्र करना था।

6 जुलाई 1944 को सुभाष चन्द्र बोस ने रंगून रेडियो से गाँधीजी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए आज़ाद हिन्द फौज़ के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगी थीं। गाँधीजी को उनके न्याय और सत्य के सराहनीय बलिदान के लिए महात्मा नाम मिला है। वे जन-जन के प्रिय बापू के नाम से भी जाने जाते हैं। 1930 में टाइम पत्रिका ने महात्मा गाँधी को वर्ष का पुरुष का नाम दिया। यूनाइटेड किंगडम में उनकी प्रतिमाएँ हैं जैसे लन्दन विश्वविद्यालय कालेज के पास ताविस्तोक चौक, लन्दन जहाँ पर उन्होंने
कानून की शिक्षा प्राप्त की। यूनाइटेड किंगडम में जनवरी 30 को “राष्ट्रीय गाँधी स्मृति दिवस”
मनाया जाता है। संयुक्त राज्य में, गाँधीजी की प्रतिमाएँ न्यूयार्क, अटलांटा और वाशिंगटन डी.सी. में हैं। दक्षिण अफ्रीका, जहाँ पर गाँधीजी को प्रथम-श्रेणी से निकाल दिया गया था वहां उनकी स्मृति में एक प्रतिमा स्थापित की है।

गाँधीजी को शान्ति का नोबेल पुरस्कार हेतु पाँच बार नामांकित किया गया, पर प्राप्त नहीं हुआ, दशकों उपरांत जब दलाई लामा को पुरस्कृत किया गया तब नोबेल समिति ने सार्वजनिक रूप में यह घोषित किया कि उन्हें अपनी इस भूल पर खेद है और “यह महात्मा गाँधी की याद में श्रद्धांजलि का ही हिस्सा है।” वह न केवल एक महान नेता और समाज सुधारक थे बल्कि एक उत्कृष्ट नवोन्मेषक भी थे, जिनके रचनात्मक और प्रगतिशील विचार आज भी प्रासंगिक हैं। महात्मा गाँधी सामाजिक न्याय, अहिंसा, आत्मनिर्भरता और समानता के प्रबल समर्थक थे।

आज दुनिया कई समस्याओं का सामना कर रही है, जैसे कि ग्लोबल वार्मिंग, बढ़ती हिंसा की घटनाएं और असहिष्णुता। इस मुश्किल घड़ी में हम अपने समृद्ध अतीत से सीख लें और सोचें कि कैसे गाँधीजी के मूल्यों का इस्तेमाल कर एक नई दुनिया बनाई जाए, एक ऐसी दुनिया जो प्यार, सद्भाव, शांति और न्याय से परिपूर्ण हो।तो आइए, साथ मिलकर एक उज्ज्वल और बेहतर भविष्य के निर्माण की दिशा में कुछ नया करें।

मूल्य : 23.00 रुपयेराज्य केन्द्रीय मुद्रणालय, जयपुर।

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