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Sir Pratap: Pratap Singh of Idar, Administrator, Regent of Jodhpur.

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आधुनिक मारवाड़ के निर्माता – सर प्रताप !

आधुनिक मारवाड़ के निर्माता – सर प्रताप !

सर प्रताप का बाल्यकाल

महाराजा श्री तखत सिंह की रानी राणावतजी की कोख से विक्रम संवत १९०२ कार्तिक वदी ६, मंगलवार ( ई. सन. २१ अक्टूबर , १८४५) को सर प्रताप का जन्म हुआ था! सर प्रताप के बड़े भाइयो का नाम जसवंत सिंह एवं जोरावर सिंह था ! सर प्रताप शैशव काल मैं कुछ व्याधियों से ग्रस्त रहे परन्तु शीघ्र ही स्वास्थय प्राप्ति कर व आखेट कला में प्रवीण हों गए थे! बचपन मैं मिले संस्कारों की कारण ही वे युवावस्था मैं ही एक सफल प्रशासक , वीर योद्धा और स्नेही समाज सुधारक के रूप में प्रख्यात हो गए थे! वे एक आडम्बर से दूर सरल व्यक्तिव के रूप में आज भी मारवाड़ वासियो में याद किये जाते है! उन्होंने घुड़सवारी की शिक्षा करीम बख्श से तथा निशानेबाजी का प्रशिक्षण अपने पिताश्री से प्राप्त किया था! बचपने में ही एक बाघ पर तीव्र हमला कर उसका शिकार करने के पुरस्कारस्वरूप उन्होंने अपने पिता से उनकी दुनाली बंदूक़ प्राप्त की थी!

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सर प्रताप पर कुछ घटनाओं का असर।

उनकी युवावस्था मैं घटी ४ घटनाओ ने उनके मन और आत्मा पर गहरा प्रभाव छोड़ा था! ये घटनाये थी- भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, मारवाड़ के कुछ सामंतो द्वारा किया गया सैनिक विद्रोह, जोधपुर किले के बारूदखाने पर बिजली का गिरना और मारवाड़ में आया भीषण भूकम्प! युवावस्था से ही सर प्रताप में राजकीय कार्य काज देखने और सिखने की असीम भावना के कारण ही वे राजकीय कार्यो मैं निरंतर प्रवीणता प्राप्त करते गए!

सर प्रताप का विवाह

विवाह योग्य आयु प्राप्त करने पर सर प्रताप का प्रथम विवाह वर्ष १८६० में जाखण के ठाकुर लक्ष्मण सिंह भाटी की सुपुत्री के साथ संपन्न हुआ! सर प्रताप का दूसरा विवाह जैसलमेर की छत्र सिंह की सुपुत्री के साथ सम्पन हुआ! सर प्रताप के बाल्यकाल में ही महाराजा तख़त सिंह एवं महाराजकुमार के बीच दूरिया बढ़ने लगी थी, इस कारण महाराजकुमार को गोडावण परगने की व्यवस्था संभालने हेतु भिजवा दिया गया था! अपने पिता और बड़े भाई के बीच बढ़ती दूरियों और संवादहीनता के कारण सर प्रताप अपने जीजाजी जयपुर के महाराजा राम सिंह के पास चले गए थे!जयपुर महाराजा राम सिंह का सर प्रताप के व्यक्तित्व निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान रहा था! अपने जयपुर प्रवासकाल मैं सर प्रताप ने रियासत के कार्यो को समझने और उनकी क्रियान्विति के चरणो के विशिष्ट अनुभव प्राप्त किये! महत्वपूर्ण अंग्रेज अधिकारीयो के साथ सहकार्य और संवाद ने भी उनके अनुभवों में समुचित इजाफा किया था!

सर प्रताप का सैन्य अभियान

अपने पिता ओर बड़े भाई के मध्य बढ़ती समस्याओं के चलते वे पुनः जोधपुर लोटे इसी बीच महाराज तख़्त सिंह के दूसरे पुत्र जोरावर सिंह ने अपने कुछ सहयोगियों के उकसावे के कारण नागौर किले पर अपना अधिकार जमा लिया था! पिता के आदेश पर सर प्रताप ने जोधपुर सेना की सफल अगुवाई कर अपने बड़े भाई जोरावर सिंह को नागौर किला खाली करने पर मजबूर किया था!

