राजस्थानी लोककथा: “अपने आप से भी गया!”
एक छोटे से ग्राम में एक गुरुकुल था! वह गुरूजी अपने समस्त शिष्यों को प्रेम पूर्वक अध्यापन कार्य करते थे! उनका एक होनहार छात्र नियमित रूप से ज्ञानार्जन हेतु उनके गुरुकुल में आता था! एक दिन वह छात्र गुरूजी के लिए अपने घर से मिठाई लाया!
गुरूजी ने प्रेमपूर्वक मिठाई लाने का कारण पूछा तो शिष्य ने बताया के कल उसकी सगाई हो गयी हैं! गुरूजी ने मिठाई खाते हुए कहा” समाचार तो बहुत शुभ है, परन्तु तू आज से मुझ से तो गया” ! शिष्य को समझ में नहीं आया!
समय बीतने के साथ एक दिन वह पुनः मिठाई लाया और गुरूजी के समक्ष प्रेमपूर्वक रखी ! गुरूजी के पूछने पर उसने बताया कि वह अपनी शादी हो जाने की ख़ुशी मं मिठाई लाया हैं! गुरूजी ने प्रेमपूर्वक मिठाई खायी और कहा कि ” आज से तू अपने माता पिता से गया”! शिष्य ने कारण पूछा परन्तु गुरुवर ने टाल दिया!
कुछ समय बीतने पर एक दिन शिष्य फिर मिठाई लेकर आया और उसने गुरूजी को सादर बताया की आज वह पुत्र होने की ख़ुशी में मिठाई लाया है! गुरूजी ने मिठाई का आनंद लेते हुएं कह दिया कि ये बहुत प्रसन्नता की बात है कि शिष्य के घर बच्चा हुआ है परन्तु साथ में शिष्य को ये भी कह दिया कि ” आज से वो अपने आप से भी गया”!
शिष्ये ने आग्रह पूर्वक गुरूजी द्वारा कहे गए वचनो का अर्थ पूछने पर गुरूजी ने बताया-
” वत्स! जब तेरी सगाई हो गयी थी तो तेरा सारा ध्यान अपनी होने वाली वधु पर रहने लगा, अर्थात तेरा ध्यान विद्या की तरफ कम हो गया अतः तू मुझसे गया! फिर जब तेरी शादी हुई तो तेरा ध्यान अपने परिवार और उसकी जरूरते पूरी करने पर लग गया और तेरा ध्यान अपने माता पिता पर कम होने लग गया अतः शादी के बाद तू अपने माता पिता से भी गया! अब तेरे बच्चा हो गया और अब वोही तेरे सुख दुःख का आधार बिंदु रहेगा, तू अपनी जरूरते पूरी करने की अपेक्षा उसकी आवश्यकता पर प्राथमिकता देगा अतः अब तो तू समझ ले कि तू खुद से भी गया! परन्तु येही संसार चक्र हैं!
शिष्य ने गुरु को दंडवत प्रणाम किया और संसार सागर की तरफ अग्रसर हो गया!
सादर!
सुरेन्द्र सिंह चौहान!