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Super 30 : Film Review, Story and Dialogues.

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सुपर 30 : वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर एक बड़ा प्रश्न जिसका उत्तर सिर्फ आपके पास है। समीक्षा व सम्वाद।

अगर शिक्षक का नाम “आनंद” हो तो एकलव्य का अंगूठा अब नही कटेगा।

एक फ़िल्म जो कहती है कि ” एक शिक्षक बदल सकता है यह संसार”। समीक्षा व सम्वाद।

एक सच्चे वास्तविक घटना को 155 मिनट में सेल्युलाइड पर रख कर स्क्रीन पर निर्देशक विकास बहल ने प्रस्तुत किया है। फ़िल्म सीधे-सीधे वर्तमान शिक्षा के हालात पर टिप्पणी है। हम सभी जानते है कि देश के टॉप के शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश एंट्रेंस टेस्ट से होता है। इस एंट्रेंस टेस्ट को क्रॉस करने के किये टॉप के कोचिंग चल रहे है। इन कोचिंग क्लास में वही जा सकते है जिनके पास बहुत पैसा है। प्रतिभा पीछे रह गई है एवम पैसा देकर पढ़ने वाले आगे निकल रहे है।

फ़िल्म की कहानी एक मेघावी विद्यार्थी आनंद कुमार की है जिसको गणित से बेहताशा प्यार है। अपनी तमाम दुश्वारियों के बावजूद वह अपने गणितीय प्रेम को जारी रखता है। एक साधारण परिवार के आनंद कुमार के जीवन संघर्ष, टीचिंग स्किल्स, सिस्टम से अनबन, गणितीय मुहब्बत व उद्देश्य की तरफ बढ़ते रहने की कहानी है “सुपर 30″।

आनंद के परिवार में बावजूद गरीबी प्रेम का आधिक्य है एवं उसे एक अदद गर्लफ्रैंड भी हासिल है। आनंद के आर्टिकल के एक फॉरेन जर्नल में छपने के कारण उसका एडमिशन केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में हो जाता है।

विदेश जाने हेतु उसके पिताजी आधी राशि की बामुश्किल व्यवस्था कर देते है लेकिन बावजूद वादे के मंत्री मददगार साबित नही होते। राशि की व्यवस्था नही हो पाती है। इस कोशिश व सदमे के बीच आनंद के पिताजी की मृत्यु हो जाती है।
आनंद केम्ब्रिज नही जा सकता है एवं जीवन जीने के लिए उसका संघर्ष बढ़ने लगता है। उसे दो वक्त की रोटी के जुगाड़ के लिए पापड़ तक बेचने पड़ते है।

इसी दौर में आनंद को “एक्सीलेंस कोचिंग” पटना में पढ़ाने का उसे ऑफर मिलता है व उसकी जिंदगी में पैसा आने लगता है। आनंद का रुझान भी पैसे के प्रति बढ़ने लगता है। एक दिन आनंद की मुलाकात एक गरीब स्टूडेंट राधामोहन से होती है। राधा मोहन के पढ़ने की तलब व अवसरों की कमी को देखकर आनंद को अपने पुराने दिन याद आ जाते है। वह गरीबो के बच्चों को आईआईटी की तैयारी करवाने हेतु नोकरी छोड़ कर अपनी आईआईटी कोचिंग “सुपर 30” शुरू करने का निर्णय लेता है।

आनंद बड़ी मुश्किल से अपनी कोचिंग शुरू करता है जिसमे 30 बच्चों को फ्री में तैयारी का लक्ष्य रखता है। उसकी कोचिंग में भाग लेने के लिए सर्वहारा वर्ग के लेकिन पढ़ने की तमन्ना रखने वाले विद्यार्थियों का आगमन होने लगता है एवं यह एक न्यूज़ बनने लगती है।

ड्राइवर, मजदूरी, सफाई कर्मियों आदि के बच्चों से शुरू हुआ आनंद का “सुपर 30” पढ़ने-पढ़ाने का केंद्र बनने लगता है जहाँ गरीब प्रतिभागियों का सँवारा जाने लगता है। आनंद पर पुराने कोचिंग संस्थान के मालिक वापस कोचिंग जॉइन करने का दबाब बनाते है।