सर प्रताप का जयपुर प्रवास।

१२ फरवरी १८७६ को महाराजा तख़्त सिंह की मृत्यु पश्चात शोक व्यक्त करने आये जयपुर महाराजा राम सिंह के साथ सर प्रताप पुनः जयपुर लोट गये थे! सं १८७६ में एडवर्ड सप्तम के जयपुर आगमन पर सर प्रताप ने उनके प्रवास के समय अनेक जिम्मेदारियों का निर्वहन कुसलतापूर्वक किया! इसके पश्चात इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के भारत आगमन पर दिल्ली में उनके सम्मान में आयोजित समारोह में सर प्रताप को स्वर्ण पदक प्रदान किया गया था!

सर प्रताप का जोधपुर पुनः आगमन

महाराजा तख़्त सिंह के स्थान पर गद्दीनशीन हुए नए महाराजा जसवंत सिंह ने सर प्रताप को जोधपुर की शासन व्यस्था एवं राज्य व्यस्था में सुधार करने हेतु बुलावा भिजवाया क्योकि वे तत्कालीन प्रधानमंत्री फैज़ुल्लाह की कार्य प्रणाली से संतुष्ट नहीं थे! सर प्रताप को जोधपुर पहुँचते हीं उनकि नियुक्ति अविलम्ब प्रधानमंत्री पद पर कर दी गयी थी!

सर प्रताप का सफल प्रशासन

उन्होने ने सर्वप्रथम कार्यकाल के आरम्भ में ही पूर्व प्रधानमंत्री के भाई द्वारा किये क़त्ल के सिद्ध होने पर उसे कठोर दंड देकर आमजनता में न्याय व्यस्था के प्रति विश्वास को ढृढ़ किया! इसके पश्चात उन्होने सीमावर्ती क्षेत्रो में चल रहे डाकुओ के भय को समाप्त करने हेतु डाकुओ के सरगना को गिरफ्तार किया! उन्होने बरड़वा गाव के दस्यु मुखियों को भी गुप्त योजना बनाकर गिरफ्तार करवाया! आरंभिक सफलताओ के साथ उन्होने यह कानून प्रतिपादित कर दिया कि किसी भी दस्यु के राज्य सीमा मैं गिरफ्तार होने पर उसको रियासत के सपुर्द करने अनिवार्य है, इससे पूर्व दस्यु जिस क्षेत्र में गिरफ्तार होते थे उसी क्षेत्र के जागीरदार हीं उसके विरुद्ध कार्यवाही करने हेतु सक्षम थे ! इस आज्ञा के विरुद्ध पूर्व प्रधानमंत्री ने जागीरदारों को भड़काने का काम किया परन्तु सर प्रताप की नेक भावना के कारण वह जागीरदारों को भड़काने में असफल रहा ! इसी बीच सर प्रताप के कार्यो के समर्थक कर्नल बेडफ़ोर्ड के इंग्लैंड लोट जाने के कारण उनके स्थान पर कर्नल माल्ट की नियुक्ति हुई! कर्नल माल्ट की पूर्व प्रधानमंत्री के प्रति सदाशयता के चलते सर प्रताप को प्रधानमंत्री का पद छोड़ना पड़ा! उनके पदत्याग के साथ ही अव्यवस्था चारो ओर दिखने लगी! सर प्रताप ने पुनः पद संभाला ओर अपनी अनुपस्थति के समय बढे भीलो ओर मीनो के उत्पातों का समापन उन्होने योजनाबद्ध तरीके से किया!

सर प्रताप के नवाचार

सर प्रताप ने ही सर्वप्रथम १८८१ में मारवाड़ रियासत हेतु राजकोष की स्थापना की ! इससे पूर्व राजकोष सम्बंधित कार्य सेठ सुमेरमल उम्मेदमल नामक सम्पन्न करती थी! राज्य कोष की स्थापना से राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार दर्शित हुआ तथा राज्य ने अपने उपर के समस्त कर्जो को ७ वर्ष की अवधि में ही चुका भी दिया! राज्य की आय में सुधार करते हुए सामाजिक कल्याण के विभिन्न कार्य आरम्भ करवाये गए, इस कार्य में सर प्रताप को मुंशी हरदयाल सिंह का पूर्ण सहयोग रहा!

भूमि सुधार तथा रेवेन्यू विभाग को पहले “हवाला” के नाम से जाना जाता था! इस विभाग की समस्त अव्यवस्थाए दूर करने के लिये सर प्रताप ने कप्तान लॉक व मिस्टर ह्यूसन की सेवाएं प्राप्त की! इनके सहयोग से मारवाड़ राज्य के खालसा गावो का उचित प्रबंधन सुनिश्चित करते हुए भूमि की पैमाईश कर नवीन दरो से लगान नियत किये गये! छोटे छोटे जागीरदारों से जमीन मुक्त करवाकर राज्य की आय में दुगनीबढ़ोतरी करते हुए आम जनता को जागीरदारों के अत्याचारों से भी मुक्ति दिलवाई!

