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Rani Lakshmi Bai: Her Story with review of movie Manikarnika.

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2015 6Image 17 52 033933642Rani Laxmi Bai3 Ll Education News Rajasthan Shivira.com

मणिकर्णिका: लक्ष्मीबाई पर एक विशेष आलेख, फ़िल्म समीक्षा व सम्वाद।

मणिकर्णिका: लक्ष्मीबाई की सम्पूर्ण कहानी

भारतवर्ष एक महान देश जहां मिट्टी भी सोना थी। यहाँ जब अंग्रेज अत्याचारी गुजरे तो उठ खड़ी हुई मणिकर्णिका। एक ज्योतिष ने उनके नामकरण के समय कहा था कि वो दीर्घायु होगी या नही , यह नही सकता लेकिन कह सकता हुँ कि वे “अमर” होगी।
उस मणिकर्णिका यानी लक्ष्मी बाई पर बनी इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका कंगना राणावत ने निभाई है। फ़िल्म के आरम्भ में ही मणिकर्णिका द्वारा एक शेर के शिकार के दृश्य को बहुत रोमांचक प्रकार से फिल्माया गया है।

फ़िल्म के आरम्भ से ही अंग्रेजों के कुचक्र को जाहिर करना शुरू कर दिया जाता है। अंग्रेज भारतीयों के आपसी तकरार से स्वयम को लाभान्वित करते थे। यही लड़ाई झाँसी में भी थी जहाँ उत्तराधिकारी के मुद्दे पर अंग्रेज वहाँ कब्जा चाह रहे थे।

बिठूर गाँव मे जन्मी मणि का रिश्ता झांसी के महाराज से मात्र वैवाहिक ही नही होकर मातृभूमि की रक्षार्थ भी सम्पन्न हुआ था। मणिकर्णिका के पिता ने राष्ट्र सुरक्षा हेतु यह रिश्ता स्वीकृत किया था। मणिकर्णिका यानि मनु बचपने से ही तलवारों से खेली थी और अंत तक उन्ही के साथ रही। मणि सिर्फ तलवारों की शौकीन नही थी अपितु किताबे भी उसकी संगी थी।
जब मणि का रिश्ता झाँसी महाराज से हुआ तो वह समझ गई कि उसे भारत राष्ट्र हेतु कुछ विशेष करना ही पड़ेगा। विवाह के बाद “सुंदर” व “मुंदर” सेविकाएं उनकी सेवा में नियुक्त हुई थी।

झाँसी की तत्कालीन स्तिथि बहुत विचित्र थी क्योंकि आम जन के साथ ही वहाँ के महाराज तक चूड़ियां पहनते थे, अंग्रेज लूटना चाहते थे व दरबारी षड्यंत्र में व्यस्त थे। मणिकर्णिका से उम्मीद थी कि वो चूड़ियां तोड़ देगी, लूट बन्द करवा देगी व षड्यंत्र समाप्त कर देगी। इसमें झाँसी राजा उनके साथ हो गए क्योकि उनको आभास था कि उनकी शादी किसी साधारण नारी से कदापि नही हुई थी। इसीलिए महाराज गंगाधर ने शादी के पश्चात उनका नया नाम मणिकर्णिका के स्थान पर “लक्ष्मी” रखा।

महाराज गंगाधर ने उनसे असीम प्रेम ही नही किया अपितु लक्ष्मीबाई की हर आवश्यता को प्राथमिकता में रखा। उन्होंने लक्ष्मी बाई हेतु हर सुविधा यथा – शस्त्र संचालन, पुस्तकें, प्रशासन में हिस्सेदारी की व्यवस्था सुनिश्चित की।

तत्कालीन समय मे सम्पूर्ण भारत की तरह अंग्रेजो का अधिपत्य झाँसी पर भी था। जब कोई अंगेज अफसर बाजार से निकलता तो सब झुक कर कोर्निश करते। यहां तक कि राजा भी, लेकिन झाँसी की नई रानी को अपना सर झुकाना कब पसन्द था? यह भी झाँसी का अजीब दस्तूर था कि सभी को अपने हाथों में चूड़ियां पहनने पड़ती थी, राजा गंगाधर को भी।

एक रोज जब डाकू संग्राम सिंह के बारे में लक्ष्मी बाई ने जाना तो लगा कि वो सहायक बन सकता है। रानी लक्ष्मीबाई को उनके ससुराल के लोग रसोई में देखना चाहते थे जबकि वो व्यवस्था में सुधार चाहती थी।
लक्ष्मी बाई ने बहुत अध्ययन किया था अतैव उन्होंने अपने राज्य में सुधार आरम्भ किया। यह सुधार अंग्रेजो को बहुत शिद्दत से खलने भी लगा। लक्ष्मी बाई की बढ़ती सामाजिक व राजनीतिक गतिविधियों के कारण उनके शत्रुओं की संख्या बढ़ने लगी थी। महाराज गंगाधर लक्ष्मी बाई को बहुत प्रेम करते थे लेकिन समाज में अनेक तत्व सक्रिय थे जो लक्ष्मीबाई के विरोधी थे।