आनंद सब दबाब,प्रेशर को दरकिनार करके अपनी मंजिल की तरफ बढ़ने लगता है। आनंद को धमकियां मिलने लगती है लेकिन आनंद अपने स्टूडेंट्स के साथ उनकी शिक्षा को जीवन से सम्बंधित रखते हुए आगे बढ़ने लगता है।

उसके सेंटर को बंद करने के किये दुश्मनों ने बहुत प्रयास किये लेकिन उनके स्टूडेंट्स हर मुश्किल से लड़ते हुए सॉल्यूशन निकालने लगे। आनंद के स्टूडेंट्स भी एक एक करके “आनंद” बनने लगे जिनके लिए पढ़ाई सब-कुछ था। आनंद के सारे संसाधन खत्म होने के कारण कोचिंग को कंटीन्यू करना मुश्किल होता जा रहा था।

हार-थक कर आनंद एक बार वापस अपने पुराने सेंटर के मालिक से आर्थिक मदद के लिए मिलता है। पुराने सेंटर का मालिक मदद के लिए एक शर्त रखता है कि आनंद के स्टूडेंट्स व कोचिंग के बच्चों में एक कॉम्पिटिशन होगा। आनंद के बच्चे जीते तो उनको मदद मिलेगी अन्यथा आनंद को कोचिंग बन्द करनी पड़ेगी।

कोचिंग सेंटर के बच्चे जीत जाते है। आनंद को कोचिंग जॉइन करने व खुद की संस्था “सुपर 30” को बंद करने की घोषणा हेतु स्टेज पर बुलाया जाता है। आनद को इनसाइड मदद मिलती है एवं आनंद स्टेज पर घोषणा कर देता है कि “सुपर 30” बन्द नही होगी।

आनंद उन कारणों का विश्लेषण करता है जिनके कारण उसके स्टूडेंट्स टेस्ट में पिछड़ गए थे। आनंद को लगा कि बच्चों को सिर्फ पढ़ाने से ही काम नही बनेगा बल्कि उनका गिरा हुआ आत्मविश्वास भी उठाना होगा। बच्चों के आत्मविश्वास को ऊंचा उठाने के लिए आनंद “सुपर 30” के बच्चों को “एक्सीलेंस कोचिंग” के सामने अंग्रेजी में नाटक करने का चेलेंज देता है।

धीरे-धीरे मीडिया में आनंद की चर्चा होने लगती है। लोगो का ऐसा विश्वास बनने लगता है कि बच्चों की सफलता अच्छी पढ़ाई से होगी ना कि कोचिंग की बड़ी फीस देने से। आखिरकार कोचिंग सेंटर अपनी अंतिम चाल चलता है कि किसी भी प्रकार “सुपर 30” के बच्चों को एग्जाम देने से रोके अथवा आनंद का मर्डर कर दे।

आनंद के साथी पुलिस से सम्पर्क करते है लेकिन पुलिस भी हेल्पलेस रहती है।आनंद को गोली मारकर ट्रेन के सामने फेंकने की कोशिश होती लेकिन आनंद बच जाता है। आनंद पर हमले के बाद “सुपर 30” के बच्चों को मारने के लिए बड़ा हमला होता है लेकिन बच्चे अपने ज्ञान के उपयोग से बचने में सफल रहते है।

2003 के आईआईटी एंट्रेंस में “सुपर 30” के सभी बच्चों ने भाग लिया एवं गोबर व गंदगी से निकले ये सभी बच्चे यानी 30 में से 30 सेलेक्ट हो गए। इस सलेक्शन ने एक इतिहास रच दिया था। आज भी आनंद इसी राह पर आगे बढ़ रहा है।

अभिनय:
फ़िल्म सिर्फ व सिर्फ ह्रितिक रोष्णकी फ़िल्म है। ह्रितिक ने लाइफ टाइम रोल किया है। उन्होंने आनन्द के संघर्ष, तरीको व द्वन्द को बहुत बेहतरीन तरीके से पेश किया है। यह फ़िल्म उनकी बेस्ट फिल्म्स में से एक सिद्ध होगी। मृनल ठाकुर, पंकज त्रिपाठी, नन्दिश संधू, ऋत्विक साहोरे व वीरेंद्र सक्सेना ने अच्छा अभिनय किया है।