सर प्रताप ने १८८१ में ही पुलिस विभाग को तत्पर व सतर्क बनाने हेतु अधिक अधिकार प्रदान किये! इससे पूर्व यदि कोइ अपराधी अपराध पश्चात बडे जागीरदार, अधिकारी , मंदिर अथवा मठ की शरण ले लेता था तो उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता था, परन्तु नवीन व्यवस्था मैं पुलिस को यह अधिकार दिया ग़या कि वह अपराधी को किसी भी स्थान से पकड़ सकती थी! इससे पुलिस का प्रभाव बढ़ा तथा अपराधियो में हताशा बढ़ी! एम. आर. कोठेवाल ने लम्बे समय पुलिस अध्यक्ष के पद पर अपनी सेवाएं प्रदान पुलिस प्रशासन को सुदृढ़ किया ! १९२२-२३ में “सुमेर फ़ोर्स” का पुलिस में विलय किया ग़या था! शमशेर सिंह एवं जी. ऐ. कॉक्स ने भी पुलिस विभाग में महत्वपूर्ण सेवाएं प्रदान की!

इसके साथ ही सर प्रताप ने चुंगी विभाग (जिसे “सायर” महकमा कहते थे) में अलग अलग स्थान पर वसूल की जाने वाली चुंगी के स्थान पर सरहद पर ही चुंगी लगाये जाने की व्यवस्था कायम की ! साथ ही माया, दलाली , कोतवाली , श्री जी, कानूगोई, दरबानी ओर महसुल गल्ला जैसी लागो को भी समाप्त किया! इस कार्य में ह्यूसन नामक अंग्रेज अधिकारी ने सर प्रताप की बहुत सहायता की! ह्यूसन के १८८८ में निधन हो जाने पर उनकी स्मृति में अस्पताल एवं स्कूल की स्थापना की गई!

सर प्रताप ने राज्य की आय बढ़ाने हेतु मारवाड़ राज्य को ४ भागो में विभक्त कर आबकारी अधिकारी की नियुक्ति की गई! उनके द्वारा किये गये “नमक समझोते” से भी मारवाड़ राज्य की आय में बढ़ोतरी हुई!

जोधपुर नगर की व्यवस्था सुधारने तथा सौन्द्रीयकरण हेतु १८८३ में नगरपालिका की स्थापना की गयी! १८८४ में महाराज भूपाल सिंह को अध्यक्ष एवं मुंशी हरदयाल सिंह को मंत्री नियुक्त किया ग़या ! नगर के विभिन्न इलाको की साफ़ सफाई हेतु “ट्राम- वे” की स्थापना की गयी

सर प्रताप के ही नेतृत्व में कर्नल स्टील के सहयोग से खारची से पाली तक रेलवे लाइन का निर्माण हुआ! लार्ड बफरीन ने अपनी मारवाड़ यात्रा के दौरान सर प्रताप को K.C.S.I. उपाधि प्रदान की गयी! इसके पश्चात रेलवे लाइन का विस्तार किया ग़या!जोधपुर रेलवे का विकास किया गया, मारवाड़ खारची से जोधपुर तक की रेलवे लाइन के साथ ही पचभद्रा लाइन का निर्माण किया गया! भटिंडा एवं हैदराबाद तक रेल सम्पर्क स्थापित किया गया!

मारवाड़ रियासत में १८८५ में भारत सरकार द्वारा डाक विभाग की भी स्थापना की गई! इससे पूर्व डाक व्यवस्था रियासत द्वारा सम्पादित की जाती थी! सार्वजनिक निर्माण कार्यो हेतु पी. डब्लू डी. विभाग की स्थापना मिस्टर होम्स के नेतृत्व में १८८९ में की गई!

सर प्रताप ने सैन्य विभाग के पुनः गठन पर विशेष ध्यान दिया! उन्होने सरदार रिसाले की स्थापना कर योग्य सेनिको को घुड़सवार के रूप में भर्ती किया! इसी समय न्याय व्यवस्था को भी नवीन स्वरुप प्रदान किया गया! तत्कालीन समय में “महकमा खास” मारवाड़ राज्य में उच्चतम न्यायालय का दर्जा रखता था, स्वयम सर प्रताप इस विभाग का कार्य ४ सदस्यीय कौंसिल की मदद से करते थे! इस काल खंड में न्याय व्यवस्था अत्यंत व्यवस्थित थीं!

सर प्रताप ने सामाजिक सरोकारों के अनेक क्षेत्रो में अतुलनीय सहयोग प्रदान किया परन्तु शिक्षा के क्षेत्र में उनकी भूमिका अविस्मरणीय है!

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