जब लक्ष्मी बाई गर्भवती हुई तो अंग्रेजी खेमे में हलचल आरम्भ होने लगी क्योंकि झाँसी को अब युवराज मिलने वाला था। अंग्रेजों ने लक्ष्मीबाई के विरुद्ध षडयंत्र रचने आरम्भ कर दिए लेकिन झाँसी को वारिस मिला।

वारिस के मिलने के बाद जब झाँसी सशक्त होने लगी तब छोटे-छोटे मुद्दे लक्ष्मीबाई व अंग्रेजो के मध्य उतपन्न होने लगे। लक्ष्मीबाई अपनी शैक्षणिक व साहसिक योग्यता के आधार पर अपने पुत्र युवराज दामोदर को पालने लगी व झाँसी के हितार्थ अंग्रेजों से भी टकराने लगी। षडयंत्रो के सिलसिले में एक रोज लक्ष्मीबाई को अपने पुत्र दामोदर से दूर होना पड़ा एवम महाराज भी भयंकर बीमारी के शिकार होने लगे।

पुत्र वियोग व महाराज की बीमारी भी अंग्रेजी षड्यंत्र का परिणाम ही थी। जब महाराज को अहसास हुआ कि वो नही रहेंगे तो उन्होंने झाँसी की रक्षार्थ एक बच्चा गोद लेने का निर्णय किया तब उन्होंने आनंद राव नामक बालक को गोद लेकर उसे गंगाधर नाम दिया।

झाँसी महाराज ने जब झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को बताया कि वो अंग्रेजों के खिलाफ कुछ नही कर पाने की बेबसी के कारण वह चूड़ियां पहनने के लिए मजबूर हुए थे तब लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ सँघर्ष का संकल्प लिया। महाराजा के शहीद होने के बाद लक्ष्मीबाई ने झाँसी की रक्षार्थ संकल्प लिया।

लक्ष्मीबाई ने झाँसी के सिंहासन पर अपने गोद लिए पुत्र को गद्दीनशीन किया। अंग्रेज , जो की भेड़िया बन कर पूरे भारत पर काबिज होना चाह रहे थे उन्हें लक्ष्मीबाई की खुद्दारी खलने लगी।

झाँसी की रानी ने जब अपने दत्तक पुत्र का हक मांगा तो अंग्रजो ने उसे अस्वीकार कर दिया। अंग्रेजो ने अचानक धावा बोलकर रानी को निष्कासित करके उनके महल, किले व उनकी पहचान को नष्ट करने का प्रयास किया गया।

1857 में मंगल पांडे की बगावत जब झाँसी तक पहुंची। लक्ष्मी बाई ने वक्त को पहचाना तथा मेरठ व लखनऊ में उठते बागी स्वरों को पहचान कर अंग्रेज के खिलाफ शक्तियों को एकत्र करना आरम्भ किया। स्वतंत्रता सेनानियों ने कर्नल गॉर्डन को उसके परिवार सहित मार डाला। अंग्रेजो ने कानपुर व बिठूर को जला डाला। रजवाड़ों ने सिर झुका दिए सिवाय झाँसी ने। लक्ष्मीबाई ने पुनः राजमहल पर कब्जा किया व अंग्रेजो के विरुद्ध संघर्ष की तैयारी आरम्भ की।
झाँसी की जनता धीरे धीरे रानी लक्ष्मीबाई के साथ होने लगी। अंग्रजो के विरोधी लक्ष्मी बाई के साथ जुटने लगे।

अंग्रेजों ने झाँसी पर हमला बोल दिया। झाँसी की तोपो ने अंग्रेजो को मुंहतोड़ जबाब दिया। अंग्रेजों ने चाल चली व किले के बाहर स्थित एक मंदिर के पिछे से गोले दागने शुरू कर दिए। रानी ने किला छोड़ कर खुले में उतर कर उस बाधा को दूर कर दिया व अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए।

आखिरकार अंग्रेजो ने अपना दांव आजमाया व किले के भीतर घुसपैठ की व किले की सबसे कमजोर दीवार का पता लगा लिया। इस दीवार पर हमला करके उन्होने किले में प्रवेश कर लिया। किले में जबरदस्त युद्ध हुआ जिसमें अनेक वीर शहीद हुए।
रानी लक्ष्मीबाई को अपने युवराज पुत्र के साथ किला छोड़ना पड़ा लेकिन अंग्रेजो ने झाँसी में कत्लेआम मचा दिया। नाना लापता हो गए, रानी के अनेक स्वामिभक्त शहीद हो गए। अंग्रेजो ने दिल्ली के बादशाह को गिरफ्तार कर लिया। लक्ष्मी बाई ने इसके बावजूद हथियार नही डाले।