संगीत:
फ़िल्म का म्यूजिक भी गणित से निकलता प्रतीत होता है। फ़िल्म का म्यूजिक स्क्रिप्ट से उत्प्रेरित भी है व उसे सपोर्ट भी करता हैं। फ़िल्म का एक गाना “क्यूशचन मार्क” अपने आप मे इसकी एक मिसाल है। “बसंती नॉट डांस, इन्फ्रन्ट ऑफ दीज़ डॉग्स” में भाषा व वर्ग भेद को खुल कर एक्सप्रेस किया गया है।

सम्वाद:
1. अगर तुमको यह फॉरेन जर्नल चाहिए तो एक रास्ता है । अगर तुम्हारा आर्टिकल इसमे छपेगा तो यह तुम्हे जर्नल जिंदगी भर फ्री मिलेगा ।
2. हमको नही लगता ठंडा-फंडा, हम बहुत हॉट है।
3. आधा पैसा तो पिताजी जीपीएफ लोन से कर लिए है बाकी पैसा जब गोल्ड मेडल मंत्रीजी दिए थे तब वादा किया था। (विदेश जाने हेतु)
4. जो लोग केम्ब्रिज नही जाता, उसका जिंदगी रुक जाता है क्या?
5. शून्य का खोज से पहले एक से नो तक का खोज जरूरी होता है।
6. बड़ा-बड़ा प्रोफेसर अब कॉलेज में नही बल्कि कोचिंग में पढ़ाता है। बहुत बड़ा बिजनेस है। सब पोलटिशियन व उद्योगपति इसमे इन्वेस्ट करते है।
7. शिक्षा स्वर्ग का रास्ता है और स्वर्ग कैसे मिलेगा? बिजनेस करके। आज शिक्षा सबसे बड़ा बिजनेस है।
8. आज भी यही हो रहा है। राजा का बेटा ही राजा होता है। द्रोणाचार्य तो आज भी राजा के साथ ही है। एकलव्य का अंगूठा कटवाते है।
9. जितना आपकी जेब खाली उतनी आपकी तालीम भारी।
10. हमको सिर्फ इतना पता है कि अब हम रुकेंगे नही।
11. एक नम्बर। बहुत ज्यादा होता है ये नम्बर। प्रयास और सफलता के बीच एक ही नम्बर का फर्क होता है।
12. प्रीमियम टीचर का काम होता है प्रीमियम बच्चों को पढ़ाना। लँगड़े घोड़ो को डर्बी की रेस में नही उतारते।
13. रेस तो शुरू हो गया है। कल आप देख लेना कि आज का यह टट्टू कल डर्बी की रेस जीतेगा।
14. किस बात का डर है? खोने के लिए है क्या तुम्हारे पास? मर जाओगे। मर तो उसी दिन गए थे जब एक गरीब के घर पैदा हुए थे।
15. जब समय आएगा तब सबसे ऊंचा सबसे अच्छा छलांग हम ही मारेंगे।
16. हर चीज में पढ़ाई ढूंढो। चिड़िया कैसे उड़ती है? बिजली कैसे कड़कती है? पँखा कैसे चलता है?
17. कलम मत उठाओ, थोड़ा मुस्कुराओ और मन मे ही फार्मूला बनाओ।
18. किस्मत इन बच्चों के साथ क्या किया है? प्रतिभा दिया पर अवसर नही दिया। क्या ये चीटिंग नही?
19. शायद लोग ठीक ही कहते है कि आपत्ति से ही आविष्कार का जन्म होता हैं।
20. आ गया छलांग मारने का टाइम। बहुत हो गया पढ़ाई, अब लड़ाई का बारी है।
21. आज राजा का बेटा राजा नही बनेगा। राजा वही बनेगा जो हकदार होगा।
22. डिस्ट्रक्शन तब होता है जब आपका ध्यान कही और हो और सॉल्यूशन कही और हो।
23. जब घर का एक बच्चा पढ़ जाता है तो उसकी सात पुश्तों की तकदीर सम्भल जाती है।

सारांश रूप यही है कि फ़िल्म बहुत अच्छी है। इसे हम मस्ट वॉच तथा फेमिली केटेगरी में रखते है। फ़िल्म में थोड़ा बहुत एंटरटेन कम है लेकिन थ्रिल व स्पीड के कारण उसकी खास जरूरत महसूस नही होती।

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