लक्ष्मीबाई ने अपनी शक्ति एकत्र करके सभी रजवाड़ों को जगाने का प्रयास आरम्भ किया। रानी लक्ष्मीबाई इसके बाद तात्या टोपे के साथ ग्वालियर की तरफ निकली। ग्वालियर के महाराज सिंधिया के सहयोगियों ने उन्हें सलाह दी कि वे लक्ष्मीबाई को गिरफ्तार करके उसे अंग्रेजो को सौंप देवे।

ग्वालियर के सैनिकों ने रानी लक्ष्मीबाई का स्वागत किया। रानी ने ग्वालियर को काबिज कर लिया। लक्ष्मीबाई ने वापस ग्वालियर में मराठा साम्राज्य स्थापित कर दिया।

रानी के इस महाप्रयास को अन्य रजवाड़ों का सहयोग नही मिला। इसके बावजूद रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर के मजबूत किले की शरण को छोड़कर बाहर निकल कर अंग्रेजो पर हमले का निर्णय किया।
आखिरकार “कोटे की सराय” नामक स्थल पर लक्ष्मीबाई ने अंग्रेज पलटन पर धावा बोला। इस जबरदस्त युद्ध मे रानी लक्ष्मीबाई ने राष्ट्रीय एकता व सम्मान हेतु वीरगति प्राप्त की।

फ़िल्म मणिकर्णिका : म्यूजिक

फ़िल्म का गाना ” में रहूं या ना रहूँ ,भारत यह रहना चाहिए” बहुत सुंदर बन पड़ा है। फ़िल्म में “डंकिला” गाना ठीक है लेकिन फ़िल्म के वातावरण को अशुद्ध करता है व समीचीन कदापि नही है। “बोलो कब प्रतिकार करोगे” गीत के शब्द समीचीन है परंतु प्रस्तुति समकालीन नही।

फ़िल्म मणिकर्णिका की खास बात।

Images 62618728842977313258. Education News Rajasthan Shivira.com

फ़िल्म की सबसे बड़ी खासियत कंगना का हाई प्रोफेशनल एटीट्यूड है। वे एक बेमिसाल अदाकारा एवम शानदार आइडियल पर्सनल्टी के रूप में उभर कर आई है। इसके अलावा-

1. बहुत अरसे बाद सुरेश ओबेरॉय दिखे।
2. डैनी ने अरसे बाद दिखाया कि वो बेमिसाल है।

फ़िल्म मणिकर्णिका के सम्वाद।

1. यह सर ना शर्म से झुकता है ना घमंड से उठता है।
2. जहां इंसानों की कीमत नही, वहाँ जानवरों की क्या कीमत?
3 Words without cultural don’t have any meaning.
4. सिर्फ वीरों का अधिकार है झाँसी पर लालचियों का नही।
5. ऐसा कहा जाता है कि कम्पनी के राज्य में सूर्य ढलता नही लेकिन झाँसी में तो 50 साल से सूर्य उगा ही नही।
6. लक्ष्मी विधवा हुई लेकिन झाँसी सुहागिन है।
7. नही झकने दूंगी झाँसी का स्वाभिमान, नही झुकने दूंगी राष्ट्र भूमि का मस्तक।
8. वो लड़ रहे है कि वो हमपर राज कर सके, हम लड़ रहे कि हम खुद पर नाज कर सके।
9. यहाँ के राजमहल मुझे रानी नही बनाते बल्कि जनता का प्यार मुझे रानी बनाता है।
10. क्रांति और कत्लेआम में फर्क होता है।
11. युद्ध ही अगर एकमात्र राह है तो युद्ध होगा।
12. जब बेटी उठ खड़ी होती है तो जीत बड़ी होती है
13. मैं और मेरी होने वाली औलाद खुशनसीब है जिनको मातृभूमि के लिए जान देने का मौका मिला है।
14. अटक से कटक तक सम्पूर्ण भारत।
15. जो अपनी मिट्टी का , अपने लोगो का नहीं हो सका वो हमारा क्या होगा?
16. मैं वो मिसाल बनूंगी जो हर भारतीय के दिल मे आजादी बन कर धड़केगी।

अनुशंसा।

आप इस फ़िल्म को अवश्य देखे लेकिन सपरिवार।

Tags: 1857IndependenceIndian historyMamikarnikamovie reviewRani Lakshmi BaiTantya topeखूब लड़ी मर्दानीतांत्या टोपेफिल्म रिव्यूरानी लक्ष्मीबाईलक्ष्मी बाई
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